"ॐ शं शनैश्चराय नमः"

“ॐ शं शनैश्चराय नमः” का अर्थ है “ओम, शांति को, शनिश्चराय (शनि देवता) को, नमः (नमस्कार)।” इस वैदिक मंत्र का जाप शनि देवता की कृपा और शुभाशीष प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस मंत्र के जाप से शनिदेव के अशुभ प्रभाव दूर हो जाते है ।

शनि बीज मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

शनिदेव जी कौन है?

शनिदेव, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जिन्हें शनिश्चर भी कहा जाता है। उन्हें कर्मफल के देवता माना जाता है, और उनका प्रभाव व्यक्ति के कर्मों के अनुसार होता है। शनिदेव को ज्यादातर नीले या काले कपड़ों में दिखाया जाता है और वे काले घोड़े या काले कौवे पर सवारी करते हैं। उनके हाथ में गदा, त्रिशूल और कमल का फूल होता है। शनिदेव का संबंध शनि ग्रह से है, जिसे अंग्रेजी में सैटर्न कहते हैं। उन्हें सूर्यदेव और छाया (संवर्णा) का पुत्र माना जाता है।

मत्स्य पुराण के ग्यारवें अध्याय में सूर्यवंश परम्परा का वर्णन करते हुए सूतजी जो कथा ऋषियों बतलाई थी, वही कथा यहां दी जा रही है I इस कथा में शनि की उत्पति के कुछ पुष्ट संकेत मिलते है I

मत्स्य पुराण के ग्यारवें अध्याय में सूर्यवंश परम्परा का वर्णन करते हुए सूतजी जो कथा ऋषियों बतलाई थी, वही कथा यहां दी जा रही है I इस कथा में शनि की उत्पति के कुछ पुष्ट संकेत मिलते है I
कथा के अनुसार सूर्य देव की चार पत्निया थी I उनमे से संज्ञा विश्वकर्मा की की पुत्री थी जबकि राज्ञी रेवत की कन्या थी और उनकी एक अन्य पत्नी प्रभा थी I चौथी पत्नी छाया संज्ञा के ही शरीर से उत्पन्न हुई थी I

सूर्य पत्नी संज्ञा से वैवस्वत मनु था यम नाम के दो पुत्र व यमुना नाम की कन्या उत्पन्न हुई I राज्ञी के रैवत नामक व प्रभा के प्रभात नामक पुत्र उत्पन्न हुए I इनमे से यम व यमुना जुड़वाँ उत्पन्न हुए थे I चौथी पत्नी छाया के गर्भ से संज्ञा पुत्र मनु के समान ही रंग रूप वाला पुत्र हुआ जो सावर्णि कहलाया I इसके बाद सूर्य और छाया के शनि नामक पुत्र व तपती और विष्टि नामक पुत्रियां हुई I

छाया की उत्पति में भी एक कथा कही गयी है कि संज्ञा जब सूर्य के तेज को सहन नहीं कर पायी तो उसने अपने अंग से छाया नामक अतिसुन्दर स्त्री को उत्पन्न किया और उसे अपने पति देव की सेवा और अपनी सन्तानों के पालन पोषण करने को कहा I सूर्य देव इस रहस्य से अनभिज्ञ थे, वे छाया को संज्ञा समझ क्र यथावत व्यवहार करते रहे जिसके फलस्वरूप छाया के एक पुत्र उत्पन्न हुआ जो संज्ञा नदन के पुत्र वैवस्वत मनु जैसा रूप रंग वाला था जो बाद में सावर्णि के नाम से प्रसिद्ध हुआ I इस तरह से छाया और सूर्य देव के शनि पुत्र रूप में और तपती और विष्टि नामक दो पुत्रियां हुई I इस तरह सूर्य देव की कुल नौ संताने हुई, जिनमें छह पुत्र और तीन पुत्रियां थीं I 

शनिदेव का प्रकोप और आशीर्वाद दोनों ही व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। वे व्यक्ति के कर्मों के आधार पर उसे दंडित या पुरस्कृत करते हैं। ज्योतिष में, शनि की स्थिति और दशा का व्यक्ति के जीवन पर विशेष महत्व है, और इसके आधार पर ज्योतिषी विभिन्न उपाय सुझाते हैं।शनि देवता को यहां विशेष रूप से न्याय और कर्मफल के विचार में जाना जाता है:

  1. कर्मफल के देवता: शनिदेव को कर्मफल के प्रबंधन का अधिकारी माना जाता है। व्यक्ति के कर्मों के आधार पर उनका प्रभाव होता है, और यह उसके जीवन में संघर्षों और परिक्षणों की परीक्षा के रूप में प्रकट हो सकता है।

  2. न्याय और इंसाफ: शनिदेव को न्याय के देवता के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें मिलने वाले फलों की विधि और विचार का प्रमुख समर्थन करने वाले माना जाता हैं।

  3. शिक्षा और सीखने का संकेत: शनिदेव की पूजा और उनके मंत्रों का जप करने से यह भी सिखने का संकेत हो सकता है कि व्यक्ति को अपने कर्मों में सीखना चाहिए और उन्हें न्यायपूर्ण रूप से करना चाहिए।

द्वितीय चरण के शनि साढ़ेसाती निवारण के निम्नलिखित उपाय है जिनके उपयोग से जातक शनि की अशुभता को काम कर सकता है :-

शनिदेव का परिवार

  1. पिता: भगवान सूर्यदेव
  2. माता: छाया देवी (संवर्णा)
  3. सौतेली माता: संज्ञा देवी
  4. भाई: यमराज, श्रवण, वैवस्वत मनु
  5. बहन: यमुनाजी, भद्रा (तप्ती)
  6. पत्नी: नीलादेवी और मंदा देवी
  7. पुत्र: कुलिगन और गुलिक

शनिदेव का स्वरुप

शनि के स्वरुप का वर्णन करते हुए महर्षि पराशर जी ने बृहत होराशास्त्र में शनि का शरीर दुबला-पतला लेकिन लंबा, नेत्र पिंगलवर्णी दांत मोटे स्वभाव आलसी व शनि के रोम तीखे व कठोर बतलाया है। यह शुद्र वर्णी व तामसी प्रवृति के हैं।

मतस्य पुराण में शनिदेव की कांति को इंद्रमणि जैसा बतलाया है व शनिदेव हाथ में धनुष, त्रिशुल व वरमुद्रा धारण किए हुए लोहनिर्मित रथ पर विराजमान बतलाया है । आचार्य वराह मिहिर रचित बृहत संहिता में शनिदेव को मंदबुद्धि, कृशकाय, नेत्र पिंगलवर्णी, विकृत दांत वात प्रवृति व रुखे बालों वाला ग्रह बतलाया है ।

ग्रहों में शनिदेव को क्रूर, पापीग्रह के रुप में जाना जाता है । जिस पर भी शनिदेव की क्रूर दॄष्टि पड़ जाए उसका विनाश हो जाता है । शनिदेव की दशा का प्रभाव किसी भी जातक पर प्राय: 36 से 45 वर्ष की आयु में अधिक रहता है । शनि की दशा में काले घोड़े की नाल का छल्ला या नौका की कील से बना छल्ला धारण करें । शनि का प्रमुख रत्न नीलम है । नीलम के अभाव में जामुनिया, नीलमा, नीला कटहला भी धारण किया जा सकता है। शनि का स्थायी निवास पशिचम दिशा है वैसे इनके आधिपत्य में सौराष्ट्र प्रदेश, घाटियां, बंजरभूमि, मरुस्थल, भंगनिवास, कोयले की खान, जंगम पर्वत, मलिन स्थल है।

शनिदेव के क्या क्या कारकत्व है?

शनिदेव के कारकत्व – आलस्य, हाथी, रोग, विरोध, दासकर्म, काले धान्य, झूठ बोलना, नपुंसकता, चांड़ाल, विकृत अंग, शिशिर ऋतु, लोहा, शल्य विधा, कुत्ता, प्रेत, आग, वायु, वृद्ध, वीर्य, संध्या, अतिक्रोध, स्त्रीपुरक सुख, कारावास, स्नायु, अवैध संतान, यम पूजक, वैश्य, कृषि कर्म, शूद्र, पशिचम दिशा, कंबल, बकरा, रतिकर्म, पुराना तेल, भय, मणि, वनचर, मरण आदि।

शनिदेव के नाम

शनिदेव के एक सौ आठ नाम हैं, जो उनके विभिन्न गुणों और स्वरूपों को दर्शाते हैं। कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं

  • शनैश्वर – शनिदेव के मुख्य नामों में से एक, जिसका अर्थ है “शनै-शनै चलने वाला”।
  • शनिश्चर – जो धीरे-धीरे चलता है।
  • छायापुत्र – छाया देवी के पुत्र।
  • सूर्यपुत्र – सूर्यदेव के पुत्र।
  • कृष्णांग – जिसका शरीर काले रंग का है।
  • मंद – जो धीरे-धीरे चलता है।
  • सौरी – सूर्य के पुत्र के रूप में।
  • सौरि – सूर्य से उत्पन्न हुआ।

शनिदेव की दान योग्य वस्तुएं

शनिदेव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का दान करते हैं। शनिदेव को दान करने के लिए कुछ प्रमुख वस्तुयें बताई गयी हैं जैसे कि-

1. काला तिल – शनि की शांति के लिए।
2. काली उड़द – शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए।
3. काले वस्त्र – शनिदेव की कृपा के लिए।
4. काला जूता – शनि दोष निवारण के लिए।
5. लोहा – शनि के प्रभाव को कम करने के लिए।
6. काले चने – शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए।
7. तेल (सरसों का तेल) – शनि की शांति के लिए।
8. नीलम रत्न – शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए।
9. काला कंबल – शनि दोष निवारण के लिए।
10. पुस्तकें और शिक्षा सामग्री – गरीब बच्चों को।

शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है, क्योंकि यह दिन शनिदेव को समर्पित है। दान करने से पहले शनिदेव के मंत्रों का जाप करना भी शुभ माना जाता है।

शनिदेव से संबंधी व्यवसाय

शनिदेव से संबंधी व्यवसाय और क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों पर उनका विशेष प्रभाव माना जाता है। शनिदेव न्याय, कर्म, और कठिन परिश्रम के देवता हैं, और जिन व्यवसायों में अनुशासन, धैर्य और न्याय की आवश्यकता होती है, वे शनिदेव से प्रभावित माने जाते हैं। यहाँ कुछ व्यवसाय दिए गए हैं जो शनिदेव से संबंधित माने जाते हैं:

  1. लोहे का व्यापार – लोहे और धातुओं का कारोबार करने वाले लोग।
  2. तेल का व्यवसाय – सरसों का तेल और अन्य तेलों का उत्पादन और व्यापार।
  3. वाहन उद्योग – वाहनों का निर्माण और बिक्री।
  4. कोयले का व्यापार – कोयला खनन और वितरण।
  5. भूमि और अचल संपत्ति – जमीन, भवन, और अन्य अचल संपत्तियों का व्यापार।
  6. कानूनी सेवाएँ – वकील, न्यायाधीश, और अन्य कानूनी पेशेवर।
  7. प्रशासनिक सेवाएँ – सरकारी अधिकारी, प्रशासनिक सेवा में कार्यरत लोग।
  8. सुरक्षा सेवाएँ – पुलिस, सेना, और सुरक्षा गार्ड।
  9. खान और खनिज – खनिज पदार्थों का खनन और व्यापार।
  10. गंभीर शोध और अनुसंधान – वैज्ञानिक और शोधकर्ता जो गंभीर और गहन अध्ययन में संलग्न हैं।

धार्मिक पुस्तकें (पीडीऍफ़)

चालीसा संग्रह (वीडियो)

शनिदेव की पूजा-अर्चना मंत्र

  • शनिदेव जी का गायत्री मंत्र

ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात्  । ॐ शनैश्चराय नमः। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ।

  • शनि का वैदिक मंत्र

 ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः

  • ध्यान मंत्रा :
    ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम ।
    छायामार्तण्ड संम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम ।
  • || दशरथ कृत शनि स्तोत्र ||

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥१॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥२॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते॥३॥

नमो घोणतुण्डाय दीर्घग्रीवाय नमोऽस्तु ते। नम: किरीटिने देव दण्डाय च नमो नम:॥४॥

नमो मन्दगते तुभ्यं नम: शौरये नमोऽस्तु ते। नम: कल्याणरूपायकृष्णाय च नमो नम:॥५॥

नमोऽस्तु तेजसां पुंज नमोऽस्त्वन्धकारिणे। नमो यमसखायाथ मन्दाय च नमो नम:॥६॥

प्रसादं कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत:। एकश्लोकी यदा स्तोत्रं स नरो य: पठेत्तु स:॥७॥

दुःखानि नाशमायान्ति सुखसम्पत्ति च जायते। एकविंशतिसाहस्त्र य: पठेत्सततं नर:॥८॥

तस्य प्रसादात्सौख्यं स्यात्सर्वारिष्टं व्यपोहति।
॥ इति श्री दशरथकृतं शनि स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

डिसक्लेमर

‘ये सब जानकारी विभिन्न माध्यमों/ प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से एकत्रित की है और आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य केवल आपको अपने देवी-देवताओं से अवगत कराना है I हम किसी की भावना को आहत करना नहीं चाहते है, यदि हमारे लेख में किसी भी प्रकार की त्रुटि हो तो हम क्षमाप्रार्थी हैं I ‘

Scroll to Top