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- Tradition Of Eating Cold Food On Sheetla Saptami And Ashtami, Rituals About Shitla Saptami, Story Of Sheetla Saptami
26 मिनट पहले
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21 मार्च और 22 मार्च को चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी है। इन तिथियों पर शीतला माता की विशेष पूजा और व्रत करने की परंपरा है। कुछ क्षेत्रों में सप्तमी और कुछ क्षेत्रों में अष्टमी तिथि पर महिलाएं ये व्रत करती हैं। इस व्रत में भक्त देवी मां को ठंडा खाना भोग में चढ़ाते हैं और खुद भी ठंडा खाना ही खाते हैं।
शीतला माता का व्रत स्वास्थ्य और परंपरा का संगम
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को शीतला माता की पूजा और व्रत का विधान है। इस व्रत को विशेष रूप से महिलाएं करती हैं और माता को ठंडा भोजन अर्पित करती हैं। मान्यता है कि यह व्रत करने से मौसमी बीमारियों से बचाव होता है। आइए, विस्तार से समझते हैं कि शीतला माता का स्वरूप कैसा है और इस व्रत की परंपराओं का क्या महत्व है।
शीतला माता का स्वरूप
शीतला माता का स्वरूप अन्य देवियों से अलग है। माता गधे की सवारी करती हैं और उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप और नीम के पत्तों की माला होती है। इन वस्तुओं का विशेष महत्व है:
कलश – शुद्धता और जीवन का प्रतीक है।
झाड़ू – सफाई का प्रतीक, जिससे रोगों का नाश होता है।
सूप – यह अनाज को छानने के लिए प्रयोग होता है, जो स्वच्छता का संदेश देता है।
नीम के पत्तों की माला – नीम के औषधीय गुणों के कारण इसे स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
व्रत और पूजा की परंपरा
शीतला माता का व्रत विशेष रूप से सप्तमी और अष्टमी तिथि को किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में सप्तमी को और कुछ में अष्टमी को यह व्रत रखा जाता है। इस दिन विशेष रूप से माता को ठंडा भोजन अर्पित किया जाता है। व्रत करने वाले भक्त भी ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं।
व्रत के नियम
- इस दिन व्रतधारी महिलाएं एक दिन पहले बनाया गया भोजन ग्रहण करती हैं।
- माता को खीर, चावल, मीठी रोटी और अन्य ठंडे व्यंजन अर्पित किए जाते हैं।
- नीम की पत्तियों का उपयोग घर की सफाई और स्वास्थ्य रक्षा के लिए किया जाता है।
- परिवार की सुख-समृद्धि और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए महिलाएं यह व्रत करती हैं।
ठंडा भोजन अर्पित करने का कारण
ऋतुओं के संधिकाल में, जब सर्दी समाप्त होती है और गर्मी शुरू होती है, तब मौसम में बदलाव के कारण कई प्रकार की बीमारियां फैलती हैं। इस समय खान-पान में विशेष सावधानी बरतनी आवश्यक होती है। ठंडा और बासी भोजन खाने से शरीर को गर्मी से राहत मिलती है और मौसमी रोगों से बचाव होता है।
शीतला माता से जुड़ी पौराणिक कथा
कहा जाता है कि प्राचीन समय में एक गांव के लोगों ने शीतला माता को गरम भोजन अर्पित कर दिया, जिससे माता का मुख जल गया और वे क्रोधित हो गईं। उनके क्रोध के कारण गांव में आग लग गई, लेकिन एक बूढ़ी महिला का घर इस आग से बच गया। जब लोगों ने इसका कारण पूछा, तो बूढ़ी महिला ने बताया कि उसने माता को ठंडा भोजन अर्पित किया था। तभी से माता को ठंडा भोजन अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।
स्वास्थ्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
शीतला माता की पूजा और व्रत को केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
स्वच्छता का महत्व – झाड़ू और सूप जैसी वस्तुएं सफाई का संदेश देती हैं, जो संक्रमण और बीमारियों से बचाव में सहायक हैं।
नीम के औषधीय गुण – नीम त्वचा रोगों और संक्रमण को दूर करने में सहायक होता है।
ठंडे भोजन का महत्व – मौसम परिवर्तन के समय हल्का और बासी भोजन खाने से पाचन संबंधी समस्याएं कम होती हैं।
संक्रमण से बचाव – बदलते मौसम में वायरल संक्रमण, सर्दी-जुकाम, आंखों की समस्याएं और फोड़े-फुंसी जैसी समस्याओं का खतरा रहता है। इस व्रत को करने से इन रोगों से बचाव होता है।