Inspirational story- There is no devotion without love, motivational story about devotion, success and happiness, family problems and solutions | प्रेरक कथा- प्रेम के बिना भक्ति नहीं होती: दुखी व्यक्ति घर छोड़कर संन्यासी बनने पहुंचा तो संत ने समझाया वह संन्यासी क्यों नहीं बन सकता


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2 घंटे पहले

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पुराने समय में एक व्यक्ति घर-परिवार में वाद-विवाद से तंग आ गया था। वह बहुत दुखी रहता था। जब घर के झगड़े उसकी सहनशक्ति से ज्यादा हो गए तो उसने एक दिन सोचा कि अब मुझे संन्यास ले लेना चाहिए।

वह व्यक्ति घर पर बिना किसी को कुछ बताए सबकुछ छोड़कर जंगल की ओर निकल गया। जंगल में उसे एक आश्रम दिखाई दिया। वह आश्रम में पहुंचा तो उसने देखा कि एक संत पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान कर रहे थे। दुखी व्यक्ति संत के सामने बैठ गया और उनका ध्यान खत्म होने का इंतजार करने लगा।

जब संत का ध्यान पूरा हुआ और उन्होंने आंखें खोलीं तो व्यक्ति ने संत से कहा कि गुरुदेव मुझे अपना शिष्य बना लीजिए। मैं सब कुछ छोड़कर भगवान की भक्ति करने आया हूं। मुझे भी संन्यासी बनना है।

संत ने उससे पूछा कि तुम अपने घर में किसी से प्रेम करते हो?

व्यक्ति ने कहा – नहीं, मैं अपने परिवार में किसी से प्रेम नहीं करता।

संत ने कहा कि क्या तुम्हें अपने माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी और बच्चों में से किसी से भी लगाव नहीं है?

व्यक्ति ने संत को जवाब दिया कि ये पूरी दुनिया स्वार्थी है। मैं अपने घर-परिवार में किसी से भी स्नेह नहीं रखता। मुझे किसी से लगाव नहीं है, इसीलिए मैं सब कुछ छोड़कर संन्यास लेना चाहता हूं।

संत ने कहा कि भाई, तुम मुझे क्षमा करो। मैं तुम्हें शिष्य नहीं बना सकता। मैं तुम्हारे अशांत मन को शांत नहीं कर सकता हूं। अगर तुम्हें अपने परिवार से थोड़ा भी स्नेह होता तो मैं उसे और बढ़ा सकता था, अगर तुम अपने माता-पिता से प्रेम करते तो मैं इस प्रेम को बढ़ाकर तुम्हारे मन को भगवान की भक्ति में लगा सकता था। लेकिन तुम्हारा मन बहुत कठोर है। एक छोटा सा बीज ही विशाल वृक्ष बनता है, लेकिन तुम्हारे मन में प्रेम भाव है ही नहीं। मैं किसी पत्थर से पानी का झरना कैसे बहा सकता हूं। मैं तुम्हें अपना शिष्य नहीं बना सकता।

इस प्रसंग की सीख

  • समस्या से भागना नहीं चाहिए

दुखी व्यक्ति ने पारिवारिक कलह से तंग आकर भागना चाहा, लेकिन शांति भागने से नहीं मिलती। उसे पाने के लिए भीतर की भावना बदलनी होती है।

  • भक्ति के लिए प्रेम है जरूरी

संत ने स्पष्ट किया कि अगर मन में प्रेम का बीज है, तभी उसे बढ़ाकर भक्ति रूपी वृक्ष बनाया जा सकता है। प्रेम के बिना भक्ति नहीं की जा सकती है।

  • रिश्ते में प्रेम बनाए रखें

जो व्यक्ति अपने रिश्तों का सम्मान करता है, वही ईश्वर के प्रति समर्पित हो सकता है। जो लोग अपने रिश्तेदारों से प्रेम नहीं कर पाते हैं, वे भक्ति भी नहीं कर पाएंगे।

जीवन में संघर्ष आते हैं, लेकिन उन संघर्षों से भागना नहीं चाहिए। अपनों से प्रेम, संबंधों का सम्मान, ये वो मूल तत्व हैं, जो इंसान को जीवन में स्थायित्व, शांति और भक्ति की ओर ले जाते हैं।

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