शनिदेव जी का जन्म

शनिदेव जी का जन्म

सूर्यदेव जी की चार पत्नियाँ हैंऔर उनकी कुल नौ सन्तानों में से एक शनि भी हैं I सूर्य की उत्पति महर्षि कश्यप व देवमाता अदिति के सयोंग से पूर्वकाल में हुई थी I अतः शनिदेव जी का गोत्र कश्यप माना गया है I मत्स्य पुराण के ग्यारवें अद्याय में सूर्य वंश परम्परा का वर्णन करते हुए सूतजी ने जो कथा ऋषियों को बतलायी थी , वही कथा
यहाँ दी जा रही है I इस कथा में शनि की उत्पति के बारे में संकेत मिलते हैं I
कथा के अनुसार सूर्य देव की चार पतिनयाँ थी , उनमें से संज्ञा विश्वकर्मा की पुत्री थी जबकि राज्ञी रेवत की कन्या थी, एक अन्य पत्नी प्रभा थी और चौथी पत्नी छाया संज्ञा के ही शरीर से उत्पन हुई थी I सूर्य पत्नी संज्ञा से वैवस्वत मनु तथा यम नाम के दो पुत्र व यमुना नाम की कन्या उत्पन हुई , राज्ञी के रैवत व प्रभा के प्रभात नामक पुत्र उत्पन हुए चौथी पत्नी छाया के गर्भ से सावर्णि नाम के पुत्र हुए I इसके बाद छाया ने शनि नामक पुत्र व तपती तथा विस्टी नाम की दो कन्यांओ को उत्पन किया I

छाया की उत्पति का भी एक कारण था , वह कथा कुछ इस तरह से है कि सूर्य के तेज को संज्ञा सहन नहीं कर सकी तब उसने अपने ही अंग से छाया को उत्पन किया और कहा कि ” हे छाया ! तुम मेरे पति कि सेवा करती रहना और मेरी सन्तानो का भी पालन पोषण तुम मातृवत करती रहना I “
तब छाया ने ” ऐसा ही होगा ” कह कर सूर्य देव की सेवा में चली गयी तब सूर्य देव और छाया के प्रथम संतान जो संज्ञानंदन वैवस्वतमनु जैसा सुन्दर रंग रूप वाला था जो बाद में छायापुत्र सावर्णि के नाम से प्रसिद्ध हुआ I इसके बाद छाया ने एक और पुत्र शनि देव और दो कन्याओं तपती और विस्टि को जन्म दिया I इस तरह सूर्यदेव की कुल नौ संताने हुई, जिनमें छह पुत्र व तीन कन्याएं थीं I ग्रहों में शनि देव को क्रूर , पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है जिस पर शनि की क्रूर दृस्टि पड़ती है वह व्यक्ति विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है I
शनि देव की उत्पति के सन्दर्भ में अनेक पौराणिक कथाएं वर्णित है उन्ही में से एक ये भी है की जब सृस्टि की रचना हुई तब विष्णु भगवान ने सृस्टि के जीवों का पालन व उनकी रक्षा का भार लिया और ब्रह्मा जी ने जीव रचना तथा भगवान शिव जी ने संहार करने का कार्य स्वीकार किया I   भगवान शिव जी ने अपने कार्य की पूर्ति के लिए गणों की उत्पति की, उसी काल में सूयर्देव की नौ सन्तानों ने जन्म लिया I उन सन्तानों में से यम व शनि बहुत उदण्ड थे उनकी उदंडता को देखकर शिवजी ने यम को मृत्यु का देवता व शनि को कर्मानुसार जीवों को दंड देने का कार्य सौंपा I  

***ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्***

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