Amarnath Yatra Security 2025; Jammu Kashmir Highway | No Flying Zone | अमरनाथ यात्रा मार्ग पर 1 जुलाई से नहीं उड़ेंगे ड्रोन: सरकार ने ‘नो फ्लाई जोन’ घोषित किया; सुरक्षा व्यवस्था बेहतर करने के लिए फैसला


श्रीनगर16 मिनट पहले

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यात्रा के पहलगाम और बालटाल वाले दोनों रास्तों पर हर तरह के हवाई उपकरण- ड्रोन, यूएवी (UAVs), और गुब्बारे प्रतिबंधित रहेंगे। - Dainik Bhaskar

यात्रा के पहलगाम और बालटाल वाले दोनों रास्तों पर हर तरह के हवाई उपकरण- ड्रोन, यूएवी (UAVs), और गुब्बारे प्रतिबंधित रहेंगे।

अमरनाथ यात्रा के लिए सुरक्षा व्यवस्था को और पुख्ता बनाने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने पूरे यात्रा मार्ग को ‘नो फ्लाइंग जोन’ घोषित किया है। यह फैसला पहलगाम हमले को ध्यान में रखकर लिया गया है।

इसके तहत अमरनाथ यात्रा के पहलगाम और बालटाल वाले दोनों रास्तों पर हर तरह के हवाई उपकरण- ड्रोन, यूएवी (UAVs), और गुब्बारे प्रतिबंधित रहेंगे। यह फैसला 1 जुलाई से 10 अगस्त तक प्रभावी रहेगा। यात्रा 3 जुलाई से 9 अगस्त तक चलेगी।

हालांकि, ये प्रतिबंध मेडिकल इवैक्युएशन, आपदा प्रबंधन और सुरक्षा बलों की तरफ से की जा रही निगरानी उड़ानों पर लागू नहीं होंगे। इनके लिए एक अलग स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) जल्द ही जारी की जाएगी।

अमरनाथ यात्रा के दो रूट हैं…

पहलगाम रूट: इस रूट से गुफा तक पहुंचने में 3 दिन लगते हैं, लेकिन ये रास्ता आसान है। यात्रा में खड़ी चढ़ाई नहीं है। पहलगाम से पहला पड़ाव चंदनवाड़ी है। ये बेस कैंप से 16 किमी दूर है। यहां से चढ़ाई शुरू होती है।

तीन किमी चढ़ाई के बाद यात्रा पिस्सू टॉप पर पहुंचती है। यहां से पैदल चलते हुए शाम तक यात्रा शेषनाग पहुंचती है। ये सफर करीब 9 किमी का है। अगले दिन शेषनाग से यात्री पंचतरणी जाते हैं। ये शेषनाग से करीब 14 किमी है। पंचतरणी से गुफा सिर्फ 6 किमी रह जाती है।

बालटाल रूट: अगर वक्त कम हो, तो बाबा बर्फानी के दर्शनों के लिए बालटाल रूट सबसे मुफीद है। इसमें सिर्फ 14 किमी की चढ़ाई चढ़नी होती है, लेकिन एकदम खड़ी चढ़ाई है। इसलिए बुजुर्गों को इस रास्ते पर दिक्कत होती है। इस रूट पर रास्ते संकरे और मोड़ खतरे भरे हैं।

2025 अमरनाथ यात्रा के लिए इस बार हो रहे विशेष इंतजाम

  • काफिले की सुरक्षा के लिए पहली बार जैमर लगाए जा रहे हैं, जिसे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) सुरक्षा प्रदान करेगी। सशस्त्र बलों की 581 कंपनियां तैनात की जाएंगी। लगभग 42000 से 58,000 जवान तैनात होंगे।
  • यात्रा रूट पर यात्रियों की सुरक्षा के लिए 156 कंपनियां पहले से जम्मू-कश्मीर में तैनात थीं, जबकि 425 नई कंपनियों को 10 जून तक तैनात किया जाएगा।
  • श्रद्धालुओं को कंधे पर बिठाकर ले जाने वाले पोनी वालों का वैरिफिकेशन होगा। क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले पोनी/पिट्‌ठू सर्विस चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • उन घोड़े-खच्चर की भी टैगिंग की गई है, जिन पर बैठकर श्रद्धालु यात्रा पर जाएंगे। ताकि रूट से हटने पर उन्हें रियल टाइम ट्रैक किया जा सके।
  • रोड ओपनिंग पार्टी, खतरों पर तुरंत एक्शन के लिए क्विक एक्शन टीम, बॉम्ब डिफ्यूजल स्क्वॉड, K9 यूनिट्स (विशेष रूप से प्रशिक्षित खोजी कुत्ते) और ड्रोन से निगरानी होगी।

2024 में पहुंचे थे 5 लाख यात्री

2024 में यह यात्रा 52 दिनों की थी। 2023 में 62 दिन, 2022 में 43 दिन और 2019 में 46 दिनों तक यात्रा चली। 2020-21 में कोरोना महामारी के कारण यात्रा स्थगित रही। 2024 में 52 दिनों तक चली अमरनाथ यात्रा में 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन किए थे।

2023 में 4.5 लाख यात्री शामिल हुए थे। साल 2012 में रिकॉर्ड 6.35 तीर्थयात्रियों ने दर्शन किए थे। 2022 में कोविड के कारण आंकड़ा घटा था और 3 लाख तीर्थयात्रियों दर्शन के लिए पहुंचे थे।

पहले भी हो चुके अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमले

अमरनाथ तीर्थयात्रियों पर पहले भी कई आतंकवादी हमले हो चुके हैं। अगस्त 2000 में नुनवान बेस कैंप पर हुए आतंकवादी हमले में दो दर्जन अमरनाथ तीर्थयात्रियों समेत 32 लोग मारे गए थे। जुलाई 2001 में एक हमले में तेरह लोग मारे गए थे, जब आतंकवादियों ने यात्रा के शेषनाग बेस कैंप पर हमला किया था। 2002 में चंदनवारी बेस कैंप पर 11 अमरनाथ यात्री मारे गए थे। जुलाई 2017 में कुलगाम जिले में अमरनाथ तीर्थयात्रियों से भरी बस पर हुए हमले में आठ लोग मारे गए थे।

अमरनाथ में बनता है हिमानी शिवलिंग

अमरनाथ शिवलिंग एक अद्भुत प्राकृतिक हिमनिर्मित संरचना है, जिसे हिमानी शिवलिंग कहा जाता है। अमरनाथ गुफा समुद्र तल से लगभग 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह गुफा उत्तरमुखी है, जिससे सूरज की सीधी रोशनी बहुत कम पहुंचती है। इससे गुफा के अंदर का तापमान 0°C से नीचे बना रहता है, जिससे बर्फ आसानी से जमती है।

गुफा की छत से लगातार पानी टपकता है, जो आस-पास के ग्लेशियरों या बर्फ के पिघलने से आता है। पानी धीरे-धीरे नीचे गिरकर जमता है, तो वह एक स्तंभ या लिंग के आकार में ऊपर की ओर बढ़ता है। यह वैज्ञानिक रूप से स्टेलैग्माइट कहलाता है।

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