2 घंटे पहलेलेखक: इंद्रेश गुप्ता
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बंगाली सिनेमा के दिग्गज एक्टर प्रोसेनजीत चटर्जी जल्द ही स्टार प्लस एक नया फैमिली ड्रामा शो ‘कभी नीम नीम कभी शहद शहद’ लेकर आ रहे हैं। यह शो रिश्तों की कड़वाहट और मिठास को रियलिस्टिक अंदाज में दिखाएगा। इसके अलावा वे फिल्म ‘मालिक’ से हिंदी डेब्यू भी कर रहे हैं। उनसे हुई खास बातचीत…
‘कभी नीम नीम…’ से कैसे जुड़े?
मैं शो से बतौर प्रोड्यूसर जुड़ा हूं। हिंदी टीवी में मेरा पहला कदम जरूर है लेकिन सोच हमेशा से नेशनल रही है। यह मेरे लिए बहुत खास है। मेरे पिता 60 के दशक में हिंदी फिल्मों का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में हिंदी इंडस्ट्री से रिश्ता पुराना है। आज जब हम ‘पैन-इंडिया’ की बात करते हैं, तो मेरा मानना है कि वह सिर्फ फिल्मों या ओटीटी तक सीमित नहीं रहना चाहिए। टीवी भी पूरे देश तक पहुंचने का बड़ा मीडियम है।
भारत के हर क्षेत्र में चाहे वो बंगाल हो, महाराष्ट्र, पंजाब या गुजरात जबरदस्त टैलेंट है। अब समय आ गया है कि उस टैलेंट को टेलीविजन के ज़रिए एक नेशनल प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाए। इस शो की राइटर और शो रनर राखी दी (राखी मल्लिक) हैं। जिनके साथ काम करना बेहतरीन अनुभव है। ये कहानी बहुत सधी हुई है और इसकी सादगी ही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। इसमें परिवार, पीढ़ियों के बीच के फर्क, और आज की सोच को एक साथ पिरोया गया है।

शो की कहानी कहां की है और किस पर फोकस है?
शो की कहानी राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसमें नई पीढ़ी और पारिवारिक संतुलन की सोच पर फोकस है। इसकी कहानी मुझे बहुत पसंद आई और इसमें हमारे कलाकार भी बहुत अच्छे हैं। मैंने बंगाल में बहुत साल पहले रितुपर्णो घोष जो हमारे डायरेक्टर थे, उनके साथ भी एक सीरियल बनाया था। तो हमारा कनेक्शन तो बहुत पुराना है। उन्होंने मुझसे कहा था कि कोई अच्छी कहानी हो तो करना। तो जब मेरी क्रिएटिव टीम ने मुझे ये कहानी सुनाई, तो मैंने कहा, मैं इससे बहुत खुश हूं। ये एक टीवी सीरियल है लेकिन इसमें कुछ अलग है। ये एक परिवार की कहानी है, जहां एक लड़की आती है और हर परिवार में होता है न, दो जेनरेशन के बीच का गैप।
क्या आप पैन इंडिया भी कोई प्रोजेक्ट कर रहे हैं?
मैं अभी नेशनली एक एक्टर के तौर पर बहुत काम कर रहा हूं। तो मैंने सोचा, ये भी शुरू करूं। ये अच्छा हुआ क्योंकि अभी जो समय है न… हमारा अभी हिंदी हो, बंगाली हो, पंजाबी हो, मराठी हो, हमें बोलना ही नहीं चाहिए। हम लोग सचमुच पैन-इंडिया हो गए हैं क्योंकि हम बैठ कर साउथ की फिल्म देखते हैं और कोई मलयाली एक्टर भी हमारी बंगाली फिल्म देखते हैं। हम पहले बोलते थे कि ये रीजनल है, ये वो लैंग्वेज है, लेकिन अब सब एक हो गया है।
मुझे लगता है कि यह टैलेंट के लिए एक बड़े प्लेटफार्म पर आने का सही समय है। हमारे बंगाली एक्टर लोग तमिल-तेलुगु फिल्में कर रहे हैं। मेरे पास भी ऑफर आते हैं। तो बंगाली लोग तमिल-तेलुगु कर रहे हैं और तमिल-तेलुगु वाले लोग… कुछ दिन पहले कमल हासन जी ने एक बंगाली फिल्म में काम किया। इसलिए वो फर्क अभी चला गया कि एक्टर्स किसी रीजन में फंसे रहें।

टीवी शोज की स्टोरी टेलिंग भी अब नई हो गई है। आप किस तरह से बदलाव लाना चाहते हैं?
अब दर्शकों की पसंद बदल गई है, और उसी के हिसाब से शो का फॉर्मेट भी बदल रहा है। आज के समय में लोग कम समय की और दमदार कहानियां देखना चाहते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि जल्दी ही टीवी पर भी शॉर्ट सीरीज़ का चलन बढ़ेगा, जैसा कि ओटीटी पर हो रहा है। भले ही आज के दौर में ओटीटी का नाम बहुत है लेकिन भारत में अब भी टीवी सबसे बड़ा माध्यम है, क्योंकि हर किसी के पास स्मार्टफोन या इंटरनेट नहीं है। देश में अब भी लाखों-करोड़ों लोग ऐसे हैं जो सिर्फ टीवी देखते हैं। इसलिए टीवी कंटेंट का मजबूत और ताजा होना बहुत जरूरी है।
हमने अपने शो को राजस्थान के बैकग्राउंड पर रखा है। ये लोकेशन ही कहानी को अलग फ्लेवर देती है। अब सिर्फ एक्टिंग ही नहीं, बल्कि शो का लुक, किरदारों का बोलने का अंदाज और कहानी कहने का तरीका सब कुछ बदल रहा है। अब टीवी, फिल्म और ओटीटी के बीच एक नई क्रिएटिव स्पेस बन चुकी है, जहां अलग-अलग भाषाओं और संस्कृतियों की कहानियां एक-दूसरे में घुल रही हैं। आज बंगाली शो मराठी में बन रहे हैं, कन्नड़ कहानियां बंगाली में। जैसे दुनिया में स्पेनिश शो का रीमेक बन रहा है, वैसे ही भारत में भी हमारे रीजनल टैलेंट का रीमेक करके उसे नेशनल स्तर पर लाया जा सकता है। लोगों को ये बिल्कुल नया और ताज़ा लगेगा।
अक्सर टीवी शोज़ कुछ समय बाद मोनोटोनस यानी एक जैसे लगने लगते हैं। आप इसे कैसे अलग बनाएंगे?
मुझे पूरा भरोसा है। हमने जो प्लानिंग की है, उसके मुताबिक दो साल तक तो शो में कोई दोहराव नहीं होगा। कंटेंट और कैरेक्टर्स इतने अलग और दिलचस्प हैं कि दर्शकों को बोरियत महसूस नहीं होगी। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ढाई-तीन साल बाद भी यह मोनोटोनस नहीं होगा। इस शो में सिर्फ सीनियर कैरेक्टर्स नहीं हैं, बल्कि एक यंग गैंग है जो आज की जेनरेशन को रिप्रेजेंट करता है। यही बात इस शो को बाकी सीरियल्स से अलग बनाती है। ये रोना-धोना वाला शो नहीं है, इसमें इमोशन्स हैं, लेकिन वो पुराने ढर्रे वाले नहीं।

पूरा शो बहुत लाइवली और आज के वक्त के हिसाब से डिजाइन किया गया है। बाकी हर क्रिएटिव इंसान सम्मान के लायक है। अगर ऐसा कहा जाता है कि कुछ टीवी शोज एक ही फॉर्मेट या रोने-धोने जैसे आते रहे हैं तो उनसे भी इंडस्ट्री को एक नई दिशा मिली, उसे जिन्होंने बनाया उनका फॉर्मेट इतना असरदार रहा कि रीजनल इंडस्ट्रीज ने भी उसे अपनाया। इसलिए मैं मानता हूं कि जिसने भी कुछ नया और बड़ा किया है, उसकी तारीफ और रिस्पेक्ट होनी चाहिए।’
आप राजकुमार राव की फिल्म ‘मालिक’ में भी नजर आने वाले हैं। क्या कुछ शेयर करना चाहेंगे?
इस पर मैं एक तारीख के बाद बात करूंगा लेकिन हां, ये एक बड़ी बात है, क्योंकि अब मैं हिंदी फिल्मों में भी एक्टिव हो रहा हूं। केवल एक्टिंग ही नहीं, प्रोडक्शन में भी। एक हिंदी फिल्म प्रोड्यूस भी कर रहा हूं। कोशिश कर रहा हूं कि अच्छे कंटेंट के साथ एक मजबूत फिल्म बने। आने वाले दिनों में एक फिल्म को लेकर ब्रेकिंग न्यूज अनाउंस करूंगा। ‘मालिक’ को लेकर बहुत कम लोगों को पता है कि मैं भी उसमें हूं। यह प्लानिंग के तहत ही छिपाकर रखा गया था। ट्रेलर लॉन्च पर इसकी पूरी तस्वीर सामने आएगी। सितंबर में भी मेरी एक फिल्म रिलीज हो रही है, जो एक रियल हिस्टोरिकल कैरेक्टर पर आधारित है। मैं चुनिंदा लोगों को इसकी स्क्रीनिंग के लिए आमंत्रित करूंगा।

एक प्रोड्यूसर के तौर पर आप बंगाली फिल्मों के स्केल को किस तरह देखते हैं?
देखिए, हर रीजन की अपनी ताकत होती है। बंगाली और मराठी सिनेमा को हमेशा इंटेलेक्चुअल और साहित्यिक दृष्टि से मजबूत माना गया है। जैसे मैंने एक फिल्म ‘चोखेर बाली’ की थी, जो काफी स्केल पर बनी और बहुत बड़ी हिट थी। उसी साल रोजा भी आई थी। मेरा मानना है कि अगर बंगाली फिल्म इंडस्ट्री को स्केल बढ़ाना है, तो सिर्फ दिखावे से नहीं होगा—हमें कंटेंट, साहित्य और अपनी जड़ों को साथ लेकर चलना होगा। जैसे मलयालम सिनेमा रियलिज्म में आगे है, मराठी सिनेमा अपनी कहानियों की सच्चाई के लिए जाना जाता है, वैसे ही बंगाली सिनेमा को अपनी ताकत—साहित्य, इतिहास और सोच—से काम करना चाहिए। अगर आप सिर्फ किसी और इंडस्ट्री को कॉपी करने लगेंगे, तो बात नहीं बनेगी।