नई दिल्ली15 मिनट पहले
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कांग्रेस के पूर्व सांसद नचियप्पन ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया था।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीनियर एडवोकेट ईएमएस नचियप्पन ने वन नेशन वन इलेक्शन पर संसदीय समिति को बताया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन की जरूत नहीं है। बल्कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव कानूनी रूप से इसके लिए काफी हो सकते हैं।
न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस के पूर्व सांसद नचियप्पन JPC के सामने अपनी बात रखी। उन्होंने यह कहा कि सरकार को मौजूदा कार्यकाल में ही इस प्रस्ताव को लागू करने पर विचार करना चाहिए क्योंकि इसकी अधिसूचना अगली लोकसभा के लिए छोड़ना कानूनी रूप से संदिग्ध होगा।
कांग्रेस के पूर्व सांसद ने भाजपा के पी.पी. चौधरी की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति के सामने एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव करने वाले संविधान संशोधन विधेयक के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए। बैठक के बाद चौधरी ने कहा कि JPC की अगली बैठक 30 जुलाई को होने की संभावना है।
पूर्व सांसद के तर्क और सुझाव
- नचियप्पन ने प्रस्तावित कानून के उस प्रावधान पर आपत्ति जताने के लिए विधायी अधिदेश पर अस्थायी सीमाओं के सिद्धांत का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि विधेयक पारित होने के बाद राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तिथि पर जारी एक सार्वजनिक अधिसूचना से इस अनुच्छेद के प्रावधान को लागू कर सकते हैं और अधिसूचना की वह तिथि नियत तिथि कहलाएगी।
- उन्होंने तर्क दिया है कि नवनिर्वाचित लोकसभा जनता की इच्छा की नवीनतम अभिव्यक्ति होती है और उसे पिछले सदन के निर्देशों का पालन करने के लिए नहीं कहा जा सकता।
- उन्होंने कहा कि संविधान एक साथ या अलग-अलग चुनाव कराने की बात नहीं करता, इसलिए इसमें संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है। संविधान ने चुनाव आयोग को चुनाव से संबंधित सभी कर्तव्यों को पूरा करने का आदेश दिया है।
- नचियप्पन ने दावा किया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 14 और 15 में संशोधन, चुनाव आयोग को न केवल किसी विधायक के विघटन की तिथि से छह महीने पहले, बल्कि विघटन के अगले कुछ महीनों के भीतर चुनाव अधिसूचित करने का अधिकार देता है, जिससे विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तिथियों को एक साथ कराने में मदद मिलेगी।
- लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ एक बार में नहीं, बल्कि इस प्रक्रिया से कुछ चुनावी चक्रों में कराए जा सकते हैं।
- भाजपा और उसके सहयोगी लगभग दो-तिहाई विधानसभाओं में सत्ता में हैं। यह गठबंधन, जो देश पर भी शासन करता है, लोकसभा के साथ-साथ विधानसभाओं के चुनाव कराने पर सहमत होकर एक साथ चुनाव लागू करने की दिशा में एक बड़ी छलांग लगा सकता है।
11 जुलाई की बैठक में पहुंचे थे पूर्व CJI चंद्रचूड़
भाजपा सांसद चौधरी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति इस विधेयक पर अपनी सिफारिशें तैयार करने के लिए न्यायविदों और कानून विशेषज्ञों से बात कर रही है। भारत के पूर्व CJI जेएस खेहर और डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को समिति की 8वीं बैठक के दौरान बातचीत की। अगली बैठक में जस्टिस राजेंद्र मल लोढ़ा और जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े को अपने विचार व्यक्त करने के लिए बुलाया जा सकता है।
चेयरमैन चौधरी की बैठक के बारे में बड़ी बातें…
- समिति इस मुद्दे पर बहुत गंभीरता से चर्चा कर रही है और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों समेत कई कानूनी दिग्गजों ने यह समझने में मदद करने के लिए अपने विचार दिए हैं कि क्या यह विचार संवैधानिक ढांचे में फिट बैठता है।
- पूरे देश को यह महसूस होना चाहिए कि JPC ने सभी की बात सुनी है, सभी के विचार जाने हैं।अगर सदस्यों को लगता है कि रिपोर्ट पेश करने से पहले और लोगों की बात सुनने की जरूरत है, तो हम संसद से और समय मांग सकते हैं।
- रिपोर्ट सबमिट करने में कोई जल्दबाजी नहीं है क्योंकि सभी हितधारकों की राय सुनी जानी चाहिए। हमने चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के साथ बातचीत की है और सभी शंकाओं का समाधान किया है। बातचीत इस बात पर केंद्रित थी कि क्या एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक संविधान के अनुरूप है।
- हमें बहुत खुशी है कि सभी सदस्यों ने पांच घंटे तक चर्चा की, ताकि हम सही कानून बना सकें और जब यह कानून संसद में जाए तो ठोस सिफारिशें कर सकें।
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