IIFA 2025 Award Host Abhishek Banerjee Interview | Jaipur News | ‘छावा की तरह राजस्थान के वीरों पर बनेंगी फिल्में’: स्त्री फिल्म के ‘जना’ बोले- लोग 2 घंटे रील देख लेते हैं, थियेटर में लाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी – Rajasthan News


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ये कहना है IIFA 2025 अवॉर्ड शो होस्ट करने जयपुर आए एक्टर और कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी का। स्त्री फिल्म में जना और पाताललोक सीजन 1 में हथौड़ा त्यागी का किरदार निभाने वाले अभिषेक बनर्जी ने भास्कर से खास बातचीत की।

पढ़िए पूरा इंटरव्यू…

एक्टर और कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी IIFA 2025 अवॉर्ड शो होस्ट करने जयपुर आए थे।

एक्टर और कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी IIFA 2025 अवॉर्ड शो होस्ट करने जयपुर आए थे।

भास्कर: जयपुर में आईफा पहली बार हुआ। यहां होस्ट करने का अनुभव कैसा रहा?

अभिषेक: मैं इससे पहले आईफा रॉक्स (दुबई) में होस्ट कर चुका हूं। यहां होस्ट करना मेरे लिए काफी एंटरटेनिंग एक्सपीरियंस रहा है। होस्टिंग में मैं यह ध्यान रखता हूं कि जो दर्शक अवॉर्ड शो देखने आए हैं वो बोर न हों।

मैं स्क्रिप्ट की बजाय ऑडियंस को इंगेज करने की कोशिश करता हूं। पेशे से मैं एक एंटरटेनर हूं तो ये मेरा धर्म है कि मैं लोगों को खूब एंटरटेन करूं।

राजस्थान और जयपुर की बात करूं तो यह मेरे सबसे पसंदीदा स्टेट में से एक है। यहां का कल्चर, खानपान, लोग सब बेहद शानदार है। राजस्थान और जयपुर इंटरनेशनल डेस्टिनेशन है जहां लोग दुनिया के अलग अलग शहरों से आते हैं। मुझे बहुत खुशी है कि आईफा का 25वां साल हम जयपुर में सेलिब्रेट कर रहे हैं।

भास्कर: कास्टिंग डायरेक्टर से एक्टर बनने तक का सफर कैसा रहा?

अभिषेक: इस सफर को मैं स्ट्रगल तो नहीं कहूंगा, हां काम खूब करना पड़ा। मैं जब से मुंबई आया किसी ने किसी काम में जुटा रहा। मैंने अपना काम हमेशा डेडिकेशन के साथ किया। मैंने खुद को पूरी तरह सिनेमा और फिल्म इंडस्ट्री को समर्पित कर दिया है।

जितना मुझे आज लोगों का प्यार मिल रहा है, वह काम और एक्टिंग के प्रति मेरे समर्पण और मेहनत की वजह से है। इंडस्ट्री ने भी मुझ पर भरोसा किया इसलिए इतना आगे बढ़ पाया।

आईफा का मैं बहुत धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने मुझे रिकॉग्नाइज किया और इतना बड़ा मंच दिया जहां मैं इतनी बड़ी ऑडियंस के सामने होस्टिंग कर रहा हूं।

अभिषेक बनर्जी ने पाताललोक सीजन 1 में हथौड़ा त्यागी का नकारात्मक किरदार निभाया था।

अभिषेक बनर्जी ने पाताललोक सीजन 1 में हथौड़ा त्यागी का नकारात्मक किरदार निभाया था।

भास्कर: इरफान खान के काम से कितना इंस्पायर्ड हैं?

अभिषेक: मैं बहुत ही बदकिस्मत हूं कि उनके साथ काम करना तो दूर बात करने का भी मौका नहीं मिल सका। वो इतने बड़े कलाकार थे कि उनके जाने के बाद भी हमारी पीढ़ी उनके काम से इंस्पायर्ड हो रही है और आने वाली पीढ़ी भी इंस्पिरेशन लेती रहेगी। उनका जाना हमारी इंडस्ट्री के लिए बहुत बड़ा लॉस है। अगर आज वो जिंदा होते तो एक्टिंग में अगले कुछ साल अपने काम से वो दुनिया पर राज करते। बस इतना कहना चाहूंगा कि उनसे प्रेरणा लेकर हम जैसे कलाकार आगे बढ़ रहे हैं।

भास्कर: कॉमेडी के अलावा ऐसा कौन सा जॉनर है जहां आप अपनी एक्टिंग स्किल की वैरायटी दिखाना चाहते हैं?

अभिषेक: स्त्री फिल्म में जना के किरदार के लिए जो प्यार मुझे लोगों से मिला है उसके बाद कोई और दूसरी फिल्म डरता हूं कि कहीं एक्सपोज न हो जाऊं। दर्शक कहें अरे ये तो वैसा ही कर रहा है।

डर लगता है कि दर्शक कहीं आपकी कॉमेडी टाइमिंग प्रिडिक्ट न करने लग जाएं कि हां अब ये ऐसे बोलेगा। गोविंदा और अक्षय कुमार सर कॉमेडी के मामले में मेरी प्रेरणा हैं।

कॉमेडी के अलावा मुझे लगता है कि ह्यूमन ड्रामा और सोशल ड्रामा में मैं खुद को एक्स्प्लोर करना चाहूंगा। रिलेशनशिप ड्रामा करने में मुझे मजा आता है।

रियल स्टोरी पर बनी वेब सीरीज पाताललोक एक सोशल क्राइम ड्रामा था। स्टोलन मेरी आने वाली फिल्म है यह पूरी फिल्म पुष्कर में शूट हुई है। वो भी एक रियल लाइफ इंसिडेंट से प्रेरित फिल्म है। ऐसे किरदार मुझे ज्यादा अपील करते हैं।

स्त्री और स्त्री 2 फिल्म में जना का किरदार निभाकर अभिषेक ने जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की।

स्त्री और स्त्री 2 फिल्म में जना का किरदार निभाकर अभिषेक ने जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की।

भास्कर: कास्टिंग डायरेक्टर होने से क्या आपको एक्टिंग में मदद मिली?

अभिषेक: बिल्कुल। कास्टिंग डायरेक्टर होने के कारण मैं फिल्म के निर्देशक की जरुरत को समझ सका कि वह किसी किरदार से क्या चाहता है। मैंने एक्टर्स के साथ ऑडिशन रूम में बहुत समय बिताया है। उनको डायलॉग रिहर्स करवाना या उनके लिए डायलॉग्स बोलना…बहुत अलग अलग तरह के किरदार मैंने ऑलरेडी ऑडिशन रूम में किए हैं। वो सात आठ साल की मेहनत का फायदा कहीं न कहीं मुझे आज एक्टिंग में मिल रहा है।

भास्कर: अब भारत में भी स्पाई यूनिवर्स, हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स बन रहे हैं। हमारी ऑडिएंस इसके लिए तैयार है?

अभिषेक: मेरा मानना है कि यूनिवर्स बनाते समय हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। होता क्या है की यूनिवर्स बनाने के चक्कर में हम अक्सर पार्ट 2 या थ्री को पहले से बड़ा बनाने की कोशिश करते हैं। अगर पहली फिल्म दार्जिलिंग या गोवा में शूट हुई है तो नेक्स्ट पार्ट चीन या थाईलैंड में शूट कर रहे हैं।

ये धारणा बदलनी पड़ेगी। यूनिवर्स बनाने में हमारा काम यह नहीं कि हम फिल्म को भव्य बनाएं। हमारा काम है फिल्म को आगे बढ़ाएं। दृश्यम-1 और दृश्यम-2 को देखें। वही किरदार, वही छोटा सा शहर लेकिन कहानी और किरदारों का सफर कैसे आगे बढ़ता है। वही, अगर दृश्यम-2 को सिंगापुर या बैंकॉक ले जाते तो वह फिल्म दृश्यम-2 नहीं रह जाती।

मुझे लगता है कि ये समझना बहुत जरूरी है कि हमें बड़ा करने की जरूरत नहीं है बस कहानी को आगे बढ़ाना चाहिए। क्योंकि दर्शक पहले ही किरदारों से जुड़े हुए होते हैं। तब कहीं जाकर यूनिवर्स का पैटर्न आगे बढ़ेगा।

भास्कर: आप एक्सेंट बहुत अच्छा पकड़ते हैं, राजस्थानी भाषा कैसी लगती है आपको?

अभिषेक: मैंने वेदा फिल्म में जो किरदार किया है वो राजस्थानी भाषा बोलता है। डायलेक्ट ट्रेनर ने मुझे कहा था कि राजस्थानी और हरियाणवी शब्दों में समानता है, लेकिन बोलने का लहजा अलग है। बहुत लोग फिल्मों में हरियाणवी अंदाज में राजस्थानी बोलते हैं, लेकिन राजस्थानी बोलने का तरीका बिलकुल ऊंट की चाल की तरह है। जैसे रेत में ऊंट चलता है वैसे ही राजस्थानी बोली भी बोली जाती है।

राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बनी वेदा फिल्म में अभिषेक ने मुख्य खलनायक की भूमिका निभाई थी।

राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बनी वेदा फिल्म में अभिषेक ने मुख्य खलनायक की भूमिका निभाई थी।

भास्कर: राजस्थान के बारे में कौनसी खास बात है, जिसे आपको लगता है कि अभी तक एक्स्प्लोर नहीं किया गया है?

अभिषेक: राजस्थान के किले, महल, कल्चर में कहानियां बाकी हैं, जिन्हें सिनेमाई परदे पर दिखाया जा सकता है। राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत की जड़ें बहुत गहरी हैं। राजा महाराजा भले ही अब न हों लेकिन वो राजपरिवार में वो प्रथाएं अभी भी हैं। मुझे लगता है ये राजस्थान का ही नहीं देश का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

हम लोग ग्रीस चले जाते हैं आर्किटेक्चर देखने के लिए, लेकिन हम राजस्थान का आर्किटेक्चर देखने ही नहीं आते। हमारे अपने लोग ही अपना देश नहीं घूमते। हमारे पास जयपुर का जलमहल. हवामहल, उदयपुर के राजसी महल, गजनेर पैलेस का ठाठ, जैसलमेर में दुनिया का सबसे खूबसूरत सनसेट है। मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी को राजस्थान को ज़रूर एक्स्प्लोर करना चाहिए।

भास्कर: साउथ की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बढ़िया परफॉर्म कर रही हैं, क्या कारण मानते हैं?

अभिषेक: साउथ इंडस्ट्री में टेक्निकल इवोल्यूशन हुआ है जो उनकी फिल्मों में साफ़ नज़र आता है। वहां की सिनेमेटोग्राफी, वीएफएक्स, एडिटिंग कमाल है। बाहुबली और केजीएफ इसका उदहारण है। पीरियड ड्रामा खूब बन रहे हैं।

उनके किरदार आम लोगों से जुड़े हुए हैं। पुष्पा का हीरो सिक्स पैक एब्स वाला हीरो नहीं है कुली है। जो 70 के दशक में बच्चन साहब ऑलरेडी कर चुके हैं। कहीं न कहीं हमने ही यह रास्ता दिखाया था, लेकिन साउथ इंडस्ट्री ने इसे अलग तरीके से प्रेजेंट कर रहे हैं।

प्रशांत नील, सुकुमार जैसे डायरेक्टर और अल्लू अर्जुन जैसे एक्टर भी अमिताभ बच्चन को अपनी इंस्पिरशन मानते हैं। हमें भी यह समझना होगा की अहम अपनी इंडस्ट्री को फॉरेन इंडस्ट्री न बनाएं बल्कि इंडियन इंडस्ट्री ही रहने दें और उसमें ही आम दर्शकों से जुड़ी हुई फिल्में बनाते रहे।

अभिषेक ने बतौर कास्टिंग डायरेक्टर कॅरियर की शुरुआत की थी। इसके बाद खुद को एक्टिंग में आजमाया।

अभिषेक ने बतौर कास्टिंग डायरेक्टर कॅरियर की शुरुआत की थी। इसके बाद खुद को एक्टिंग में आजमाया।

भास्कर: छावा फिल्म खूब नाम कमा रही है। राजस्थान के बड़े ऐतिहासिक किरदारों पर फिल्में क्यों नहीं बनतीं?

अभिषेक: हिस्टोरिकल पीरियड ड्रामा बनाने में पैसा बहुत लगता है। मेकर्स के लिए उतना पैसा वापस निकलना भी बड़ा चैलेंज होता है। अब छावा जैसी फिल्में चल रही हैं तो इंडिया में एक तरह का कल्चर आ गया है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले सालों में राजस्थान के महान किरदारों पर ऐसी पीरियड ड्रामा फिल्में बनेंगी। जिनमें यहां की नामी लड़ाइयों को दिखाया जाएगा। ऑडियंस अगर ऐसी फिल्मों पर पैसा खर्च करेगी तो इंडस्ट्री को भी मोटिवेशन मिलेगा।

मेरी बात करूं तो पीरियड ड्रामा में शहीद खुदीराम बोस का किरदार परदे पर करना चाहूंगा। 21 साल की उम्र में वो फांसी पर झूल गए और कह गए कि कोई अगर तुम्हारी आवाज सुनकर नहीं आ रहा है तो तुम खुद ही चल दो।

उनका यह कहना सिर्फ आजादी पाने के लिए नहीं कहा गया, बल्कि जिंदगी के लिए भी है कि अगर आपको कोई चीज सही लगती है तो उसे कर गुजरने के लिए अकेले ही निकल पड़ो लोग अपने आप से जुड़ जायेंगे।

भास्कर: क्या अब इंडस्ट्री में ओरिजिनल कहानियां नहीं लिखी जा रही जो रीमेक का चलन बढ़ रहा है?

अभिषेक: दरअसल फिल्म बनाने का प्रोसेस बहुत खर्चीला है, इसलिए पहला थॉट यही रहता है कि हम अगर फिल्म बना रहे हैं तो पैसे आना बहुत ज़रूरी है, कहीं न कहीं उसकी वजह से ऐसा हो रहा है।

यही वजह है कि लोग उन सब्जेक्ट्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं जो पहले से हिट हो या चली हुई है। उसके पीछे ये आइडिया होगा कि वहां चली है ये कहानी तो हमारे यहां भी चल जाएगी।

असल बात यह है कि भारत विविधताओं से भरा देश है। एक ही सब्जेक्ट दूसरी जगह भी चल जाए, जरूरी नहीं। क्योंकि सोसाइटी में बहुत फर्क आ जाता है। जरूरी नहीं कि बिहार की कहानी पंजाब में या पंजाब की कहानी बंगाल में चल जाए। ये फर्क समझना बहुत जरूरी है।

कई फिल्में हॉलीवुड वालों ने स्पेनिश या फ्रेंच कहानी से प्रेरित होकर बनाई हैं लेकिन वो अपने देश की सोसाइटी और कल्चर के अनुसार बनाते हैं। हम से यहीं पर गलती हो रही है।

लोग सोचते हैं कि हम मेहनत क्यों करें या राइटर को ज्यादा पैसे क्यों दें? ये जो सोच है इसकी वजह से हम मार खा रहे हैं। एक इंडस्ट्री के तौर पर हम लोगों के लिए काम कर रहे हैं। दर्शक एक बार या दो बार बेवकूफ बन सकता है, बार-बार नहीं।

एक इंडस्ट्री के तौर पर कुछ साल पहले तक हम राज करते थे कि हमसे बड़ा एंटरटेनर कोई नहीं है। अब इंस्टा और यूट्यूब पर इतने एंटरटेनर आ गए हैं। हमारा कॉम्पीटिशन अब उस नए मीडियम से है जो बिलकुल नया है।

लोग 1 मिनट की रील देखते देखते 2 घंटे निकाल लेते हैं तो वो दो घंटे सिनेमाहाल में क्यों जाए? दर्शकों को सिनेमा हाॅल तक ले जाने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। एक सच्चे कलाकार के नाते हमें खुद को दर्शकों के सामने बार-बार साबित करना पड़ेगा।

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