You have to make a balance… Follow your heart 20%, but believe in hard work 80% – Smriti Mandhana | इंस्पायरिंग: बैलेंस बनाना होगा… 20% मन की मानें, पर 80% मेहनत में यकीन रखें –   स्मृति मंधाना

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4 घंटे पहले

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  • वुमन इंटरनेशनल क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में शतक लगाने वाली पहली भारतीय बनीं हैं स्मृति। उनकी सफलता से जुड़ी कुछ बातें, उन्हीं की जुबानी …

मेरी जिंदगी जटिल नहीं है। मैं खुशी या दुख जैसी चीजों में ज्यादा नहीं उलझती। मैं थोड़ी-सी ‘न्यूट्रल’ हूं। अपनी जिंदगी को सादगी से जीना चाहती हूं, क्रिकेट खेलना चाहती हूं। मैदान पर जो हुआ उसे वहीं छोड़ देना, उस पर कुछ मिनट सोचना और फिर जब मैदान छोड़ूं तो भूल जाना। बहुत कम ऐसा होता है कि मैं नेगेटिव जोन में चली जाऊं। मैं ज्यादा भावुक नहीं होती, ज्यादा सोचती नहीं… क्योंकि अधिक सोचने से जिंदगी जटिल होती है। शतक बनाकर आऊं या शून्य पर आउट होकर, मुझे एक जैसा रहना पसंद है। जब मुझे मेरे इंटरनेशनल डेब्यू मैच के लिए फोन आया था, तब भी मैंने बस इतना कहा था, ‘ओके… थैंक यू’। तब मेरी उम्र 17 साल थी। करियर शुरू करने के करीब छह साल में मुझे कई अनुभव हुए। अब मैं जिंदगी के सफर को इस तरह देखती हूं कि हर कुछ सालों में आपको कुछ सीखना या सुधारना है। आप बेहतरी की तरफ बढ़ने की कोशिश खुद करते हैं। पहले इसके लिए कोशिश करें, लेकिन बाद में आप नेचरली करते हैं। बेहतर होना वो पल है जो मुझे खिलाड़ी और इंसान के तौर पर परिभाषित करता है, ट्रॉफियों से कहीं ज्यादा। मुझे लगता है हमेशा से ही मुझे क्रिकेट से प्यार रहा है। दूसरे बच्चों की तरह मुझे भी बैटिंग दूसरी चीजों से ज्यादा पसंद थी। बाद में मुझे समझ में आया कि क्रिकेट सिर्फ बैटिंग तक सीमित नहीं है। मैं बचपन में बस लटकती हुई गेंद को हिट करती रहती थी या गली क्रिकेट खेलती रहती थी। छोटी उम्र में मेरा मार्गदर्शन सिर्फ क्रिकेट के लिए मेरा प्यार था, खासकर बैटिंग के लिए मेरा प्यार। मैंने तय कर लिया था कि मुझे यही करना है। आज भी वही है। जब तक मुझे क्रिकेट खेलने में मजा आता रहेगा, मैं खेलती रहूंगी। यह मेरे लिए स्ट्रेस दूर करने का तरीका बन गया है, जब मैं बैटिंग कर रही होती हूं, तो मैं किसी और ही जोन में होती हूं। जब आप बहुत छोटी उम्र में ऐसा करते हैं, तो यह स्वाभाविक होने लगता है। झूठ नहीं बोलूंगी, मैं खुद को प्रैक्टिस के लिए मोटिवेट करती हूं क्योंकि मुझे हमेशा लगता है कि ये करना है, वो करना है। अगर हम कहें कि ‘हम मशीन हैं’ या हमें हर दिन एक जैसी प्रेरणा मिलती है, तो हम झूठ बोल रहे होंगे। जाहिर है, कुछ दिन ऐसे होते हैं जब लगता है, ‘आज जिम नहीं चलते हैं यार। आज थोड़ा ज्यादा आराम कर लेते हैं।’ लेकिन असली बात बैलेंस में है। मैं 20% समय अपने मन को जीतने देती हूं। 80% समय मैं खुद को मनाने में कामयाब हो जाती हूं कि चलो उठो और जाओ। खुद को कप्तान न समझना ही लीडरशिप है बतौर लीडर मैं चाहती हूं कि मेरे खिलाड़ी कंफर्टेबल महसूस करें, क्योंकि वही मेरे लिए मैदान पर काम करने वाले हैं। सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश करती हूं। मैं दूसरों को देखकर सीखती हूं। हीथर नाइट, मेग लैनिंग को देखती हूं कि वो कैसे लीड करती हैं। मेरे लिए कप्तानी का मुख्य पहलू यह है कि खुद को कभी कप्तान न समझें। आपको सभी के साथ रहना चाहिए। मेरी कप्तानी का फोकस है यह जानना कि मेरे खिलाड़ी मुझसे क्या चाहते हैं, न कि वो यह जानें कि मैं उनसे क्या चाहती हूं। (तमाम इंटरव्यूज में…)

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