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3 घंटे पहले
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ठीक एक साल पहले, आज ही के दिन। बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना अपना देश छोड़कर भाग गईं। सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन के खिलाफ स्टूडेंट्स के जबरदस्त विरोध के सामने उन्हें हार माननी पड़ी।
एक दिन पहले यानी 4 अगस्त 2024 को राजधानी ढाका की सड़कों पर स्टूडेंट्स ‘छी छी, हसीना शर्म करो’, ‘डिक्टेटर हसीना’ जैसे नारे लगा रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस पूरे प्रदर्शन के दौरान 1 हजार से ज्यादा लोग मारे गए और कई हजार घायल हुए।
नौकरियों में रिजर्वेशन को लेकर शुरू हुआ विरोध
बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जून 2024 में देश में रिजर्वेशन लागू करने का आदेश दिया। बांग्लादेश में 2018 में नौकरियों में रिजर्वेशन सिस्टम को खत्म कर दिया गया था। कोर्ट ने इसे अवैध बताते हुए इसे फिर से बहाल कर दिया था।

जुलाई में हुए प्रदर्शन के दौरान के लिए पुलिस-छात्रों के बीच संघर्ष हुआ।
इस पॉलिसी के तहत 1971 में पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई लड़ने वाले परिवारों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियां रिजर्व की गईं थीं। ऐसे परिवार जिसने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया, उनमें नाराजगी थी। इसके अलावा 26 प्रतिशत नौकरियां महिलाओं, विकलांग लोगों और जातीय समुदायों को अलॉट की गईं।
लेकिन जून 2024 में बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को अवैध करार कर दिया और रिजर्वेशन सिस्टम लागू कर दिया। जुलाई 2024 में बांग्लादेश की गवर्नमेंट यूनिवर्सिटी में नए पेंशन सुधारों को लेकर नियम लाया गया। इसका बड़ी संख्या में फैकल्टी और स्टूडेंट्स ने वॉक आउट किया।
हसीना ने कहा- प्रदर्शनकारी रजाकार हैं
रिजर्वेशन के खिलाफ शुरुआत में विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे, लेकिन हसीना के एक भड़काऊ भाषण से तनाव बढ़ गया। उन्होंने कहा था- ये स्टूडेंट्स नहीं ‘रजाकार’ यानी देशद्रोही हैं। यह शब्द बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तान समर्थकों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

22 जुलाई 2024 तक हिंसा में कुल 146 मौतें दर्ज की गईं।
विरोध प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि बांग्लादेश स्टूडेंट्स लीग ने पुलिस के साथ मिलकर स्टूडेंट्स पर आंसू गैस और गोलियों से हमला करना शुरू कर दिया। रैपिड एक्शन बटालियन, अर्धसैनिक बल को भी इसमें शामिल किया गया।
इसके बाद विरोध प्रदर्शन और तेज हो गए और स्टूडेंट्स के अलावा आम लोग भी प्रोटेस्ट में शामिल हो गए। जिससे पुलिस और सेना ने ओर ज्यादा हिंसक कार्रवाई शुरू कर दी।
स्टूडेंट्स बड़ा चेहरा बनकर उभरे
इस प्रोटेस्ट के दौरान यूनिवर्सिटी स्टूडेंटस का वीडियो ऑनलाइन ब्रॉडकास्ट हुआ। इस वीडियो में अबू सईद नाम का एक स्टूडेंट मारा गया था, जब उसकी मौत हुई वो भीड़ से अलग खड़ा था और उसके हाथ में कोई हथियार भी नहीं था।

अपनी हत्या से एक दिन पहले ही सईद ने राजशाही यूनिवर्सिटी के एक युवा शहीद प्रोफेसर शमसुज्जोहा का एक फोटो शेयर किया था, जिनकी 1969 में प्रोटेस्ट कर रहे स्टूडेंट्स को बचाने के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उसने लिखा था, सर, हमें अभी आपकी सख्त जरूरत है, आपकी विरासत हमारी प्रेरणा है।
इस प्रोटेस्ट से तीन बड़े स्टूडेंट्स नेता उभरे जिनमें पहला नाहिद, अबु बकर मजूमदा और आसिफ महमूद था, नाहिद ढाका यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट था। अबु बकर मजूमदा ढाका यूनिवर्सिटी में जियोग्राफी डिपार्टमेंट का स्टूडेंट था और द फ्रंट लाइन डिफेंडर के मुताबिक वह सिविल राइट्स और ह्यूमन राइट्स को लेकर भी काम करता था।
5 जून को हाईकोर्ट के आरक्षण पर दिए फैसले के बाद बकर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन मूवमेंट की शुरुआत की।
आसिफ महमूद भी ढाका यूनिवर्सिटी में लैंग्वेज स्टडीज का स्टूडेंट था। 1 अगस्त तक स्टूडेंट्स को अरेस्ट करने को लेकर विरोध बढ़ गया और प्रदर्शन तेज हो गए। 3 अगस्त को आसिफ ने फेसबुक के जरिए लोगों से घरों से निकलकर प्रदर्शनों में शामिल होनी की अपील की।
इन सभी से आंदोलन को वापस लेने के लिए जबरदस्ती वीडियो बनवाया गया। जब ये कैद में थे, तब गृह मंत्री ये दावा कर रहे थे कि इन्होंने अपनी मर्जी से आंदोलन को खत्म करने की बात कही है।
जब मामला खुला तो प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और भड़क गया। प्रदर्शन इतना बढ़ गया कि हजारों लोग सड़कों पर उतर गए। उन्होंने संसद भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय पर कब्जा कर लिया।
देखते ही गोली मारने का आदेश जारी हुआ
रविवार यानी 4 अगस्त 2024 को विरोध प्रदर्शन में 90 से ज्यादा लोग मारे गए, पुलिस अधिकारियों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें बढ़ गईं और प्रदर्शनकारियों ने हसीना को पद छोड़ने के लिए कहा।

अगस्त 2024 के विरोध प्रदर्शन में 90 से ज्यादा लोग मारे गए।
प्रोटेस्ट और बढ़ते विरोध के बाद सरकार ने स्कूलों और यूनिवर्सिटियों को बंद कर दिया। कर्फ्यू लगा दिया और इंटरनेट और टेलीफोन नेटवर्क जैसी सेवाओं को बंद कर दिया। इस बीच कई सारे स्टूडेंट्स लीडर्स को अरेस्ट कर लिया और उन्हें अपनी मांगों को वापस लेने को मजबूर किया गया।
जिसके बाद पुलिस ने राजधानी ढाका के शाहबाग चौराहे पर प्रदर्शनकारियों की बड़ी भीड़ पर रबर की गोलियां और आंसू गैस छोड़ी। उत्तर-पश्चिमी जिले सिराजगंज में प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन पर भी हमला किया जिसमें कम से कम 13 अधिकारी मारे गए।
विरोध जैसे ही उग्र हुआ अधिकारियों ने रविवार शाम 6 बजे ‘देखते ही गोली मारने’ का आदेश दिया और कर्फ्यू लगा दिया। व्यवस्था बहाल करने के लिए पुलिस और सैन्य इकाइयों को सड़कों पर तैनात कर दिया, लेकिन सोमवार तड़के हजारों लोगों ने कर्फ्यू तोड़ दिया और मार्च निकाला, वहीं राजधानी के बाहर झड़पों की खबरें थीं।
सुबह तक जो विरोध की तस्वीर थी वो दोपहर तक बदल गई, प्रदर्शनकारियों ने सेना को फूल सौंपना शुरू किया और बदले में अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को गले लगाया, जिससे माहौल बदल गया और बांग्लादेश की आवाम ने खुशी जाहिर की कि अब हसीना का खेल खत्म हो गया है।
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