Bangladesh bans demolition of filmmaker Satyajit Ray’s house | बांग्लादेश में फिल्ममेकर सत्यजीत रे का घर गिराने पर रोक: भारत ने रोकने की अपील की थी, अब इसे फिर से बनाया जाएगा

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ढाका38 मिनट पहले

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बांग्लादेश में सत्यजीत रे का घर लगभग 100 साल पहले बनाया गया था। 1947 में बंटवारे के बाद यह संपत्ति बांग्लादेश सरकार के अधीन हो गई थी। - Dainik Bhaskar

बांग्लादेश में सत्यजीत रे का घर लगभग 100 साल पहले बनाया गया था। 1947 में बंटवारे के बाद यह संपत्ति बांग्लादेश सरकार के अधीन हो गई थी।

बांग्लादेश में भारत के मशहूर फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के पैतृक घर के तोड़े जाने पर रोक लगा दी गई है। सत्यजीत रे के पुरखों के घर मैमनसिंह शहर में है। अधिकारियों ने अब यह तय करने के लिए एक समिति बनाई है कि इस घर को दोबारा कैसे बनाया जा सकता है।

भारत ने मंगलवार को बांग्लादेश से सत्यजीत रे की पैतृक संपत्ति को ध्वस्त करने के फैसले पर रोक लगाने की अपील की थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस तोड़फोड़ का विरोध करते हुए कहा कि यह घर बंगाल के सांस्कृतिक इतिहास से गहराई से जुड़ा हुआ है।

सत्यजीत रे एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म डायरेक्टर, लेखक, संगीतकार और चित्रकार थे। उन्हें विश्व सिनेमा के बड़े फिल्मकारों में से एक माना जाता है। बांग्लादेश में सत्यजीत रे का घर लगभग सौ साल पहले बनाया गया था। 1947 में बंटवारे के बाद यह संपत्ति बांग्लादेश सरकार के अधीन हो गई थी।

स्थानीय निवासियों ने कहा कि इस घर के टूट जाने से मैमनसिंह शहर में रे परिवार की विरासत खत्म हो जाएगी।

स्थानीय निवासियों ने कहा कि इस घर के टूट जाने से मैमनसिंह शहर में रे परिवार की विरासत खत्म हो जाएगी।

प्रशासन ने अपनी गलती मानी यह घर दरअसल सत्यजीत रे के दादा, प्रसिद्ध लेखक उपेंद्रकिशोर रे चौधरी से जुड़ा है। हालांकि, बांग्लादेश उच्चायोग के एक अधिकारी फैसल महमूद ने बताया कि सत्यजीत रे खुद कभी इस घर में नहीं रहे थे।

उन्होंने यह भी कहा कि उपेंद्रकिशोर भी शायद इस घर में नहीं रहे थे, क्योंकि वह पास के किशोरगंज जिले के कोटियाडी नाम की जगह में रहते थे। वहां उनका असली घर आज भी है और उसे विरासत स्थल के रूप में सुरक्षित रखा गया है।

उन्होंने यह भी बताया कि बांग्लादेश की विरासत सूची में ऐसे 531 संरक्षित स्थल हैं, लेकिन मैमनसिंह वाला यह घर उस सूची में नहीं था। यह प्रशासन की गलती थी कि इस घर को विरासत स्थल के रूप में नहीं जोड़ा गया, इसलिए इसे बचाने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी। फिर भी अब जब इस पर विवाद हुआ है, तो सरकार इस पर दोबारा विचार कर रही है।

सत्यजीत रे ने कुल 37 फिल्मों का निर्देशन किया था।

सत्यजीत रे ने कुल 37 फिल्मों का निर्देशन किया था।

भारत सरकार ने जताई थी चिंता फैसल महमूद ने कहा कि सत्यजीत रे सिर्फ भारत या बांग्लादेश के नहीं हैं, वह पूरी दुनिया की धरोहर हैं। वे सभी बांग्लादेशियों के लिए भी गौरव हैं।

इससे पहले भारत सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैमनसिंह में सत्यजीत रे के पैतृक घर को गिराया जा रहा है। यह वही घर है जो उनके दादा उपेंद्रकिशोर रे चौधरी से जुड़ा हुआ था और बंगाल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक रहा है।

भारत ने कहा कि यह इमारत बांग्लादेश सरकार की संपत्ति है और खराब हालत में है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए इसे गिराने के बजाय संग्रहालय या सांस्कृतिक स्थल में बदलना बेहतर होगा। भारत सरकार ने इसके पुनर्निर्माण और संरक्षण में सहयोग देने की पेशकश भी की।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इसे “बेहद दुखद” घटना बताया और कहा कि रे परिवार बंगाली संस्कृति का प्रमुख प्रतीक है। उन्होंने अपील की कि बांग्लादेश सरकार इस ऐतिहासिक इमारत को संरक्षित करे। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि उपेंद्र किशोर बंगाल के पुनर्जागरण के स्तंभ रहे हैं और इस घर का संरक्षण जरूरी है।

सत्यजीत रे को घर आकर दिया था लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड

सत्यजीत रे का जन्म 2 मई 1921 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार से थे और उनके दादा उपेन्द्रकिशोर रे चौधरी एक प्रसिद्ध लेखक और चित्रकार थे। सत्यजीत रे की पहली फिल्म पाथेर पांचाली थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहना मिली।

यह बंगाली भाषा में रिलीज हुई तीन फिल्मों की सीरीज ‘अपु त्रयी’ का पहला पार्ट थी। 1955 में रिलीज हुई पाथेर पांचाली, 1956 में रिलीज हुई अपराजितो और 1959 में रिलीज हुई अपुर संसार को ‘अपु त्रयी’ कहा जाता है।

सत्यजीत रे ने कुल 37 फिल्मों का निर्देशन किया। इनमें फीचर फिल्में, डॉक्यूमेंट्री, और शॉर्ट फिल्में शामिल हैं। भारतीय सिनेमा में उनके योगदान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऑस्कर कमेटी ने लाइफटाइम अचीवमेंट का ऑस्कर पुरस्कार कोलकाता में उनके घर आकर दिया था। लाइफटाइम अचीवमेंट ऑस्कर पाने वाले सत्यजीत पहले भारतीय फिल्ममेकर हैं।

सत्यजीत ने अपनी कई फिल्मों का संगीत खुद दिया। वे डायलॉग्स भी खुद ही लिखते थे। भारत सरकार ने उन्हें 1965 में पद्म भूषण, 1976 में पद्म विभूषण, और 1992 में मरणोपरांत भारत रत्न जैसे देश के उच्चतम नागरिक सम्मान दिए। 23 अप्रैल 1992 को कोलकाता में उनकी मौत हो गई।

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