tula rashi pr shani ka prbhav

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तुला राशि के लिए शनि की साढ़े साती का प्रभाव

साढ़ेसाती एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय सिद्धांत है, जो शनि ग्रह के प्रभाव को दर्शाता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शनि, किसी व्यक्ति की चंद्र राशि से एक राशि पहले, चंद्र राशि के समान और एक राशि बाद में आता है। इस प्रक्रिया में कुल तीन राशियां शामिल होती हैं, जिनमें से ऊपर के दो राशियों में शनि का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर विभिन्न तरीके से पड़ता है। यह स्थिति लगभग साढ़े सात वर्ष की अवधि में होती है, और इसे जीवन में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के रूप में देखा जाता है।

Tula Rashi

साढ़ेसाती के दौरान व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के अनुभव संभव हैं। इस अवधि में व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें स्वास्थ्य समस्याएं, वित्तीय संकट, या भावनात्मक संघर्ष शामिल हो सकते हैं। हालांकि, यह समय आत्म-विश्लेषण और व्यक्तिगत विकास के लिए भी उपयुक्त होता है, जो व्यक्ति को अपने अंतर्मन को समझने और सामाजिक तथा व्यक्तिगत रिश्तों को मजबूत करने में मदद कर सकता है।

साढ़ेसाती की अवधि को तीन चरणों में बांटा जा सकता है – पहले चरण में शनि की दृष्टि व्यक्ति को कठिनाइयों में डाल सकती है, जबकि दूसरे चरण में व्यक्ति को धैर्य और संघर्ष का सामना करना पड़ता है। अंततः, तीसरे चरण में यदि व्यक्ति अपने मार्ग पर स्थिर रहता है, तो अक्सर सुखद परिणाम देखने को मिलते हैं। इस प्रकार, साढ़ेसाती केवल एक कठिनाई नहीं, बल्कि जीवन में उन्नति की एक प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करती है। जीवन के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर सही मार्गदर्शन और समझ आवश्यक होती है।

शनि साढ़ेसाती के तीन चरण

साढ़े साती को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है: प्रारंभिक चरण, मध्य चरण, और अंतिम चरण। प्रत्येक चरण अपने आप में महत्वपूर्ण होता है और व्यक्ति के जीवन पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव डालता है।

  1. पहला चरण: प्रथम ढाई वर्ष  के काल में संतान सुख में बाधा, धन सम्पति की हानि, मित्र  व्  कुटुंब -परिवार जन से वैर-विरोध व् कटुता बढ़ जाती है I  चोट आदि लगने की सम्भावना बढ़ जाती है I जातक में नास्तिकता का भाव होने से दया-परोपकार- ईश्वर-भक्ति, पूजा-पाठ, कर्मकांड और प्रेम-अपनत्व से सर्वथा दूर रहता है I
  2. दूसरा चरण:जब शनि कर्क राशि से गोचर होकर लग्न भाव में आ जाये तो साढ़ेसाती का द्वितीय चरण आरम्भ हो जाता है I इस समय, जातक अपने आस-पास के वातावरण में बदलाव महसूस कर सकते हैं। यह चरण अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है, जहाँ मानसिक तनाव और नकारात्मकता का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, यह समय आत्म-विकास का भी है, क्योंकि इस चरण में व्यक्ति को अपनी क्षमताओं और अंतर्दृष्टि को विकसित करने का अवसर मिलता है।
  3. तीसरा चरण: अंत में ५ वर्ष बाद ढाई वर्ष के लिए कन्या राशि पर शनि का गोचर काल रहता है I इस अवधि में जातक के पेशेवर जीवन और व्यक्तिगत संबंधों में विभिन्न बदलाव आ सकते हैं। यह चरण एक सकारात्मक अंतर्दृष्टि का संकेत देता है, जहाँ व्यक्ति अपने स्थापित किए गए रिश्तों और करियर में स्थिरता को प्राप्त कर सकता है। हालाँकि, इस समय धैर्य और अनुशासन की आवश्यकता होती है।

तुला राशि पर शनि साढ़ेसाती के तीनो चरणों का प्रभाव

तुला राशि, जो मुख्यतः सामंजस्य, संतुलन और सहयोग का प्रतीक है, शनि ग्रह की प्रभावशीलता के प्रति संवेदनशील होती है। शनि, जिसे न्याय का देवता भी माना जाता है, अपने कठोर नियमों और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध है। तुला में शनि के प्रभाव का अभिप्राय केवल सकारात्मक या नकारात्मक परिणामों से नहीं होता, बल्कि यह संपूर्ण जीवन में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जब शनि तुला राशि में प्रवेश करता है, तो यह व्यक्ति के संबंधों और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। शनि की स्थिरता और तुला की मेलजोल की प्रवृत्ति मिलकर व्यक्ति में एक गहरी आत्म-चिंतन की प्रक्रिया उत्पन्न कर सकती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, व्यक्ति अपने संबंधों को बेहतर बनाने, समझने और संतुलन पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास कर सकता है। इसके साथ ही, शनि से उत्पन्न कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता भी विकसित होती है।

हालांकि, शनि का प्रभाव हमेशा सकारात्मक नहीं होता। कभी-कभी यह तनाव और दबाव का कारण बन सकता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में चुनौतियों का सामना कर सकता है। उदाहरण के लिए, मित्रता और साझेदारी में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, तुला राशि के लोग इस समय में धैर्य और संयम बनाए रखने की आवश्यकता महसूस कर सकते हैं। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शनि की शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को सिखाना और उसे मजबूत बनाना होता है।

अंततः, शनि का तुला राशि पर प्रभाव यह दर्शाता है कि कठिनाइयों का सामना करने से व्यक्ति का विकास हो सकता है। इस प्रकार, तुला राशि के लोग शनि के प्रभाव को एक अवसर के रूप में देख सकते हैं, जो उन्हें आत्म-विश्लेषण और स्थिरता की ओर अग्रसर कर सकता है।

पहला चरण: शनि साढ़ेसाती का आरंभ

पहले चरण, जिसे शनि साढ़ेसाती का आरंभ कहते हैं, तुला राशि के जातकों के लिए अनेक चुनौतियों और परिवर्तनों का वाहक हो सकता है। इस चरण की शुरुआत उनके राशि स्वामी शुक्र की स्थिति के आधार पर होती है, जब शनि धनु राशि में प्रवेश करता है। इस समय जातक अपनी व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव का सामना कर सकते हैं, कि किस प्रकार ये परिवर्तन उनके जीवन को प्रभावित करते हैं।

इस समय जातकों को मानसिक तनाव और तनाव के साथ-साथ पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें अपने आस-पास के लोगों से भी सही समर्थन नहीं मिल सकता है, जिससे स्थिति और जटिल हो सकती है। इसके अतिरिक्त, पहले चरण में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, जिनका तुरंत ध्यान देना आवश्यक होता है। यह समय खुद को सां्भालने और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए एक आत्मावलोकन का होता है।

इस चरण में जातक को अपने कार्यों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है। ऐसे में स्वास्थ्य, परिवार और करियर के बीच सामंजस्य बिठाने का प्रयास आवश्यक है। शनि की स्थिति व्यक्ति में अनुशासन और धैर्य का गुण पैदा कर सकती है, जो कठिनाइयों से पार पाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। कुछ जातकों के लिए यह दौर शिक्षा और कौशल विकास के लिए भी अच्छा समय हो सकता है, जिससे वे अपनी कमजोरियों को दूर कर सकें। इस भ्रामक स्थिति में ध्यान केंद्रित करना और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

तुला राशि पर साढ़ेसाती के प्रथम चरण के उपाय

प्रथम चरण के शनि साढ़ेसाती निवारण के निम्नलिखित उपाय है जिनके उपयोग से जातक शनि की अशुभता को कम कर सकता है :-

  • प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।

  •  काले घोड़े की नाल का छल्‍ला बनवाकर उंगली में धारण करें।

  •  कौवे को रोटी डाले। शनि के साढ़ेसाती का.कुप्रभाव कम होगा।

  • सूखा खड़कता नारियल बहती दरिया में प्रवाहित करें ।

दूसरा चरण: शनि साढ़ेसाती का मध्यकाल

तुला राशि पर शनि की साढ़ेसाती का दूसरा चरण विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह वह समय है जब जातक चुनौतियों और अवसरों का सामना करता है। इस मध्यकाल में प्रभावित जातक अक्सर संघर्ष कर सकते हैं, जिसमें उनके कार्य, रिश्ते और मानसिक स्वास्थ्य शामिल हैं। इस समय, शनि की स्थिति अस्तित्व में कठिनाइयों को उजागर कर सकती है जो जातक की आत्म-प्रतिबिम्बित करने की आवश्यकता को उत्पन्न करती है। यह समय विचारों की स्पष्टता और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

मध्यकाल में आने वाली समस्याओं का मुख्य कारण शनि का अनुशासन का पाठ हो सकता है। जातक को यह सीखने का अवसर मिलता है कि कठिनाइयाँ अस्थायी होती हैं, और वे अपनी मेहनत और धैर्य से सबसे कठिन परिस्थितियों को भी पार कर सकते हैं। इस दौरान, कठिनाइयों का सही ढंग से सामना करने के लिए मानसिकता को मजबूत रखना महत्वपूर्ण है। जातक को यह समझना होगा कि चुनौतियों का ज्यादा डर नहीं, बल्कि उनसे निपटने का हौसला होना आवश्यक है।

इसी समय में, कुछ अवसर भी सामने आते हैं, जैसे कि आत्म-विकास और नियमितता में वृद्धि। जातक की अनुशासन और मेहनत से उन्हें सफलता की नई ऊँचाइयों पर पहुँचने का मौका मिल सकता है। जब जातक अपने विचारों को व्यवस्थित करते हैं और कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो उन्हें नए दृष्टिकोण और संभावनाएँ मिलती हैं। यह मध्यकाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्ति को सिखाता है कि असफलताओं से ही सफलताएँ उत्पन्न होती हैं, और उन्हें अपने अनुभव और आत्मनिर्णय के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

तुला राशि पर साढ़ेसाती के द्वितीय चरण के उपाय

द्वितीय चरण के शनि साढ़ेसाती निवारण के निम्नलिखित उपाय है जो जातक पर शनि की अशुभता को कम करने में सहायक हो सकते हैं :-

  •  काला कुत्ता पालें और उसकी सेवा करें । लाभ हो सकता है।

  •  श्री हनुमान जी की पूजा आराधना करें।

  •  प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।

  •  शनि यंत्र धारण करें।

तीसरा चरण: शनि साढ़ेसाती का अंत

तीसरा चरण शनि साढ़ेसाती का अंत दर्शाता है, जिस दौरान तुला राशि के जातकों के लिए परिस्थितियों में महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं। इस चरण में, शनि की योग्यता पराकाष्ठा पर पहुंचती है और जातक सामान्यतः अपनी पूर्व की कठिनाइयों और चुनौतियों से उबरना शुरू कर देते हैं। यह स्थिति अधिकतर भविष्य के प्रति आशावादी दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करती है।

इस तीसरे चरण में जातकों को अनेक सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। जब शनि की आशीर्वाद देती शक्ति जातक के जीवन में उभरती है, तो उन्हें स्वाभाविक रूप से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का अवसर मिलता है। यह वह समय है जब जातक नई योजनाओं को क्रियान्वित करने और अपने व्यक्तिगत तथा पेशेवर जीवन को समृद्ध करने में सक्षम होते हैं। आत्मविश्वास और मानसिक स्थिरता लौटने से जातक अपने मन की बातों को स्पष्टता से व्यक्त कर सकते हैं, जिससे संबंधों में भी सुधार होता है।

इस अवधि के दौरान, जातकों को अनुशासन और कड़ी मेहनत पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अपने अनुभवों से सीख लेते हुए, लोग कड़ी मेहनत की शक्ति को समझते हैं। यह समय है जब वे अपनी गलतियों को सुधारते हैं और आगे बढ़ने का साहस करते हैं। इसके अलावा, सेहत में भी सुधार देखने को मिलता है, जिससे मानसिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव आता है। इस अवधि में उमंग और उत्साह के साथ अपने नए लक्ष्यों को देखने का अवसर मिलता है।

इस प्रकार, तीसरा चरण शनि साढ़ेसाती का अंत एक नए प्रारंभ का प्रतीक है, जिसमें जातक अपने जीवन को नया आयाम देते हैं और भविष्य के प्रति बेहतर दृष्टिकोण विकसित करते हैं।

तुला राशि पर साढ़ेसाती के तृतीय चरण के उपाय

 तृतीय चरण के शनि साढ़ेसाती निवारण के निम्नलिखित उपाय है जो जातक पर शनि की अशुभता को कम करने में सहायक हो सकते हैं :-

  • उड़द के दाने बहती दरिया में प्रवाहित करने से शनि के प्रकोप का शमन हो सकता है।

  •  शिवलिंग पर दूध चढ़ायें।

  •  नाव की कील का रिंग बनवाकर उंगली में धारण करें।

*** ॐ कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात***

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