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नई दिल्ली12 मिनट पहले
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शाह ने बताया कि अगले पांच साल में देश के हर गांव में सहकारी संस्थाएं स्थापित की जाएंगी। (फाइल फोटो)
नई दिल्ली के अटल अक्षय ऊर्जा भवन में आज गृहमंत्री अमित शाह नई सहकारिता नीति पेश करेंगे। इसके तहत हर पंचायत में समितियां खुलेंगी।
यह नीति अगले 20 साल यानी 2045 तक के लिए बनाई गई है। इसका मकसद है कि गांव-गांव में बनी सहकारी समितियों को और मजबूत किया जाए, जिससे लोग खुद जुड़कर रोजगार पा सकें और देश की तरक्की में हिस्सा ले सकें।
शाह ने बताया कि अगले पांच साल में देश के हर गांव में सहकारी संस्थाएं स्थापित की जाएंगी। फरवरी 2026 तक 2 लाख प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटीज (PACS) स्थापित किए जाएंगे।
यह घोषणा उन्होंने बुधवार को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के अवसर पर राज्य सहकारिता मंत्रियों की बैठक में की।
साथ ही उन्होंने सभी राज्यों को 31 जनवरी 2026 तक अपनी-अपनी राज्य सहकारिता नीति तैयार करने का निर्देश दिया।
सहकारिता नीति के लिए 48 सदस्यों की कमेटी बनाई गई थी पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक 48 सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी, जिसमें देशभर की सहकारी संस्थाओं, केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी और जानकार लोग शामिल थे।
कमेटी ने अहमदाबाद, बेंगलुरु, गुरुग्राम और पटना जैसे शहरों में 17 बैठकें और 4 वर्कशॉप कीं। इसमें देशभर से आए 648 सुझावों को ध्यान से समझकर इस नीति में शामिल किया गया।
दरअसल, सरकार चाहती है कि गांव, किसान और छोटे व्यापारी आपस में मिलकर आगे बढ़ें। इसी के लिए यह नीति बनाई गई है, जो अगले 20 सालों तक सहकारिता के जरिए लोगों को आत्मनिर्भर और देश को विकसित बनाने में मदद करेगी।

किसानों की स्थिति में 5 बड़े बदलाव होंगे
- आर्थिक आजादी: अब किसान मंडी और बिचौलियों पर निर्भर नहीं रहेंगे, सहकारी समितियां सीधे उपज खरीदेंगी।
- स्थानीय व्यवस्थाएं: गांवों में डेयरी कलेक्शन, खाद-बीज वितरण और अनाज भंडारण की जिम्मेदारी सहकारी समितियों की होगी।
- महिला-युवा भागीदारी: समितियों में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी बढ़ेगी, जिससे सामाजिक और आर्थिक मजबूती मिलेगी।
- डिजिटल सहकारिता: सभी समितियां डिजिटल होंगी, जिससे कामकाज पारदर्शी और तेज होगा।
- प्रशिक्षण और शिक्षा: गांव के युवाओं को सहकारी प्रबंधन की ट्रेनिंग दी जाएगी, जिससे वे समितियों को बेहतर ढंग से चला सकें।
क्यों जरूरी है नई नीति? सहकारिता नीति आखिरी बार साल 2002 में बनाई गई थी, लेकिन तब से अब तक दुनिया, तकनीक और देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आ चुका है। आज का दौर डिजिटल हो गया है, किसान नई-नई चुनौतियों से जूझ रहे हैं और गांवों में रोजगार की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा महसूस की जा रही है।
कई जगहों पर सहकारी संस्थाएं अपनी भूमिका निभाने में पीछे रह गईं, इसलिए अब एक ऐसी मॉर्डन और प्रोफेशनल नीति की जरूरत थी, जो उन्हें गांवों की आर्थिक रीढ़ बना सके।
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