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सोनीपत में स्थित अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान मोहम्मद मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई है। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सोशल मीडिया पर की गई कथित आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में गिरफ्तार अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को सुप्रीम कोर्ट से राहत म
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रोफेसर पर केवल विचाराधीन मामलों पर लिखने की रोक है, अन्य विषयों पर वे स्वतंत्र रूप से लिख और अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं। साथ ही अदालत ने हरियाणा एसआईटी की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि जांच चार हफ्तों में पूरी की जाए और अनावश्यक रूप से प्रोफेसर को फिर से न बुलाया जाए।
केवल विचाराधीन मामलों पर रोक, अन्य पर लिख सकते हैं प्रोफेसर
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि अली खान महमूदाबाद पर केवल उन विषयों पर लिखने की रोक है, जो न्यायिक प्रक्रिया में हैं। बाकी किसी भी मुद्दे पर वे अपने विचार व्यक्त करने और लेखन के लिए स्वतंत्र हैं।

प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है।
एसआईटी की जांच को बताया दिशाहीन
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की बेंच ने कहा कि एसआईटी अपनी जांच में “दिशा से भटक” रही है। अदालत ने सवाल किया कि जब केवल पोस्ट की भाषा जांचनी थी, तो प्रोफेसर के डिवाइस जब्त करने की जरूरत क्यों पड़ी। जस्टिस कांत ने टिप्पणी करते हुए कहा, “आपको प्रोफेसर की नहीं, डिक्शनरी की जरूरत है।”
SIT की जांच 4 हफ्ते में पूरी करने के निर्देश
अदालत ने साफ कहा कि जांच केवल उन्हीं दो सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित रही, जिनके आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी। कोर्ट ने जांच एजेंसी को निर्देश दिया कि अब प्रोफेसर को दोबारा तलब करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने पहले ही सहयोग किया है और अपने डिवाइस सौंप दिए हैं।

एसआईटी की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि जांच 4 हफ्तों में पूरी की जाए।
‘रोविंग इन्क्वायरी’ नहीं हो सकती: सिब्बल की दलील
प्रोफेसर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि एसआईटी प्रोफेसर से बीते 10 वर्षों की विदेश यात्राओं तक के सवाल पूछ रही है, जबकि 28 मई के सुप्रीम कोर्ट आदेश में सिर्फ दो सोशल मीडिया पोस्ट की जांच का आदेश था। उन्होंने कहा कि बार-बार पूछताछ और डिवाइस जब्ती एक ‘रोविंग इन्क्वायरी’ की ओर इशारा करती है, जो कानूनन उचित नहीं।
स्टेट का पक्ष: जांच अधिकारी की स्वतंत्रता
हरियाणा राज्य की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि जांच कैसे होनी है, यह जांच अधिकारी तय करता है और सभी संभावित आपत्तिजनक पहलुओं की जांच आवश्यक है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच का दायरा कोर्ट के आदेश तक ही सीमित रहना चाहिए।
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