The intention is big, but the impact is small, neither the love story touches, nor the social truth leaves any scars | मूवी रिव्यू- धड़क 2,: इरादा बड़ा, लेकिन असर छोटा, न तो प्रेम कहानी छू पाती है, और न ही सामाजिक सच्चाई कोई चोट छोड़ती है

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27 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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जब कोई फिल्म जात, प्रेम और विद्रोह जैसे मुद्दों को छूने का दावा करे, तो दर्शक एक गहराई की उम्मीद लेकर थिएटर में जाता है। ‘धड़क 2’ भी ऐसी ही एक कोशिश है, पर यह कोशिश जितनी दमदार दिखती है, उतनी महसूस नहीं होती। आज यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 7 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 2 स्टार की रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी कैसी है?

फिल्म एक ऐसे लड़के की कहानी कहती है, जो समाज के उस हिस्से से आता है जहां नाम से पहले जात लिखी जाती है। दूसरी तरफ है एक लड़की, जिसे अपने मन की सुनने की आदत है, पर वो जिस घर से आती है, वहां दिल से ज्यादा खून का शुद्ध होना मायने रखता है।

शुरुआत में कहानी प्यार के आसपास सजी लगती है, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, समाज की सच्चाई अपना रंग दिखाने लगती है। इंटरवल के बाद फिल्म पूरी तरह एक सामाजिक बयान बनने की कोशिश करती है, लेकिन वो शोर कम और उलझन ज्यादा पैदा करती है।

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

सिद्धांत चतुर्वेदी ने अपनी भूमिका में ठहराव और गुस्से दोनों को अच्छे से पकड़ा है। उनका सफर स्क्रीन पर साफ दिखता है। एक डरपोक लड़का जो वक्त के साथ खुद के लिए खड़ा होना सीखता है। ट्रिप्ती डिमरी का किरदार layered है, लेकिन उनकी और सिद्धांत के बीच की केमिस्ट्री में वो मासूमियत नहीं है, जो इस कहानी को महसूस करवा सके। कई जगहों पर एक्स्ट्रा कैरेक्टर्स का इस्तेमाल ठीक से नहीं किया गया। कुछ सीन खाली से लगते हैं, जैसे उनमें कुछ और होना चाहिए था।

फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष कैसा है?

निर्देशक की मंशा साफ दिखती है कि वो एक संवेदनशील कहानी कहना चाहते थे। पर दिक्कत ये रही कि वो तय नहीं कर पाए कि फिल्म को दिल से कहना है या दिमाग से। पहला हाफ धीमा है, और दूसरा हाफ तेज, पर दोनों के बीच की कड़ी कमजोर रह जाती है।

स्क्रिप्ट कई बार मुद्दों को सिर्फ छूकर निकल जाती है। गहराई में जाने से हिचकती है। नतीजा ये होता है कि न तो प्रेम कहानी छू पाती है, और न ही सामाजिक सच्चाई कोई चोट छोड़ती है। कहानी कई बार भटकती है और इमोशनल गहराई की कमी के साथ रोमांस अधूरा लगता है। फिल्म का क्लाइमैक्स भी उतना असरदार नहीं है। कैमरा वर्क ठीक है। लोकेशंस की पकड़ अच्छी है, लेकिन वो कहानी को नई परत नहीं दे पाता।

फिल्म का म्यूजिक कैसा है?

धड़क नाम आते ही कान एक अच्छे साउंडट्रैक की उम्मीद करने लगते हैं, लेकिन इस बार वो सुनाई नहीं देता। गाने हैं, पर दिल में नहीं उतरते। बैकग्राउंड स्कोर कहीं-कहीं काम करता है, पर कई बार जरूरत से ज्यादा ड्रामा लाने की कोशिश करता है।

फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं?

अगर आपको सोशल थ्रिलर्स पसंद हैं और आप सिद्धांत चतुर्वेदी के अभिनय के फैन हैं, तो एक बार ट्राई कर सकते हैं। लेकिन अगर आप ‘धड़क’ जैसी एक मासूम और दर्दभरी लव स्टोरी की तलाश में हैं, तो ये फिल्म आपकी उम्मीद से दूर निकल जाएगी। ‘धड़क 2’ का मकसद बड़ा था, पर कहने का तरीका थोड़ा उलझ गया।

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