Eternal truth is transmitted through not one but many beings | रसरंग में मायथोलॉजी: शाश्वत सत्य एक नहीं, अनेक प्राणियों से होता है प्रसारित


देवदत्त पट्टनायक2 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
अर्जुन को गीता ज्ञान देते कृष्ण। यह विशालकाय प्रतिमा बेंगलुरु स्थित
विश्व शांति आश्रम में बनी है। कृष्ण के गीता ज्ञान को हम सीधे नहीं सुन पाए,
बल्कि इसे हमने संजय के जरिए जाना। - Dainik Bhaskar

अर्जुन को गीता ज्ञान देते कृष्ण। यह विशालकाय प्रतिमा बेंगलुरु स्थित विश्व शांति आश्रम में बनी है। कृष्ण के गीता ज्ञान को हम सीधे नहीं सुन पाए, बल्कि इसे हमने संजय के जरिए जाना।

अब्राहमी आख्यानशास्त्रों के अनुसार गॉड इंसानों के साथ पैगम्बरों के माध्यम से संपर्क करते हैं। यहूदी धर्म के अनुसार गॉड ने अपना संदेश मूसा को दिया, ईसाई धर्म के अनुसार उन्होंने अपना संदेश ईसा मसीह को दिया और इस्लाम के अनुसार अल्लाह ने अपना संदेश आदम से शुरू करते हुए कई पैगम्बरों को दिया। उसके अनुसार मुहम्मद आखिरी पैगम्बर थे। इस प्रकार, पैगम्बरों ने गॉड की आवाज सुनी और मनुष्यों ने पैगम्बरों की।

लेकिन हिंदू धर्म के अनुसार देवता किसी पैगम्बर से प्रत्यक्ष बात नहीं करते हैं। वास्तव में, हिंदू धर्म में पैगम्बर ही नहीं होते हैं। देवी-देवता अपना ज्ञान बांटते हैं और ऋषि उसे संयोग से (बाय चांस) सुनकर मानवता तक पहुंचाते हैं। इस प्रकार, हिंदू धर्म में ज्ञान संयोग से सुनकर प्राप्त किया जाता है। अतः हिंदू धर्म में ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक नहीं, बल्कि स्वैच्छिक होता है।

वेदों को श्रुति कहा जाता है, वे जो सुने जाते हैं। यह इस बात का संकेत है कि वेद मौखिक ढंग से संचारित किए गए। परंपरागत समझ यह है कि ये प्रकटन ऋषियों को मिले थे और उन्होंने यह ज्ञान मानवता तक पहुंचाया। लेकिन इतिहासकारों के अनुसार वेद दैवी भाग्य और शक्तिशाली व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त करने के लिए कवियों द्वारा रची गईं कविताएं हैं।

19वीं सदी में औपनिवेशिक सत्ता के प्रभाव के कारण कई विद्वानों ने समझा कि वैदिक प्रकटन बाइबल में गॉड से मिले प्रकटन के समान थे। लेकिन दोनों में अंतर है।

सनातन धर्म में यह मान्यता है कि ऑक्सीजन की तरह ज्ञान भी सर्वत्र उपस्थित है। यदि हम चाहें और यदि हम संवेदनशील हों तो वह ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। ऋषि यह ज्ञान प्राप्त करते हैं। जो बातें दूसरे सुन या देख नहीं सकते, वे ऋषि सुन और देख सकते हैं। मंत्र, यंत्र और तंत्र जैसी विद्याओं तथा तपस्या करके ऋषि का शरीर ब्रह्मांड के कंपन सुन पाता है। इस प्रकार, जो व्यक्ति देखने और सुनने में सक्षम बनते हैं, वे ऋषि कहलाते हैं।

पुराणों में दूसरों को संयोग से सुनने की धारणा उभरी। उनके अनुसार पशुओं और मनुष्यों ने संयोग से देवी-देवताओं की बातचीत सुनी। पतंजलि नामक सर्प, शुक नामक पक्षी, काकभुशुण्डि नामक काक और एक मत्स्य, जो आगे जाकर मत्स्य मत्स्येंद्रनाथ बना, ने शिव और शक्ति को तंत्र पर बात करते हुए सुना। इस प्रकार इन पशुओं ने देवी-देवताओं की बातचीत सुनकर तंत्र का ज्ञान फैलाया। पतंजलि योगसूत्र, शुक भागवत पुराण, काकभुशुण्डि रामायण और मत्स्येंद्रनाथ नाथ-जोगी परंपराओं से जुड़े हैं।

भगवद गीता में भी यही देखा जाता है। कृष्ण अर्जुन से क्या कह रहे हैं, यह हम प्रत्यक्ष रूप से नहीं सुन सकते हैं। संजय कृष्ण को अर्जुन से बोलते हुए सुनते हैं और हम संजय को यह बात धृतराष्ट्र से कहते हुए सुनते हैं।

दूसरों की बातचीत संयोग से सुनना रामायण से जुड़ी लोककथाओं में भी देखा जाता है। उनके अनुसार, हनुमान ने राम और सीता को वेदों पर बातचीत करते हुए सुना। यह सुनकर वे जान गए कि राम और सीता साधारण मनुष्य न होते हुए मानवीय रूप लिए दैवीय जीव थे। हनुमान यह भी जान गए कि उनमें भी देवत्व था, जिसने तब तक अपना रूप नहीं दिखाया था।

इस प्रकार, हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्यों से अपेक्षित है कि वे ज्ञान बांटें। दूसरों की बात संयोग से सुनना अपने हाथों में होता है। गॉड का संदेश सुनना अपने हाथों में नहीं होता है। इस प्रकार, हिंदू धर्म का पालन करना स्वैच्छिक माना जाता है, जबकि अब्राहमी धर्मों का पालन करना अनिवार्य माना जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार हम कई जीवन जीते हैं और इसलिए उचित समय पर हम ज्ञान प्राप्त करके ज्ञानी बन जाएंगे। अब्राहमी धर्म मानते हैं कि हम केवल एक जीवन जीते हैं। चूंकि हमें इस एक जीवन में गॉड का संदेश प्राप्त करना है, उनकी कहानियों का स्वरूप आग्रहपूर्वक होता है।

रामायण में राम ने अपने राज्य में गुप्तचर भेजे। जब राम को पता चला कि लोग सीता के बारे में अफवाहें फैला रहे हैं, तब उन्होंने राजसी मर्यादा को बनाए रखने के लिए सीता को त्यागने का निर्णय लिया। तानाशाहों के विपरीत उन्होंने अपनी प्रजा को दंड नहीं सुनाया और सक्रियतावादियों के विपरीत उन्होंने सीता को निर्दोष ठहराने का प्रयास भी नहीं किया। वे जानते थे कि लोग सत्ता में बैठे लोगों पर विश्वास नहीं करते हैं। अपने निर्णय का स्पष्टीकरण देने से लोगों का उन पर अविश्वास बढ़ता। इसलिए उन्होंने एक क्रूर निर्णय लेकर अपना निजी जीवन नष्ट किया, ताकि राज परिवार की मर्यादा बनी रह सके और लोग समझ सके कि अफवाहें फैलाने का क्या परिणाम होता है।



Source link

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top