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1 घंटे पहलेलेखक: प्रांशू सिंह
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क्या आपने कभी सोचा है कि मां का दूध भी पैसे कमाने का जरिया हो सकता है? कीरा नाम की एक महिला ने इसे सच कर दिखाया है! मां बनने के बाद कीरा अपने एक्स्ट्रा ब्रेस्ट मिल्क को बेचकर रोजाना करीब ₹66,000 कमा रही हैं। वहीं एक फूटबॉल कोच ने अच्छे नंबर और पास कराने के लिए छात्रों का खून लिया।

- ब्रेस्ट मिल्क से रोजाना ₹66 हजार कैसे कमा रही महिला?
- कोच ने अच्छे मार्क्स के बदलें क्यों लिया छात्रों का खून?
- किसानों के फ्री होने से बिहार में कैसे बढ़ रहे मर्डर केसेस?
- 75 साल बाद चिट्ठी से कैसे पता चली रेयर मिनरल की लोकेशन?
- वैज्ञानिकों ने कार्बन डाई-ऑक्साइड को फूड कन्वर्ट कैसे किया?


अमेरिका की कीरा विलियम्स मां बनने के बाद अपना एक्स्ट्रा ब्रेस्ट मिल्क बेचकर हर रोज करीब ₹66,000 कमा रही हैं। उन्होंने फेसबुक पर अब तक 100 लीटर से ज्यादा दूध बेचा है। उनके ग्राहकों में वे माएं शामिल हैं जिन्हें अपने बच्चों के लिए दूध नहीं बनता।
लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिम जाने वाले बॉडी बिल्डर और पहलवान भी उनके ग्राहक हैं। ये लोग ब्रेस्ट मिल्क को ‘नेचुरल प्रोटीन शेक’ मानकर पीते हैं और इसके लिए सामान्य से ज्यादा पैसे भी देते हैं।
कैसे शुरू हुआ ये ट्रेंड और क्यों बढ़ी मांग? डॉक्टर्स के मुताबिक, नवजात बच्चों को 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। लेकिन कई महिलाओं को ज्यादा दूध बनता है, जिसे उन्हें निकालना पड़ता है। पहले यह दूध बेकार जाता था, लेकिन अब विदेश में कई महिलाएं इसे बेचकर पैसा कमा रही हैं।
ब्रेस्ट मिल्क को हमेशा से पोषक तत्वों से भरपूर माना गया है, जिसमें कई तरह के विटामिन और मिनरल होते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान जब वैज्ञानिकों ने इसके एंटीबॉडी गुणों को देखा, तो इसकी मांग और भी बढ़ गई। लोग इसे ‘सुपरफूड’ के तौर पर देखने लगे। हालांकि, पुरुष ग्राहकों से डील करते समय कीरा को सतर्क रहना पड़ता है क्योंकि कई बार अजीब इरादों वाले लोग भी संपर्क करते हैं।


ताइवान की नेशनल ताइवान नॉर्मल यूनिवर्सिटी (NTNU) की एक फुटबॉल कोच, झोउ ताई-यिंग, को छात्रों से जबरन खून लेने के आरोप में सस्पेंड कर दिया है। छात्रों का आरोप है कि कोच नंबर और ग्रेजुएशन के क्रेडिट के बदले उनसे खून लेती थीं। इस खबर के बाद सोशल मीडिया पर लोग कोच वैंपायर कोच बुला रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
यूनिवर्सिटी की एक छात्रा जियान ने मामले का खुलासा करते हुए कहा कि ग्रेजुएशन के लिए जरूरी 32 एकेडमिक क्रेडिट के लिए कोच उनसे खून लेती थी। अकेले जियान ने 200 से ज्यादा बार खून दिया। कभी-कभी तो लगातार 14 दिनों तक, और दिन में तीन बार सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खून निकाला जाता था।
सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि खून निकालने वाले ट्रेंड लोग नहीं थे। वे इसे कैंपस रिसर्च एक्सपेरिमेंट का हिस्सा बताते थे। जियान ने दर्द बयां करते हुए कहा कि एक बार तो लगातार खून निकालने से उसकी दोनों बांहों में नसें मिलनी बंद हो गई थीं।


बिहार में लगातार हो रही हत्याओं पर एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) कुंदन कृष्णन ने एक अजीबोगरीब बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि अप्रैल, मई और जून में हत्याएं ज्यादा इसलिए होती हैं क्योंकि इस दौरान किसान खाली रहते हैं।
उनके मुताबिक, जब तक बारिश नहीं होती, किसानों के पास काम कम होता है और इसी खाली समय में अपराध बढ़ते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव का माहौल होने के कारण राजनीतिक दल और मीडिया इन घटनाओं पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।
सुपारी किलिंग पर नजर रखने के लिए बनेगा नया सेल कुंदन कृष्णन ने यह भी कहा कि नौजवान पैसे की चाह में सुपारी किलिंग जैसे अपराधों की ओर अट्रैक्ट हो रहे हैं। उनका मानना है कि इस समस्या से निपटने के लिए एक नया सेल इसी महीने बनाया गया है।
इस सेल का काम होगा कि सुपारी लेकर हत्या करने वाले लोगों का डेटा बैंक बनाए और उन पर कड़ी नजर रखी जाए। इसके अलावा, जेल से छूटे अपराधियों पर भी निगरानी रखी जाएगी ताकि वे फिर से अपराध में शामिल न हों।
बयान पर राजनीतिक विरोध हुआ तो माफी मांगी ADG के बयान पर बिहार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा- पुलिस अपनी नाकामी छुपाने के लिए मौसम को दोष दे रही है। वहीं, उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने भी बयान को सरासर गलत बताया। बढ़ते विरोध के बाद कुंदन कृष्णन ने माफी मांगी और कहा- उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया।


जर्मनी के बावरिया में 75 साल पुरानी एक चिट्ठी ने पृथ्वी के सबसे रेयर अर्थ मिनरल में से एक, हंबोल्टाइट की लोकेशन बता दी है। 1949 के इस पत्र की वजह से स्टेट आर्काइव्ज में एक शू बॉक्स में रखे नींबू जैसे पीले रंग के टुकड़ों का पता चला। बावरिया स्टेट ऑफिस फॉर द एनवायर्नमेंट की टीम ने पुष्टि की कि ये टुकड़े हंबोल्टाइट ही हैं।
यह खनिज दुनिया में सिर्फ 30 जगहों पर ही मिला है। अखरोट के आकार के इन टुकड़ों की खोज से जर्मनी में इस खनिज का ज्ञात भंडार दुगुना हो गया है। फ्यूचर में इसका इस्तेमाल ग्रीन टेक्नोलॉजी, जैसे लिथियम-आयन बैटरी के लिए बेहतर कैथोड बनाने में हो सकता है।


चीनी वैज्ञानिकों ने एक ऐसा तरीका ढूंढ़ा है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मेथनॉल को सीधे सफेद चीनी में बदला जा सकता है। यह पारंपरिक रूप से गन्ने या चुकंदर से चीनी बनाने की जरूरत को खत्म कर देगा।
तियानजिन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल बायोटेक्नोलॉजी के रिसर्चर ने यह खास ‘इन विट्रो बायो-ट्रांसफॉर्मेशन सिस्टम’ विकसित किया है। उनका दावा है कि इससे पकड़ी गई CO2 को सीधे भोजन में बदला जा सकेगा।
इससे पहले 2021 में वैज्ञानिकों ने CO2 को कम तापमान पर मेथनॉल में बदलने का तरीका खोजा गया था। अब उसी मेथनॉल से यह फूड बनाने में सफलता मिली है।
पर्यावरण और जनसंख्या दोनों चुनौतियों के लिए विकल्प रिसर्चर का मानना है कि CO2 को सीधे भोजन और केमिकल्स में बदलना पर्यावरण और जनसंख्या, दोनों से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने का एक बेहतरीन तरीका है। यह कार्बन न्यूट्रैलिटी में भी मदद करेगा। प्राइमरी सक्सेस से वैज्ञानिकों ने इसका एक्सपेरिमेंट और तेज कर दिया है।
तो ये थी आज की रोचक खबरें, कल फिर मिलेंगे कुछ और दिलचस्प और हटकर खबरों के साथ…
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