1 घंटे पहले
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फाउंडेशनल क्लासेज में मातृभाषा पढ़ाने को लेकर जोर देते हुए CBSE बोर्ड के सर्कुलर के बाद दिल्ली-NCR के स्कूलों ने स्टूडेंट्स द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली लैंग्वेजेस की मैपिंग की। इसमें सामने आया कि ज्यादातर क्लासों में कई तरह की भाषा बोलने वाले बच्चे पढ़ते हैं।
ये मैपिंग स्कूलों ने अपने स्तर पर की थी और इसमें सामने आया कि हिंदी के साथ-साथ स्टूडेंट्स 10-20 भाषाएं बोलते हैं।
दिल्ली-NCR की CBSE बोर्ड के ज्यादातर स्कूल अंग्रेजी-माध्यम के हैं जिनमें दूसरी भाषा के तौर पर पहली कक्षा से हिंदी, संस्कृत और उर्दू पढ़ाई जाती है। वहीं 6वीं क्लास के लिए फॉरेन और लोकल भाषाओं के पूल में से एक भाषा को चुना जाता है।
पेरेंट्स अंग्रेजी में पढ़ाने के फेवर में
ज्यादातर स्कूलों की प्रिंसिपल्स ने कहा कि अंग्रेजी को ही ऑफीशियल मीडियम ऑफ इंस्ट्रक्शन बनाया जाएगा क्योंकि बच्चों के माता-पिता ऐसा ही चाहते हैं।
प्राइमरी क्लासेज के बच्चों को पढ़ाने के लिए हिंदी को इनफॉर्मली इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे कि CBSE बोर्ड के स्कूलों में होता रहा है।
कुछ प्रिंसिपल्स ने कहा कि बच्चों को अलग-अलग भाषाओं को पढ़ाने के लिए कई तरह के ऑडियो और विजुअल मीडियम्स पर काम किया जा रहा है क्योंकि इसे अचानक से बच्चों के कोर्स में शामिल नहीं किया जा सकता।
लोक कथाओं के जरिए होगी पढ़ाई
द्वारका के ITL पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा, ‘हमने पाया कि 3,000 स्टूडेंट्स की 21 अलग-अलग मातृभाषाएं हैं जिसमें मराठी, उड़िया और मलयालम शामिल है। हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है इसलिए दूसरी क्लास तक हम बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी में ही पढ़ाएंगे।’
स्टूडेंट्स को अलग-अलग भाषाओं के बारे में बताने के लिए स्कूल ने एक पहल की शुरुआत की है। इसमें स्टूडेंट्स को लोक कथाएं, लोक गीतों, लैंग्वेज ट्रीज और चार्ट्स के माध्यम से भाषाओं का ज्ञान दिया जाएगा।
एक दूसरे स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा कि वो मातृभाषा मौखिक माध्यम से ही पढ़ाएंगे क्योंकि सर्कुलर में कही भी यह नहीं कहा गया है कि मातृभाषा के ज्ञान को टेस्ट किया जाएगा।
प्रिंसिपल ने कहा, ‘टीचर्स बच्चों से पूछ सकती हैं कि पानी को उनकी भाषा में क्या कहेंगे। इस पॉलिसी को रातों-रात लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि टीचर्स की वैसी ट्रेनिंग अभी नहीं हो पाई है।’
22 मई को CBSE ने निर्देश जारी किए थे
22 मई को CBSE बोर्ड ने निर्देश जारी किए थे जिसमें नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क का रेफ्रेंस दिया गया था। इसमें कहा गया था कि बच्चों को पढ़ानी की पहली भाषा यानी R1 उनकी मातृभाषा या रीजनल लैंग्वेज होनी चाहिए।
इसमें आगे कहा गया है कि अगर क्लासरूम डायवर्स है, रिसोर्सेज की कमी है या मातृभाषा को लिखने के तरीके नहीं है, तो R1 की जगह राज्य भाषा का इस्तेमाल किया जा सकता है। जब तक किसी दूसरी भाषा की फाउंडेशनल लिट्रेसी बच्चों को नहीं मिल जाती R1 में ही बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए।
इन निर्देशों में स्कूलों को लैंग्वेज मैपिंग करने के लिए कहा गया था। साथ ही जुलाई यानी गर्मियों की छुट्टिया खत्म होने के साथ इन निर्देशों को करिकुलम में शामिल करने का आदेश था।
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