Jammu Kashmir CM Omar Abdullah Martyrs Day Row Srinagar | उमर अब्दुल्ला ने कब्रिस्तान की दीवार फांदी, फातिहा पढ़ा: महाराजा हरिसिंह के खिलाफ लड़ने वालों का शहीदी दिवस मनाया, LG ने रोक लगाई थी


श्रीनगर5 घंटे पहलेलेखक: रऊफ डार

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13 जुलाई को शहीदी दिवस मनाने को लेकर उमर और जम्मू-कश्मीर प्रशासन में विवाद था। - Dainik Bhaskar

13 जुलाई को शहीदी दिवस मनाने को लेकर उमर और जम्मू-कश्मीर प्रशासन में विवाद था।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को श्रीनगर के नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान में कब्रों पर फातिहा पढ़ने और फूल चढ़ाने के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए।

इसमें उमर कब्रिस्तान की बाउंड्री वॉल फांदकर अंदर जाते दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे प्रशासन की सख्ती के बाद भी 13 जुलाई शहीद दिवस पर नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान पहुंचे।

यहां 94वें साल पहले जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के शासन के दौरान मारे गए 22 लोगों (मुस्लिम) को श्रद्धांजलि दी।

फातिहा पढ़ने के बाद उमर ने 22 लोगों की कब्रों पर फूल चढ़ाए।

फातिहा पढ़ने के बाद उमर ने 22 लोगों की कब्रों पर फूल चढ़ाए।

पहले समझिए शहीदी दिवस विवाद को….

1900 से 1930 के दौरान जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम समुदायों ने तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के खिलाफ आवाज उठाई थी। 13 जुलाई 1931 को महाराज की सेना से झड़प में 22 लोग मारे गए थे।

इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर में आंदोलन तेज हुए। उमर के दादा शेख अब्दुल्ला ने 1949 में 13 जुलाई को शहीदी दिवस घोषित किया। 2019 तक 13 जुलाई को शासकीय अवकाश रहा करता था।

2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद इस दिन को आधिकारिक छुट्टियों की सूची से हटा दिया गया। तब से शहीदी दिवस को लेकर विवाद जारी है।

उमर का आरोप- मेरे साथ हाथापाई की गई

उमर ने X पर लिखा- 13 जुलाई 1931 के शहीदों की कब्रों पर श्रद्धांजलि अर्पित की और फातिहा पढ़ा। सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की और मुझे नौहट्टा चौक से पैदल चलने के लिए मजबूर किया। नक्शबंद साहब दरगाह के गेट को बंद कर दिया, मुझे दीवार फांदने के लिए मजबूर किया। मुझे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन मैं आज रुकने वाला नहीं था।​​​​​

उन्होंने लिखा- मेरे साथ हाथापाई की गई, मुझे रोकने को कोशिश की गई, लेकिन मैं रुका नहीं। मैं कोई गैरकानूनी कान नहीं कर रहा था। यकीनन इन ‘कानून के रक्षकों’ को यह बताने की जरूरत है कि किस कानून के तहत वे हमें फातिहा पढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे थे।

नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान की 4 तस्वीरें…

जम्मू-कश्मीर की शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी से नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान पहुंची थीं।

जम्मू-कश्मीर की शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी से नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान पहुंची थीं।

कब्रिस्तान में दाखिल होने के बाद सुरक्षाकर्मियों ने सीएम उमर अब्दुल्ला को रोकने की कोशिश की थी।

कब्रिस्तान में दाखिल होने के बाद सुरक्षाकर्मियों ने सीएम उमर अब्दुल्ला को रोकने की कोशिश की थी।

उमर नंगे पैर कब्रों तक पहुंचे थे। उन्होंने चप्पलें हाथ में उठा ली थीं।

उमर नंगे पैर कब्रों तक पहुंचे थे। उन्होंने चप्पलें हाथ में उठा ली थीं।

फातिहा पढ़ते उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और अन्य लोग।

फातिहा पढ़ते उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और अन्य लोग।

एक किलो मीटर पैदल चले उमर, मंत्री इट्टू स्कूटी से पहुंचीं

नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान तक खानयार और नौहट्टा से आने वाले रास्तों को सुरक्षाकर्मियों ने सील कर दिया था। उमर अब्दुल्ला कार के जरिए खानयार तक आए। इसके बाद एक किलोमीटर पैदल चलकर कब्रिस्तान तक पहुंचे।

उमर के पिता नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला खानयार चौराहे से शहीद स्मारक तक ऑटोरिक्शा से पहुंचे। वहीं, जम्मू-कश्मीर की शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी से कब्रिस्तान तक आईं थीं।

75 लाख रुपए में अंग्रेजों से हरि सिंह के पूर्वजों को मिली जम्मू कश्मीर रियासत फरवरी 1846, पंजाब के सोबरांव में ब्रिटिश सेना और पंजाब राजघराने के बीच भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पंजाब रियासत की महारानी जिंद कौर ने गुलाब सिंह को सेनापति नियुक्त किया था, लेकिन युद्ध से अलग रहकर गुलाब सिंह ने अंग्रेजों की मदद की।

इस समय जम्मू कश्मीर का पूरा इलाका पंजाब राजघराने के शासन क्षेत्र में था। इस जंग को जीतने के बाद अंग्रेजों ने पंजाब के सिख साम्राज्य पर डेढ़ करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था।

गुलाब सिंह डोगरा ने ‘अमृतसर संधि’ में 75 लाख रुपए अंग्रेजों को देकर पंजाब साम्राज्य का आधा हिस्सा जम्मू, कश्मीर, गिलगिट, बाल्टिस्तान और लद्दाख पर शासन हासिल कर लिया। यहां से जम्मू कश्मीर में डोगरा राजवंश की कहानी शुरू हुई।

कश्मीर सोशलिस्ट पार्टी के नेता और लेखक प्रेमनाथ बजाज के मुताबिक जम्मू कश्मीर की सियासत में वंशवाद की शुरुआत डोगरा वंश से ही हुई थी। इस दौरान राज्य में डोगराओं को ऊंची-ऊंची पदवियां मिलीं।

गुलाब सिंह के बाद उनके बेटे रणबीर सिंह और फिर उनके बेटे प्रताप सिंह जम्मू कश्मीर रियासत के महाराजा बने। 1925 में अपने चाचा प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद हरि सिंह जम्मू कश्मीर के सिंहासन पर बैठे।

अंग्रेजों को पैसा देकर जम्मू कश्मीर रियासत खरीदने की वजह से डोगरा वंश के राजाओं को हर जगह सम्मान नहीं मिला। महात्मा गांधी इस संधि को ‘सेल डीड’ कहा करते थे।

यही वजह है कि 1940 के दशक में अब्दुल्ला परिवार ने जब डोगरा वंश से कश्मीर को आजादी दिलाने के लिए आंदोलन चलाया तो पूरे प्रदेश में एक नारा गूंजने लगा- ‘अमृतसर बैनामा तोड़ दो, कश्मीर हमारा छोड़ दो।’

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फारूक ने दो मौकों पर खुलकर मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा भी जाहिर की थी। इसी बीच पार्टी में दबी जुबान उमर अब्दुल्ला को CM बनाने की मांग उठने लगी। फारूक की बेटी सफिया अपने पिता के मुख्यमंत्री बनने का समर्थन कर रही थीं, जबकि पत्नी मौली अब्दुल्ला बेटे उमर को CM बनाने के पक्ष में थीं। पूरी खबर पढ़ें…

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