रावण की कैद से शनिदेव की मुक्ति
हनुमान जी ने एक बार कृपा करके महाकाल सहित शनिदेव जी को रावण की कैद से मुक्त कराया था I कथा है कि लंका का राजा रावण न केवल महायोद्धा, तपस्वी, मायावी था, वरन वह भगवान शिव का भी परम् भक्त था I एक बार उसने तपस्या करके ब्रम्हाजी से वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु मनुष्यो व् वानरों के अतिरिक्त किसी के हाथों से न हो I वरदान पाकर वह घमंडी हो गया, अवसर पाकर उसने शनि लोक पर चढ़ाई कर और शनि व् महाकाल को बंदी बनाकर लंका ले आया I उस दुष्ट ने शनिदेव और महाकाल को ब्रह्मपाश में जकड़कर अपने बंदीगृह में उल्टा लटका दिया I अब वो दोनों अपने स्वामी शिव भगवान का स्मरण कररने लगे I कुछ काल पश्चात शिव प्रगट हुए और उन्होंने उन दोनों को आश्वस्त किया कि वे शीघ्र ही हनुमान रूप में उन्हें मुक्त कराएंगे I इधर जब रावण का अत्यचार बढ़ने लगा और उसके पापों से पृथ्वी बोझिल हो गयी तब उसके संहार के लिए भगवान् विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया और लक्ष्मीजी पृथ्वी पुत्री सीता के रूप में अवतरित हुईं I कालांतर में राम अपने अनुज व् सीता के साथ पिता कि आज्ञा का पालन करने हेतु चौदह वर्ष के लिए वन में रहने लगे I एक दिन रावण कि बहन श्रुपनखा वन आयी और राक्षसी माया फ़ैलाकर राम-लक्ष्मण को युद्ध के लिए प्रेरित करने लगी I उस युद्ध में रावण के खर, दूषण, त्रिशिरा जैसे शूरमा मारे गए I रावण को जब यह पता चला तो वह साधु रूप में मारीच के सहयोग से सीता का अपहरण कर लंका ले आये और अशोक वाटिका में छुपाकर रख दिया I उन्हीं दिनों राम कि भेंट रुद्रावतार हनुमान जी से हुई और फिर सीता जी कि खोज का कार्य शुरू हुआ I हनुमान जी ने समुद्र -पार करके लंका में प्रवेश किया और अंततः अशोक वाटिका में सीताजी को खोज निकला I हनुमान जी ने अपनी लीला दिखाने के लिए अशोक वाटिका को उजाड़ना शुरू कर दिया, रावण ने हनुमान जी को पकड़ने लिए अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा लेकिन हनुमान जी ने उसे मौत के घाट उतार दिया I अंत में मेघनाथ ने उन्हें ब्रम्ह्पाश में जकड़कर रावण के समक्ष उपस्थित किया और रावण ने उनकी पूँछ को आग लगाने का आदेश दिया I हनुमान जी ने अपनी पूँछ से पूरी लंका जला डाली लेकिन उन्होंने देखा कि जलने के बाद भी लंका श्याम नहीं हुई I तभी उनकी दृष्टि रावण के बंदीगृह में उलटे लटके शनिदेव जी पर पड़ी, उन्होंने अपनी पूरी व्यथा हनुमान जी को बताते हुए कहा कि रावण ने उनकी शक्ति को अपनी माया से कीलित कर दिया है, वे उन्हें मुक्त करायें और शक्ति का उत्कीलिन करें I हनुमान जी वैसा ही किया फिर हनुमान जी के प्रताप व् शनि कि दृष्टि पड़ने से लंका जलकर राख समान हो गयी I बाद में हनुमान जी महाकाल को मुक्त करा दिया I
शनिदेव बोले कि हे महावीर ! मै सदा ही आपका ऋणी रहूंगा I तब हनुमान जी ने शनिदेव जी को दिव्य दृष्टि प्रदान कर उनको अपने रूद्र रूप के दर्शन करवाएI
उस समय शनिदेवजी ने हनुमान जी के चरण पकड़ लिए और कहा कि प्रभो ! आज से मै आपके भक्तों को कभी भी पीड़ित नहीं करूंगा और जो कोई इस कथा को भक्तिभाव से सुनेगा, मै उसकी रक्षा करूंगा I जो मनुष्य हनुमान जी व् शनिदेव जी इस कथा वार्ता को सुनता, सुनाता है, उस पर शनिदेव जी कि साड़ेसाती, ढैया व् अन्य शनि प्रकोप का प्रभाव नहीं पड़ता I शनिदेव जी कि साड़ेसाती, ढैया व् अन्य शनि प्रकोप से त्रस्त व्यक्ति को हनुमंत सहस्रनाम का नित्य पाठ करना चाहिए I
*** ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।***