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रूमी जाफरी7 मिनट पहले
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‘जिंदगी कैसी है पहेली…’ गीत के एक दृश्य में राजेश खन्ना।
पिछले सप्ताह हमने पाबूजी की लोककथा के माध्यम से जाना कि कैसे लक्ष्मण, शूर्पणखा और रावण का क्रमशः पाबूजी, राजकुमारी फूलवती और जिंदराव खींची के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। आइए आज इस कहानी को जारी रखते हैं। ध्यान रहें कि यह एक मौखिक परंपरा है।
पाबूजी के जन्म के कुछ समय बाद उनके पिता धांधल राठोड़ का निधन हो गया। धांधल राठोड़ की सारी संपत्ति उनके बड़े बेटे बुरो को चली गई। पाबूजी को कुछ नहीं मिला। लेकिन पाबूजी का भाग्य अच्छा था, क्योंकि उसी समय देवल नामक देवी ने उन्हें एक जादुई घोड़ी प्रदान की। यह घोड़ी उनकी मां का अवतार थी। बदले में देवी ने पाबूजी से वचन लिया कि वे हमेशा देवी की गायों की रक्षा करेंगे।
जिंदराव से पाबूजी पहली बार तब मिले, जब उनके (जिंदराव) पिता ने बुरो की जमीन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद हुई लड़ाई में पाबूजी ने जिंदराव के पिता का वध कर दिया। शांति बनाए रखने के लिए बुरो ने जिंदराव से अपनी बहन पेमा का विवाह करवा दिया। लेकिन यह शांति अस्थायी थी, क्योंकि जिंदराव तो बुरो और देवल देवी की गायों, जिनकी रक्षा पाबूजी करते थे, पर अधिकार करना चाहते थे।
बुरो की बेटी का नाम केलम था। उसके विवाह में पाबूजी ने उसे लंका की ऊंटनियां भेंट देने का वचन दिया। अपनी जादुई घोड़ी कालमी पर बैठकर वे समुद्र पार लंका जाकर वहां से ऊंटनियां ले आएं। असंभव समझा जाने वाला यह कार्य करने के बाद कई लोग उनके प्रशंसक बन गए। सिंध की राजकुमारी फूलवती उनकी सबसे बड़ी प्रशंसक बनी। उसने अपने माता-पिता से अपना विवाह पाबूजी से करवाने को कहा। पाबूजी को विवाह प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन वे जीवनभर ब्रह्मचारी बने रहना चाहते थे और इसलिए उन्होंने वह प्रस्ताव नकार दिया।
हालांकि बहुत मनाने के बाद पाबूजी फूलवती से विवाह करने के लिए तैयार हो गए और सिंध के लिए चल पड़े। यह जानकर देवल देवी क्रोधित हो गईं। वे जानना चाहती थीं कि पाबूजी की अनुपस्थिति में देवी की गायों की रक्षा कौन करेगा। पाबूजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि यदि गायों को कुछ भी होता है तो वे अपना विवाह छोड़कर गायों की रक्षा करने दौड़े चले आएंगे।
विवाह में दंपती को अग्नि की सात बार परिक्रमा करनी होती है। पहली तीन परिक्रमाओं में पुरुष आगे चलता है, जिससे स्त्री उसकी पत्नी बनती है। अंतिम चार परिक्रमाओं में स्त्री आगे चलती है, जिससे पुरुष स्त्री का पति बनता है। तीन परिक्रमाओं के बाद फूलवती तो पाबूजी की पत्नी बन गई थी, लेकिन चौथी परिक्रमा शुरू होते ही देवल देवी पाबूजी के सामने प्रकट हुईं और चिल्लाईं, “जिंदराव ने मेरी गायें चुरा ली हैं। अपना वचन निभाकर उन्हें बचाएं।” पाबूजी ने अपना वचन रखा और विवाह संस्कार पूरे किए बिना ही कालमी पर बैठकर देवल देवी की गायों को बचाने निकल पड़े। उन्होंने फूलवती को वचन दिया कि गायों को बचाकर वे लौटेंगे और विवाह संस्कार पूर्ण करेंगे। उन्होंने जाते-जाते फूलवती को एक तोता दिया और कहा, “यदि यह तोता मर गया तो समझ जाना कि मैं भी नहीं रहा।”
जिंदराव और पाबूजी के बीच भीषण युद्ध हुआ। पाबूजी ने गायों को बचा लिया। जिंदराव भी मारे जाते, लेकिन पाबूजी ने उन्हें जीवित छोड़ दिया, क्योंकि वे अपनी सौतेली बहन पेमा को विधवा नहीं बनाना चाहते थे।
बाद में जिंदराव ने एक और सेना खड़ी करके पाबूजी पर फिर से वार किया। पाबूजी समझ गए कि उनकी नियति में जिंदराव के हाथों वध होना लिखा है। इसलिए युद्ध के दौरान उन्होंने जिंदराव का चाबुक छीनकर उन्हें अपनी तलवार दे दी। फिर वे जिंदराव को अपने पर वार करने के लिए उकसाने लगे। लेकिन जिंदराव भी पाबूजी का आदर करने लगे थे और इसलिए उन्होंने अपने आप को रोके रखा।
पाबूजी ने उकसाने के उद्देश्य से जिंदराव पर कई बार चाबुक से प्रहार किए। अंत में जिंदराव ने उन पर तलवार से वार किया। रावण के अवतार द्वारा लक्ष्मण के अवतार पर वार होते ही एक देवी पालखी प्रकट हुई और वह पाबूजी व उनकी जादुई घोड़ी कालमी को राम के वैकुंठ ले गईं।
पाबूजी के वध का प्रतिशोध उनके भतीजे रूपनाथ ने लिया, जिसके पिता बुरो भी इससे पहले जिंदराव के हाथों मारे गए थे। रावण के अवतार का वध करने के बाद रूपनाथ तपस्वी गोरखनाथ का अनुयायी बन गया और उसने हथियार हमेशा के लिए त्याग दिए।
उधर, दूर सिंध में फूलवती के हाथ में रखा तोता मर गया। शूर्पणखा के अवतार ने समझ लिया कि पाबूजी का निधन हो गया है। वह आग में छलांग मारकर सती हो गई, क्योंकि फूलवती पाबूजी की पत्नी बन चुकी थी, भले ही पाबूजी उसके पति कभी नहीं बन सके।
इस प्रकार, इस लोककथा से हम पुनर्जन्म और कर्म की धारणाओं को समझ सकते हैं। हम समझते हैं कि लक्ष्मण को शूर्पणखा की नाक काटने और रावण का वध करने के कर्म का फल भोगना पड़ा। आखिरकार, जीवन चक्र में कोई नहीं बचता है।
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