According to Valmiki Ramayana, what was the appearance, nature and qualities of Lord Rama, rama navami on 6th April, facts about Lord Ram | राम नवमी रविवार को: वाल्मीकि रामायण के अनुसार जानिए कैसा था भगवान राम का रंग-रूप, स्वभाव और उनके गुण

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2 घंटे पहले

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कल (6 अप्रैल) रामनवमी है। त्रेतायुग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर भगवान राम प्रकट हुए थे। वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि मुनि ने श्रीराम के बारे में सभी बातें बताई हैं, जैसे श्रीराम का रंग-रूप कैसा था, उनका स्वभाव कैसा था और राम के गुण के बारे में बताया है। जानिए वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, श्रीराम से जुड़ी खास बातें…

ऐसा था श्रीराम का रंग-रूप

श्रीराम के बाल लंबे और चमकदार थे। राम जी का चेहरा चंद्र की तरह सौम्य था। चेहरा कोमल और बहुत सुंदर दिखाई देता था। उनकी आंखें बड़ी और कमल की तरह दिखती थीं। चेहरे के अनुसार सुडोल और बड़ी नाक थी।

भगवान राम के होंठों का रंग उगते हुए सूर्य की तरह लाल था। भगवान के कान सामान्य से कुछ बड़े थे। जिनमें वे कुंडल पहनते थे। भगवान के हाथों की लंबाई सामान्य से कुछ अधिक थी। भगवान के दोनों हाथ घुटनों तक लंबे थे। इसलिए भगवान को आजानूभुज कहा गया है। पेट शरीर के अनुपात में सामान्य था। श्रीराम के पैरों की लंबाई शरीर के ऊपरी हिस्से के अनुसार समान अनुपात में थी।

ऐसा था श्रीराम का स्वभाव

श्रीराम कभी भी किसी व्यक्ति में कोई दोष नहीं देखते थे। वे हमेशा शांत रहते थे और मीठे वचन बोलते थे। अगर कोई उनसे कठोर वचन भी बोलता था तो वे उस बात का जवाब नहीं देते थे। अगर कोई व्यक्ति उनकी मदद या उपकार करता था तो वे उस व्यक्ति से हमेशा प्रसन्न रहते थे। अपने मन को वश में रखते थे।

श्रीराम किसी के अपराध को याद नहीं रखते थे, झूठी बातें उनके मुख से कभी नहीं निकलती थीं। वे सभी का सम्मान करते थे। प्रजा के प्रति उनका और उनके प्रति प्रजा का विशेष प्रेम था। श्रीराम दयालु, क्रोध को जीतने वाले थे। दुखी लोगों के प्रति दया रखते थे।

श्रीराम ने कभी अपनी शक्तियों का घमंड नहीं किया

श्रीराम पराक्रमी थे। वे विद्वान और बुद्धिमान थे। श्रीराम निरोगी थे और वे हमेशा युवा ही रहे। वे अच्छे वक्ता थे। श्रीराम देश-काल और परिस्थितियों को समझने वाले थे।

राम सभी विद्याओं के विद्वान थे। वे वेदों के ज्ञाता और शस्त्र विद्या में अपने पिता से भी आगे थे। उनकी स्मरणशक्ति अद्भूत थी। वो वस्तुओं के त्याग और संग्रह को भलिभांति जानते थे। वे सभी अस्त्र-शस्त्रों के जानकार थे।

श्रीराम समय निकालकर ज्ञान, उत्तम चरित्र और महात्माओं के साथ बीताने की कोशिश करते थे। ज्ञानियों से कुछ न कुछ सीखते रहते थे। सदा ही मीठा बोलते थे। दूसरों से बात करते समय अच्छी बातें बोलते थे। श्रीराम पराक्रमी होने के बाद अपनी शक्तियों पर कभी घमंड नहीं करते।

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