3 घंटे पहले
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- भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के कप्तान शुभमन गिल इंग्लैंड में अपने टॉप फॉर्म के कारण चर्चा में हैं…
मैं जब टीम से बाहर रहकर रिहैब टाइम काट रहा था तो काफी निराश था। मैं अंदर ही अंदर जल रहा था। बैठा-बैठा यही सोचता रहता था कि आखिर मैं कब बड़ी पारी खेलूंगा। जानता था कि मुझे सिर्फ एक अच्छी शुरुआत चाहिए। एक बार शुरुआत मिल जाए, तो मैं जानता हूं कि मैं ‘ऑन’ हो जाता हूं। उस समय मेरा सबसे बड़ा सपना था कि पहला इंटरनेशनल शतक लगा दूं। लेकिन शायद मैं उस लक्ष्य को लेकर जरूरत से ज्यादा कोशिश करने में लगा था। शतक की सोच मुझ पर इतना हावी हो गई थी कि वो बोझ बन गई। मैं खुद से कहता था- ‘तुम पहले काफी पारियां खेल चुके हो, ऑस्ट्रेलिया में एक मौका गंवाया है, अब दोबारा नहीं गंवाना है।’ तभी मुझे अहसास हुआ कि मैं खुद पर बहुत अधिक दबाव डाल रहा हूं। फिर चोट लग गई, तो उसके बाद प्रेशर और भी ज्यादा बढ़ गया। इसके बाद आईपीएल आया। मुझे एक नई टीम मिली, टूर्नामेंट में टीम जीती और मैंने अच्छा प्रदर्शन किया। इसके बाद मुझे वनडे टीम में और मौके मिले। मैंने 6 अच्छे वनडे खेले और तभी मुझे एहसास हुआ कि अब मुझे मेरी लय मिल गई है। जब मैंने जिम्बाब्वे में पहला शतक लगाया, तभी मुझे अंदर से लगा कि अब मैं रुकने वाला नहीं हूं। ऐसा खेलने की क्षमता तो हमेशा से मेरे अंदर थी। मैं मानता हूं कि मेरा 100 प्रतिशत खेल और व्यक्तित्व अभी लोगों ने देखा ही नहीं है। 100 प्रतिशत से मेरा मतलब सिर्फ रन बनाने से नहीं है, बल्कि उस खेल से है जिसे मैं अंदर से महसूस करता हूं। मैं जब बड़ी पारी खेलता हूं, उसके बाद जो अगली पारी होती है, वो ज्यादा मायने रखती है। क्योंकि मैं जानता हूं कि एक बार फॉर्म मिल जाए, तो फिर मैं अपने असली खेल में लौट आता हूं। यह बहुत निजी अनुभव है। अगर मेरी तीन-चार पारियां खराब हो जाती हैं, तो मैं तुरंत नेट्स पर जाकर अपनी तकनीक नहीं बदलता। क्योंकि अगर आप ऐसा करते हैं, तो इसका मतलब है आप अपने खेल पर भरोसा नहीं करते। आत्मविश्वास बनाए रखना जरूरी है, भले चीजें आपके पक्ष में नहीं जा रही हों। अगर आपने तीन मैचों में रन नहीं बनाए, तो खुद से कहें कि अगले तीन में बड़ा स्कोर आएगा। अगर आप हर मैच में उसी मानसिकता से उतरते हैं, जैसी पहले में थी, तो सफल होंगे। अगर आप हर बार नजरिया बदलते रहते हैं क्योंकि पिछला मैच खराब था, तो बुरे मैच अच्छे मैचों से अधिक होंगे। आपको उसी सोच पर अडिग रहना होगा, जो सीरीज के पहले मैच में बनाई थी। ये मुश्किल होता है, लेकिन करना ही होगा। मानसिक दृढ़ता बनाए रखेंगे, तो पछतावे कम होंगे बहुत से लोग मानसिक दृढ़ता को नहीं समझ पाते हैं। यह बहुत आसान होता है कि आप खुद को यह कहकर गिरा लें कि मैं पिछले तीन मैचों में अच्छा नहीं खेला या मैं ऐसे आउट हुआ… वगैरह-वगैरह। लेकिन असली सवाल तो ये है कि क्या आप खराब प्रदर्शन के बाद भी स्थिर रह सकते हैं? क्या आप उसी सोच, उसी जोश के साथ अगली पारी में उतर सकते हैं? अगर हां, तो आपके पास हमेशा ज्यादा अच्छे दिन होंगे और आप खुद से ज्यादा संतुष्ट भी रहेंगे। आपके मन में पछतावा बहुत कम होगा। (तमाम इंटरव्यूज में…)