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गौरव पाठक1 घंटे पहले
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आग से संबंधित बीमा विनाशकारी नुकसान की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा का वादा करता है। फिर भी कई पॉलिसीधारक सर्वे रिपोर्ट्स, देरी, दावों के अस्वीकरण या तथाकथित “फुल एंड फाइनल सेटलमेंट’ को लेकर विवादों में फंस जाते हैं। हालांकि बीमा पॉलिसियां बीमा अधिनियम, 1938 द्वारा शासित होती हैं, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 एक अतिरिक्त राहत प्रदान करता है। हाल के कुछ उपभोक्ता आयोगों के निर्णय यह स्पष्ट करते हैं कि बीमाकर्ता कब उत्तरदायी होते हैं और उपभोक्ताओं को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
सर्वेयर की रिपोर्ट अंतिम सत्य नहीं सर्वेयर रिपोर्टों को कितनी अहमियत दी जाए, यह एक बहुत आम मसला है। बीमाकर्ता अक्सर इन पर काफी हद तक निर्भर रहते हैं, लेकिन उपभोक्ता अदालतों ने स्पष्ट किया है कि ऐसी रिपोर्टें अंतिम सत्य नहीं होतीं। कई बार तो बीमाकर्ता सर्वेयर की रिपोर्ट्स को भी नहीं मानते हुए दावों का िनपटारा मनमाने ढंग से करते हैं। उदाहरण के लिए सुपरमार्केट हरियाणा बनाम यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी (2025) मामले में बीमाकर्ता ने सर्वेयर के आकलन के बावजूद दावे की राशि मनमाने ढंग से घटा दी। शिकायतकर्ता ने इस दावे को स्वीकार भी कर लिया। यूटी चंडीगढ़ आयोग ने कहा कि कम राशि के दावे की स्वीकृति मात्र का अर्थ यह नहीं है कि उसने अपने बाकी के कानूनी अधिकार छोड़ दिए हैं। आयोग ने आकलित राशि के भुगतान के साथ-साथ मुआवजा और ब्याज देने का आदेश दिया। इसी तरह एसबीआई जनरल इंश्योरेंस बनाम शाइन फुटवियर ट्रेडर्स मामले में भी राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64यूएम के तहत सर्वेयर रिपोर्टों का एविडेंटरी महत्व तो है, लेकिन वो अंतिम निर्णायक नहीं हैं।
दावा निस्तारण में देरी आग से संबंधित दावों में एक बड़ी शिकायत देरी की होती है। गौतम सोलर बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी (2024) मामले में आग फरवरी 2014 में लगी थी, जबकि सर्वे जनवरी 2015 में पूरा हुआ, लेकिन बीमाकर्ता कोई अंतिम निर्णय नहीं ले सका। राष्ट्रीय आयोग ने माना कि आईआरडीए के नियमों के तहत निर्धारित समय-सीमा का उल्लंघन हुआ। बीमाकर्ता को सेवा में कमी के लिए दोषी ठहराया गया और आदेश दिया गया कि वह आकलित राशि का भुगतान 2 फीसदी बैंक ब्याज के साथ करें। साथ ही 2 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया। यह निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि विशेषकर सर्वेयर की रिपोर्ट के बाद अनुचित देरी बीमित व्यक्ति के साथ अनुचित व्यवहार मानी जाएगी।
अगर पॉलिसी की शर्तों पर विवाद हो तो? आईनंज इंडस्ट्रीज बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी में दावा इस आधार पर अस्वीकृत किया गया कि “कपास के बीज (कॉटनसीड्स)’ को कवर करने का विशेष रूप से उल्लेख नहीं था। हालांकि, राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने पाया कि प्रीमियम “जिनिंग और प्रेसिंग हाउस’ और “अन्य स्टॉक्स’ को कवर कर रहा था, जिसमें कपास के बीज का होना स्वाभाविक था। न्यायालय ने निर्णय दिया कि ऐसे तकनीकी आधारों पर दावे को खारिज करना उचित नहीं है।
‘फुल एंड फाइनल सेटलमेंट’ बचाव में एक और आम तर्क यह होता है कि उपभोक्ता ने “फुल एंड फाइनल सेटलमेंट’ स्वीकार कर लिया। लेकिन अदालतें केवल हस्ताक्षरों को ही अंतिम नहीं मानतीं। किसान कॉटन ऑयल बनाम ऑरिएंटल इंश्योरेंस मामले में गुजरात आयोग ने कहा कि हालांकि बीमित पार्टी ने एक डिस्चार्ज वाउचर पर हस्ताक्षर कर दिए थे, लेकिन बीमाकर्ता ने दावे की प्रक्रिया में देरी की और समय पर कार्रवाई नहीं की। इसलिए, बीमित व्यक्ति विलंबित राशि पर ब्याज का हकदार है।
उपभोक्ता इन बातों का रखें ध्यान – पॉलिसी शेड्यूल, प्रीमियम रसीदें, सर्वेयर की रिपोर्ट और सभी पत्राचार की पूरी फाइल रखें।
– किसी भी कटौती वाली राशि को जल्दबाजी में स्वीकार न करें। यदि आप स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन विरोध के साथ तो उसे लिखित रूप में दर्ज करें। – अगर बीमाकर्ता तय समयसीमा से ज्यादा देरी करता है, तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(g) के तहत शिकायत दर्ज करें। – पॉलिसी में अस्पष्टता की स्थिति में बेनिफिट ऑफ डाउट उपभोक्ता को दिया जाता है, विशेष रूप से जब प्रीमियम अधिक हो। – यदि आपने सेटलमेंट वाउचर पर हस्ताक्षर कर भी दिए हैं, तो भी अदालतें अतिरिक्त दावा स्वीकार कर सकती हैं, बशर्ते देरी या संशोधन साबित किया जा सके।
(लेखक सीएएससी के सचिव भी हैं।)
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