About Lord Shani Dev

 

शनि और उसका स्वरुप

story of lord shani

Lord Shani History

 

जब तक हम शनि के स्वरुप, प्रकृति, कार्य क्षमता आदि से परिचित न हो जाये तब तक आगे बढना निरथर्क ही होगा। अस्तु शनि, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शुक्र, शनि में अपना अलग ही व्यकितत्व रखते है। शनि क्रूर है, दुष्ट है, वह महापापी है। अंग्रेजी भाषा इसे सेटर्न ” SATURN “ कहते हैं ।

शुक्र की राशि तुला में शनि जहां उच्च होता है, वहीं मंगल राशि मेष में नीच का होता है। मकर व कुंभ स्वंय शनि की राशियां हैं। ७ वीं दॄष्टि तो हैं ही परन्तु ३ व १० वीं विशेष दॄष्टि भी शनि की है। जहां दैत्यगुरु शुक्र तथा बुध मित्र हैं, वहीं गुरु प्रबल तथा सूर्य चन्द्र मंगल के साथ भी शत्रुवत व्यवहार है।

शनि की राशि मकर जो २७० से ३०० अंश तक है घुटनों तक प्रभाव रखती है। अंग्रेजी में इसे मकर कैप्रीकोर्न कहते है जो स्वंय ५ घडी १५ पल की होती है। यह समराशि तथा इस राशि पर सूर्य २५ दिन २४ घडी तक रहती है। यह राशि स्वंय स्त्री जातक, चर संज्ञक वात-प्रकृति युक्त, पिंगलवर्ण, रात्रि बली वैश्य जाति व दक्षिण दिशा  की स्वाभिमानी है। प्राकृतिक  स्वभाव उतरोतर उन्नति  की अग्रसर होता है। इसी से घुटने पर विचार किया जाता है।

कुंभ राशि की दूसरी राशि है जिसे अंग्रेजी में एक्युरिअस कहते हैं यह ३०० से ३३० अंश तक पैरों पर प्रभावशाली रहती है। यह राशि ४ घडी ४३ पल की विषम राशि है तथा सूर्य इस पर २८ घडी ४३ पल विफल रहता है। यह कुंभ राशि पुरुष जाति स्थिर संज्ञक विचित्र वर्ण, वात- पित कंफ प्रकृति प्रधान, दिन में बली व पशिचम दिशा की स्वामी है। शूद्र की मध्यम संतान और क्रूर स्वभाव की, शान्त चित, धर्मप्रिय, विचारशील है यर राशि। लोहा व सीसा शनि के विशेष धातु हैं। नीलम रत्न को धारण करने का समय अर्धरात्रि है। उन्माद, वातरोग, भगन्दर, गठिया, स्नायु रोग का  निर्णय शनि द्वारा ही किया जाता है।

शनि नपुंसक लिंगी एवं तामस स्वभाव स्वामी है। वृष, मिथुन मित्र, कर्क, सिंह, वृशिचक शत्रु राशि हैं। दैनिक गति शनि की ८ कला ५ विकला १० घंटा १६’ मिनट है। पृथ्वी से ४५ करोड़ मील का दूर शनि का व्यास २५०,००० मील है।  २८ वर्ष व अष्टोतरी दशा १० वर्ष रहती है।

जन्म कुंडली में शनि के स्थितिनुसार आयु, मृत्यु चौर कर्म द्रव्यहानि, कारावास, मुकदमा, फांसी, शत्रुता, राजभय, त्यागपत्र, बाहापीड़ा, तस्करी, जासूसी, दुष्कर्म, अंधेरे के कार्यादि का ज्ञान शनि द्वारा किया जाता है। वृष तुला में योग कारक तथा अशिवनी, मघा, मूल, विशाखा, पुनर्वसु पर उतम फल प्रदान करता है। शनि का विषम  वृतीय व्यास ७५००० मील, ध्रुवीय व्यास ६७००० मील, सूर्य से दूरी ८८००६००० मील है। अपनी धुरी पर १०.१२ घंटे में एक चक्कर लगा देता है।

 









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