How to make difficult conversations productive | टिप्स: कठिन बातचीत को ऐसे बनाएं प्रोडक्टिव


1 घंटे पहले

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  • एक अच्छी तरह से काम करने वाले संगठन के लिए यह जरूरी है कि कर्मचारी और नेता दोनों ही प्रभावी और रचनात्मक संवाद करें, भले ही उनके विचार अलग-अलग हों। कठिन या संवेदनशील बातचीत को बेहतर बनाने का एक शानदार तरीका है : सामने वाले के दृष्टिकोण को खुले मन से सुनना और सम्मान देना, चाहे आप उससे सहमत हों या न हों। यहां चार तरीके दिए हैं जिनसे आप मतभेद के बावजूद अपनी बातचीत को सकारात्मक दिशा में ले जा सकते हैं, कठिन बातचीत को उत्पादक बना सकते हैं।

1) सामने वाले के नजरिए को स्वीकार करें जब आप कहते हैं कि ‘आपका नजरिया साझा करने के लिए धन्यवाद, क्योंकि…’, तो यह दर्शाता है कि आप सामने वाले की बात को महत्व देते हैं, भले ही आप उनकी बात से असहमत हों। धन्यवाद कहने से सामने वाला सम्मानित महसूस करता है और ‘क्योंकि’ जोड़ने से संवाद गहरा हो जाता है। उदाहरण : ‘आपका पक्ष रखने के लिए धन्यवाद, क्योंकि इससे मुझे स्थिति को एक नए दृष्टिकोण से समझने में मदद मिली।’ इस तरह आप सामने वाले के दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं।

2) अपने दावों को थोड़ा नर्म और लचीला रखें अपने विचारों को थोड़ी अनिश्चितता के साथ पेश करें। इससे सामने वाले को यह दिखता है कि आप वाकई खुले विचारों वाले हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप ये कहते हैं कि ‘शायद अगर हम कर्मचारियों को लचीलापन देने का विकल्प दें, तो वे संगठन से अधिक जुड़ाव महसूस करें। यह बात काफी बेहतर साबित होती है बनिस्बत ‘इससे जुड़ाव जरूर बढ़ेगा’ के। यदि आप अपनी बात पर अड़ेंगे नहीं और अपने दावों को थोड़ा नर्म और लचीला रखेंगे, तो आपके लिए चीजें ज्यादा आसान हो जाएंगी।

3) तर्क को सकारात्मक भाषा में ही पेश करें बातचीत करते हुए आपसी टकराव के दौरान आपके नकारात्मक वाक्य सामने वाले को डिफेंसिव बना सकते हैं। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि अपनी बात को सकारात्मक रूप से सबके सामने रखें। उदाहरण के तौर पर- यदि आप ये कहते हैं कि ‘चलिए सोचते हैं कि अगर मार्केटिंग टीम में कम लोग होंगे, तो इसके क्या फायदे हो सकते हैं’ बजाय इसके आप ये कहें कि ‘अब हमें मार्केटिंग में और लोग नहीं रखने चाहिए’ तो यह वाक्य सुनने में थोड़ा नकारात्मक लग सकता है।

4) छोटी या सामान्य सहमति भी उजागर करें मतभेद के समय हम अक्सर सिर्फ असहमति पर ही ध्यान देते हैं। लेकिन थोड़ा-सा भी साझा मूल्य या विचार हों, तो उसे जरूर सामने लाएं। इससे आपसी जुड़ाव और समझ भी बढ़ती है। उदाहरण : ‘देखने में आ रहा है कि शायद हम दोनों ही यही चाहते हैं कि टीम अच्छा प्रदर्शन करे। हमारे बात करने के तरीकों में फर्क हो सकता है, लेकिन हमारा लक्ष्य तो एक ही लग रहा है।’ इस तरह आप अपनी सहमति को उजागर करें।



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