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नई दिल्ली4 मिनट पहले
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कांग्रेस के सीनियर नेता शशि थरूर ने गुरुवार को कहा कि आपातकाल को केवल भारतीय इतिहास के काले अध्याय के रूप में याद नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उसकी सीखों (लर्निंग) को पूरी तरह समझा जाना चाहिए।
थरूर ने मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में प्रकाशित एक लेख में कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए उठाए गए कदम कई बार ऐसी क्रूरता में बदल जाते हैं, जिन्हें किसी तरह उचित नहीं कहा जा सकता।
25 जून, 1975 को तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी। यह 21 मार्च, 1977 तक लागू रही थी। इस दौरान केंद्र सरकार ने कई सख्त फैसले लिए थे।
थरूर बोले- नसबंदी अभियान मनमाना फैसला था थरूर ने लिखा, ‘इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी का जबरन नसबंदी अभियान चलाने का फैसला क्रूरता का उदाहरण बन गया। गरीब ग्रामीण इलाकों में टारगेट पूरा करने के लिए हिंसा और दबाव का सहारा लिया गया। नई दिल्ली जैसे शहरों में बेरहमी से झुग्गियां तोड़ी गईं। हजारों लोग बेघर हो गए। उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।’
आर्टिकल की 3 बातें, कहा- लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेना चाहिए 1. लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह एक बहुमूल्य विरासत है, जिसे लगातार संरक्षित करना जरूरी है।
2. 1975 में सभी ने देखा कि कैसे आजादी खत्म की जाती है। आज का भारत, 1975 का भारत नहीं है। हम ज्यादा आत्मविश्वासी, ज्यादा विकसित और कई मायनों में मजबूत लोकतंत्र हैं। फिर भी इमरजेंसी की सीख आज भी कई चिंताजनक तरीके से प्रासंगिक बनी हुई है।
3. सत्ता को सेंट्रलाइज करने, असहमति को दबाने और संविधान को दरकिनार करने का असंतोष कई रूपों में फिर से सामने आ सकता है। अक्सर ऐसे एक्शन को देशहित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जाता है। इस अर्थ में इमरजेंसी एक चेतावनी के रूप में खड़ा है। लोकतंत्र के संरक्षकों को हमेशा सतर्क रहना होगा।
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