Param Vir Chakra Winner ; Flying Officer Nirmaljit Sekhon Story | Diljit Dosanjh In Border 2 | पंजाब के फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सेखों: बॉर्डर-2 फिल्म में दिलजीत दोसांझ इनका रोल कर रहे; एयरफोर्स के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता – Punjab News

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निर्मलजीत सिंह सेखों के रोल में दिलजीत दोसांझ। इनसेट में निर्मलजीत सिंह सेखों का फाइल फोटो

पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया आमिर के साथ काम को लेकर घिरे एक्टर और सिंगर दिलजीत दोसांझ ने फिल्म बॉर्डर-2 की शूटिंग शुरू कर दी है। इस फिल्म में दिलजीत फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह सेखों का किरदार निभा रहे हैं। उन्होंने शूटिंग की वीडियो भी सोशल मीडिया पर

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दिलजीत जिन निर्मलजीत सिंह सेखों का किरदार निभा रहे हैं, उनका जन्म पंजाब के लुधियाना जिले के छोटे से गांव इसेवाल में हुआ था। वायुसेना के पहले और आज तक के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता सेखों ने 1971 की भारत-पाक युद्ध में दुश्मन देश को नाकों चने चबवा दिए थे।

उन्होंने अदम्य वीरता और साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान के छह एफ-86 सेबर फाइटर जेट्स में से दो को मार गिराया, जबकि बाकी को वापस खदेड़ दिया था। इसी बीच उनका विमान भी हमले की चपेट में आ गया और वे शहीद हो गए।

सेखों की इस बहादुरी की प्रशंसा पाकिस्तानी एयरफोर्स के पूर्व अधिकारी कैसर तुफैल ने भी अपनी किताब में की थी। कैसर तुफैल ने लिखा- निर्मलजीत को पाकिस्तानी पायलटों ने एक शानदार विरोधी माना।

निर्मलजीत सिंह सेखों के रोल में दिलजीत दोसांझ। दिलजीत ने इसका वीडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किया है।

निर्मलजीत सिंह सेखों के रोल में दिलजीत दोसांझ। दिलजीत ने इसका वीडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किया है।

यहां जानिए निर्मलजीत सिंह सेखों के जीवन का सफर…

इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ एयरफोर्स अफसर बने 17 जुलाई 1945 को जन्मे सेखों बचपन से ही वायुसेना से प्रेरित थे। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़कर देश के लिए आसमान में उड़ने का सपना पूरा किया। इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मंत्रालय की ओर से तैयार की गई वीरों की गाथा सिरीज में निर्मलजीत सिंह सेखों की बहन इंद्रजीत बोपाराय ने कहा- उनका (निर्मलजीत ) सपना बचपन से ही था कि देश के लिए कुछ बड़ा करें। इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की थी, लेकिन सिर्फ डेढ़ साल में छोड़ दी। उन्हें सिर्फ एक बात की लगन थी, डिफेंस में जाना है, चाहे आर्मी हो या एयरफोर्स। आखिरकार 1964 में उन्होंने एयरफोर्स को चुना और अपने सपने को पूरा किया।

खेल-खेल में कहा था- मैं हरि सिंह नलवा हूं उनके जीजा और बचपन के दोस्त कर्नल एसपीएस बोपाराय बताते हैं- बचपन में एक दिन सभी दोस्त इकट्‌ठे थे। तभी सभी ने आर्मी बन कर खेलने का फैसला किया। एक टीम के लीडर निर्मलजीत बन गए। निर्मलजीत ने कहा कि मैं हरि सिंह नलवा हूं। उनकी शुरुआत की जिंदगी से ही एक हीरो की झलक थी। चाचा जगजीत सिंह सेखों कहा करते थे- जट्‌टों (माता-पिता) के एक ही बेटे हो। इसका जवाब निर्मलजीत सिंह यह कहते हुए देते थे- जब मरना है, मर ही जाना है। मुझे किसी से डर नहीं लगता।

निर्मलजीत सिंह सेखों की बहन इंद्रजीत बोपाराय।

निर्मलजीत सिंह सेखों की बहन इंद्रजीत बोपाराय।

भारत-पाक युद्ध में सेखों की वीरता की कहानी…

पाकिस्तान के 6 सेबर जेट विमानों ने अचानक हमला किया 3 दिसंबर, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की शुरुआत दरअसल पाकिस्तान की आंतरिक समस्या से हुई थी। युद्ध की शुरुआत के बाद भारत के महत्वपूर्ण रक्षा ठिकानों पर पाकिस्तानी हमलों का खतरा बढ़ गया था। 14 दिसंबर 1971 को श्रीनगर एयरफील्ड पर पाकिस्तान के 6 सेबर जेट विमानों ने अचानक हमला कर दिया। सुरक्षा टुकड़ी की कमान संभालते हुए फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह यहां 18 नेट स्क्वॉड्रन के साथ तैनात थे। दुश्मन F-86 सेबर जेट विमानों के साथ आया था। उस समय निर्मलजीत के साथ फ्लाइंग लेफ्टिनेंट घुम्मन भी मौजूद थे।

निर्मल ने बिना ऑर्डर उड़ान भरने का निर्णय लिया सुबह 8 बजकर 2 मिनट पर चेतावनी मिली कि दुश्मन आक्रमण करने वाला है। निर्मलजीत सिंह और घुम्मन ने दुश्मनों से लोहा लेने के लिए उड़ान भरने का संकेत दिया और ऑर्डर मिलने का इंतजार करने लगे। जब कुछ देर तक कोई ऑर्डर नहीं मिला तो निर्मलजीत सिंह ने बिना ऑर्डर उड़ान भरने का निर्णय लिया। ठीक 8 बजकर 4 मिनट पर दोनों वायुसेना अधिकारी दुश्मन का सामना करने के लिए आसमान में थे। उस समय पाकिस्तान का पहला F-86 सेबर जेट एयरफील्ड पर हमले की तैयारी कर रहा था। एयरफील्ड से पहले घुम्मन के जहाज ने रनवे छोड़ा था। इसके बाद जैसे ही निर्मलजीत सिंह का जेट उड़ा, रनवे पर उनके ठीक पीछे एक बम आकर गिरा। घुम्मन उस समय एक सेबर जेट का पीछा कर रहे थे। सेखों ने हवा में आकर 2 पाकिस्तानी विमानों का सामना किया, इनमें से एक जहाज वही था, जिसने एयरफील्ड पर बम गिराया था।

मैं 2 सेबर जेट जहाजों के पीछे हूं…मैं उन्हें जाने नहीं दूंगा बम गिरने के बाद एयरफील्ड से कॉम्बेट एयर पेट्रोल का संपर्क निर्मलजीत सिंह और घुम्मन से टूट चुका था। बम गिरने के कारण सारी एयरफील्ड धुएं और धूल से भर गई थी। धुएं और धूल के कारण दूर तक देख पाना बेहद मुश्किल हो रहा था। तभी फ्लाइट कमांडर स्क्वॉड्रन लीडर पठानिया को नजर आया कि कोई 2 हवाई जहाज हमले की तैयारी में हैं। घुम्मन ने भी इस बात की कोशिश की कि वह निर्मलजीत सिंह की मदद के लिए वहां पहुंच सकें, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। तभी रेडियो संचार व्यवस्था से निर्मलजीत सिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी… ‘मैं 2 सेबर जेट जहाजों के पीछे हूं…मैं उन्हें जाने नहीं दूंगा…। इसके कुछ ही देर बाद जेट से हमले की आवाज सुनाई दी और देखते ही देखते पाकिस्तानी सेना का एक सेबर जेट आग में जलता हुआ गिरता नजर आया। तभी निर्मलजीत सिंह सेखों ने एक बार फिर अपना सन्देश प्रसारित किया-

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मैं मुकाबले पर हूं और मुझे मजा आ रहा है। मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के 2 सेबर जेट हैं। मैं एक का ही पीछा कर रहा हूं, दूसरा मेरे साथ-साथ चल रहा है।

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दुश्मन जहाजों को खदेड़ कर वीरगति को प्राप्त हुए इस संदेश के जवाब में स्क्वॉड्रन लीडर पठानिया ने निर्मलजीत सिंह को कुछ सुरक्षा संबंधी हिदायत दी, जिसे उन्होंने पहले ही पूरा कर लिया था। इसके बाद जेट से एक और धमाका हुआ, जिसके साथ दुश्मन के सेबर जेट के ध्वस्त होने की आवाज भी आई। अभी निर्मलजीत सिंह को कुछ और भी करना बाकी था, उनका निशाना फिर लगा और एक बड़े धमाके के साथ दूसरा सेबर जेट भी ढेर हो गया। कुछ देर की शांति के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का संदेश फिर सुना गया। उन्होंने कहा-

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शायद मेरा जेट भी निशाने पर आ गया है… घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।

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यह निर्मलजीत सिंह का अंतिम संदेश था। अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हुए भारतीय सीमा से पाकिस्तान के सेबर जट को खदेड़ कर निर्मलजीत सिंह सेखों वीरगति को प्राप्त हो गए।

परमवीर चक्र सम्‍मान पाने वाले एयरफोर्स के इकलौते जवान युद्ध का नुकसान आखिरकार पाकिस्तान को भुगतना पड़ा और युद्ध के अंत में हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में भारत सरकार ने फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों के साथ 3 और पराक्रमी योद्धाओं को परमवीर चक्र से सम्मानित किया। मगर, वायुसेना के किसी भी युद्ध में परमवीर चक्र पाने वाले सेनानियों में, केवल निर्मलजीत सिंह सेखों का नाम लिखा गया।

निर्मलजीत सिंह सेखों का लुधियाना में लगाया गया स्टेच्यू और जी-नेट विमान, जिसमें वे उड़ान भरा करते थे।

निर्मलजीत सिंह सेखों का लुधियाना में लगाया गया स्टेच्यू और जी-नेट विमान, जिसमें वे उड़ान भरा करते थे।

शादी के मात्र छह महीने बाद देश पर कुर्बान हो गए निर्मलजीत सिंह सेखों के दादा बचन सिंह ब्रिटिश आर्मी में थे और पिता त्रिलोक सिंह वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे। सेखों ने दसवीं तक की पढ़ाई गांव मोही में की, फिर कानपुर जाकर वायुसेना की ट्रेनिंग ली। उनकी शादी मंजीत कौर के साथ हुई थी। इस शादी को मात्र छह महीने ही हुए थे कि भारत-पाक युद्ध छिड़ गया था। इसी में वीरता का परिचय देते हुए निर्मलजीत देश पर कुर्बान हो गए।

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