Delhi High Court Rejects PIL To Abolish Offences Of ‘Waging War’, ‘Unlawful Assembly’ From BNS 2023 | दिल्ली हाईकोर्ट बोला- संसद को निर्देश नहीं दे सकते: कानून बनाने और बदलाव करने का काम उनका, BNS की धाराएं हटाने की याचिका खारिज


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नई दिल्ली38 मिनट पहले

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दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को भारतीय न्याय संहिता (BNS) के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने की मांग वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका के पास संसद को कोई कानून बनाने या निरस्त करने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है।

चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस अनीश दयाल की बेंच ने कहा;-

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किसी कानून को खत्म करना हो तो वो सिर्फ संसद कर सकती है और वो भी कानून में बदलाव (संशोधन) करके। हम संसद को ऐसा करने का आदेश नहीं दे सकते, क्योंकि ये कानून बनाने जैसा काम होगा और वो हमारा काम नहीं है।

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याचिकाकर्ता का तर्क- लोगों को दबाने के लिए बनाई गई धाराएं याचिकाकर्ता उपेन्द्रनाथ दलई ने BNS की धाराएं 147 से 158 और 189 से 197 को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि ये धाराएं राज्य के खिलाफ अपराध और लोक शांति भंग करने से जुड़ी हैं, जो ब्रिटिश शासन के वक्त लोगों को दबाने के लिए बनाई गई थीं। दलई का तर्क था कि इन पुराने कानूनों को आज भी लागू रखना संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

याचिका में खास तौर पर BNS की धारा 189 का जिक्र किया गया था, जो ‘गैरकानूनी जमावड़े’ से जुड़ी है।याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सरकारें अक्सर इस कानून का पुलिस के जरिए गलत इस्तेमाल करती हैं ताकि विरोध की आवाजों को दबाया जा सके।

हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और साफ कहा कि वो कानून बनाने या बदलने का काम नहीं कर सकती, क्योंकि वो संसद का अधिकार क्षेत्र है।

क्या है BNS की ये धाराएं?

  • धारा 147 से 158: ये राज्य के खिलाफ अपराध जैसे भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना, संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कामों से जुड़ी हैं।
  • धारा 189 से 197: ये लोक व्यवस्था भंग करने से जुड़े अपराधों जैसे अवैध सभा, दंगा आदि को कवर करती हैं।

3 नए आपराधिक कानून 2024 में लागू हुए थे देश में अंग्रेजों के जमाने से चल रहे कानूनों की जगह 3 नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई 2024 को लागू हुए। इन्हें IPC (1860), CrPC (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) की जगह लाया गया ।

गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब दंड की जगह न्याय मिलेगा। मामलों में देरी की जगह स्पीडी ट्रायल होगा। साथ ही सबसे आधुनिक क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बनेगा।

ममता ने मोदी को चिट्ठी लिखकर कहा था- जल्दी में पास किए गए, इनका न लागू करें

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर इन कानूनों को लागू करने से रोकने की मांग की थी। बंगाल CM ने संसद से इन कानूनों की नई समीक्षा कराने की मांग की थी।ममता ने 20 जून को कांग्रेस नेता पी चिदंबरम से मुलाकात की थी। चिदंबरम इन तीनों कानूनों की जांच को लेकर बनाई गई संसद की स्थायी समिति के सदस्य थे।

ममता ने ये भी कहा था- मेरा भरोसा है कि अगर कानून लागू नहीं होते और उनका रीव्यू किया जाता है तो इससे लोगों का न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा और देश में कानून का शासन लागू होगा। पढ़ें पूरी खबर…

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