नई दिल्ली7 मिनट पहले
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भारतीय सेना ने लद्दाख में स्वदेशी रूप से विकसित वायु रक्षा प्रणाली ‘आकाश प्राइम’ का सफल परीक्षण किया है। इस एडवांस मिसाइल सिस्टम को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया है। इस सिस्टम ने पूर्वी लद्दाख में यह 15,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर उड़ रहे दो ड्रोन मार गिराए। ‘आकाश प्राइम’ एयर डिफेंस सिस्टम का सफल परीक्षण थल सेना की एयर डिफेंस विंग के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में हुआ।
डीआरडीओ ने ही यह सिस्टम विकसित किया

यह प्रणाली लद्दाख के चुनौतीपूर्ण मौसम में सटीक प्रहार करने में सक्षम पाई गई।
इस प्रणाली को डीआरडीओ ने ही विकसित किया है। यह प्रणाली लद्दाख के चुनौतीपूर्ण मौसम में सटीक प्रहार करने में सक्षम पाई गई। जल्द ही इसे दुश्मन की हवाई चुनौतियों का सामना करने के लिए मैदान में लाया जाएगा। यह सिस्टम 4500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर काम करने के लिए बनाया गया है।
यह सिस्टम किसी भी मौसम और भूभाग में बेहतर एक्यूरेसी प्रदान करता है। भारतीय सेना में आकाश वायु रक्षा प्रणालियों की तीसरी और चौथी रेजिमेंट में अब आकाश प्राइम को शामिल किया जाएगा। इससे देश का वायु रक्षा कवच और भी मजबूत होगा। यह डेवलपमेंट ऐसे समय में हुआ है, जब देश अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भरता कम करने पर जोर दे रहा है।
सेना की हवाई सुरक्षा को और मजबूती मिलेगी

यह सिस्टम 4500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर काम करने के लिए बनाया गया है।
आकाश प्राइम प्रणाली से एयर डिफेंस की तीसरी व चौथी रेजिमेंट का गठन होगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान द्वारा ड्रोन के हमले करने के बाद से सेना की हवाई सुरक्षा को और मजबूत करने की दिशा में बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। बता दें कि सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के चीनी विमानों के साथ तुर्किये के ड्रोन हमले नाकाम किए थे।
पर्वतीय क्षेत्रों व अत्यधिक ठंड में कारगर आकाश प्राइम एयर डिफेंस के लिए इस्तेमाल की जा रही मौजूदा आकाश प्रणाली का संशोधित रूप है। यह प्रणाली स्वदेशी सक्रिय रेडियो फ्रीक्वेंसी से लैस है। इसमें किए गए अन्य सुधार सुनिश्चित करते हैं कि इसका सटीकता से उच्चतम पर्वतीय इलाकों की अत्यधिक ठंड में इस्तेमाल हो सके।
आकाश प्राइम की सटीक प्रति यूनिट कीमत सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं की गई है। लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार, पूरी आकाश मिसाइल प्रणाली के विकास में लगभग 1,000 करोड़ रुपए (17 करोड़ डॉलर) की लागत आई है। यह अन्य देशों में विकसित ऐसी ही प्रणालियों के मुकाबले 8-10 गुना कम है। यह बताता है कि भारत कम लागत पर हाई-क्वालिटी वाली रक्षा तकनीक विकसित करने में सक्षम है।
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