श्रीनगर7 मिनट पहलेलेखक: मुदस्सिर कुल्लू
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कटरा और श्रीनगर के बीच दो वंदे भारत ट्रेन हफ्ते में 6 दिन चलती हैं।
कटरा से श्रीनगर के बीच शुरू वंदे भारत को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। सात जून को शुरू दो जोड़ी ट्रेनें 25 जुलाई तक लगभग फुल हैं। अब हर दिन बुकिंग की मांग और बढ़ रही है।
IRCTC के रिजर्वेशन पोर्टल पर 25 जुलाई से पहले इनमें लंबी वेटिंग या नो रूम है। इसके बाद सीटें खाली हैं, हालांकि तेजी से रिजर्वेशन हो रहे हैं।
दरअसल, इन ट्रेनों ने घाटी में आवागमन का नया विकल्प दिया है, जिससे पर्यटकों और व्यापारियों को राहत मिली है। विमान से किराया कम होने से बड़ी संख्या में पर्यटक ट्रेन से जाना पसंद कर रहे हैं। इससे हवाई उड़ानों की संख्या भी आधी रह गई है।
पहलगाम हमले से एक दिन पहले (21 अप्रैल) श्रीनगर से 104 उड़ानें (52 आगमन, 52 प्रस्थान) थीं। इनसे 19,641 यात्रियों ने सफर किया था। पर 22 अप्रैल और उसके बाद ट्रेन सेवा शुरू होने से उड़ानें घटी हैं। फिलहाल रोज 48 से 52 फ्लाइट्स हैं।
श्रीनगर एयरपोर्ट पर 19 जून को 4,293 यात्री पहुंचे और 3,724 ने उड़ान भरी। विमानों में 15% तक सीटें खाली बच रही हैं। एक एयरलाइन कंपनी के अधिकारी ने कहा, ट्रेन के कारण उड़ाने और यात्री कम हुए हैं। विमानन कंपनियों ने फिलहाल 50% उड़ानें कम कर दी हैं।
पहले दिल्ली-श्रीनगर विमान किराया ₹12 से ₹15 हजार रुपए था। हालांकि, वंदे भारत शुरू होने के बाद 6 से 8 हजार रुपए रह गया है।
PM मोदी ने 6 जून को ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी

PM मोदी ने 6 जून को इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जून को इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी। कटरा-श्रीनगर वंदे भारत एक्सप्रेस के टिकट IRCTC की वेबसाइट से बुक किए जा सकते हैं।
ट्रेन में दो ट्रैवल क्लास हैं। चेयरकार का किराया 715 रुपए और एक्जीक्यूटिव क्लास का किराया 1320 रुपए है।
हफ्ते में 6 दिन दो ट्रेनें कटरा और श्रीनगर के बीच चलेंगी। ये अभी ट्रेनें सिर्फ बनिहाल में रुकेंगी, अन्य स्टॉपेज पर फैसला बाद में होगा।
कश्मीर तक ट्रेन से पहले सफर की 5 तस्वीरें…

कटरा स्टेशन पर यात्री वंदे भारत ट्रेन के साथ फोटो खिंचवाए।

यात्रियों ने ट्रेन के अंदर फोटो और वीडियोग्राफी की।

ट्रेन में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।

श्रीनगर से कटरा के लिए वंदे भारत ट्रेन सुबह 8:00 बजे रवाना हुई।

देश के पहले केबल स्टे रेल ब्रिज अंजी पुल से गुजरते समय पैसेंजर खुली वादियों की फोटोग्राफी करने लगे।
10 घंटे का सफर करीब 3 घंटे में पूरा होगा आजादी के 76 साल पूरे होने के बाद भी कश्मीर घाटी बर्फबारी के सीजन में देश के दूसरे हिस्सों से कट जाती है। बर्फबारी होने पर नेशनल हाईवे-44 बंद होने से कश्मीर घाटी जाने का भी बंद हो जाता है।
इसके अलावा भी सड़क के रास्ते जम्मू से कश्मीर जाने में 8 से 10 घंटे का समय लग जाता था। ट्रेन शुरू होने से यह सफर करीब तीन घंटे में पूरा हो जाएगा।
रूट पर दो ट्रेन चलेंगी। पहली ट्रेन कटरा से सुबह 8:10 बजे चलेगी और सुबह 11:10 बजे श्रीनगर पहुंचेगी। यही ट्रेन दोपहर 2 बजे श्रीनगर से वापस आएगी और शाम 5:05 बजे कटरा पहुंचेगी। ये ट्रेनें (26401/26402) मंगलवार को नहीं चलेंगी।
वहीं, दूसरी ट्रेन दोपहर 2:55 बजे कटरा से चलेगी और शाम 6:00 बजे श्रीनगर पहुंचेगी। यही ट्रेन अगले दिन सुबह 8 बजे श्रीनगर से वापस आएगी और सुबह 11:05 पर कटरा पहुंच जाएगी। ये ट्रेनें (26403/26404) बुधवार को नहीं चलेंगी।

अगस्त-सितंबर तक नई दिल्ली-श्रीनगर ट्रेन शुरू करने का प्लान कटरा-श्रीनगर ट्रेन कश्मीर को पूरे साल रेलवे के जरिए जोड़े रखने के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का पहला चरण है। अगले चरणों में नई दिल्ली से जम्मू होते हुए श्रीनगर तक वंदे भारत समेत अन्य ट्रेनें चलाने की योजना है।
नई दिल्ली-श्रीनगर वंदे भारत एक्सप्रेस के इस साल अगस्त या सितंबर से शुरू करने की तैयारी है। हालांकि, एक ही ट्रेन नई दिल्ली से सीधे श्रीनगर नहीं जाएगी। यात्रियों को नई दिल्ली से कटरा पहुंचने पर ट्रेन बदलनी पड़ेगी।
यहां उनकी सुरक्षा जांच होगी। इस प्रक्रिया में 2-3 घंटे लग सकते हैं। इसके बाद यात्रियों को प्लेटफार्म नंबर एक पर वापस आना होगा। यहां से दूसरी ट्रेन श्रीनगर के लिए रवाना होगी। श्रीनगर से नई दिल्ली जाने वाले यात्रियों को भी इसी प्रक्रिया से गुजरना होगा।

चिनाब ब्रिज प्रोजेक्ट को पूरा होने में लगे 22 साल कश्मीर घाटी को देश के बाकी हिस्से से पूरे साल रेलवे के जरिए जोड़े रखने के लिए 1997 में उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) प्रोजेक्ट शुरू हुआ था। इसे पूरा होने में 28 साल से ज्यादा लग गए।
चिनाब ब्रिज 43 हजार 780 करोड़ रुपए की लागत से बने इसी USBRL प्रोजेक्ट का हिस्सा है। उधमपुर से बारामूला 272 किमी लंबी इस रेललाइन में 36 सुरंगें हैं। कुल लंबाई 119 किमी है।
इसमें 12.77 किमी लंबी T-49 टनल देश की सबसे लंबी ट्रांसपोर्ट टनल है। इस ट्रैक पर 943 पुल हैं, जिनकी कुल लंबाई 13 किमी है।
रियासी जिले में बक्कल और कौड़ी के बीच ब्रिज बनाने के लिए 2003 में मंजूरी मिली थी। शुरुआती प्लान के मुताबिक इसे 2009 तक तैयार हो जाना था, लेकिन इसे पूरा होने में 22 साल लग गए।
कंस्ट्रक्शन और सेफ्टी से जुड़ी चुनौतियों की वजह से प्रोजेक्ट और डिजाइन का रिव्यू करके अप्रूवल लेने में ही 2009 बीत गया। फिर 2010 में इस पर काम शुरू हो सका।
अगस्त, 2022 में ब्रिज का काम पूरा हुआ और फरवरी, 2023 में ट्रैक बिछाने का काम शुरू हुआ। 20 जून, 2024 को संगलदान से रियासी स्टेशन के बीच पहली बार ट्रेन का ट्रायल रन किया गया।

भारत का पहला रेलवे केबल पुल भी USBRL प्रोजेक्ट का हिस्सा भारतीय रेलवे ने इस प्रोजेक्ट के जरिए एक और उपलब्धि हासिल की है। अंजी खड्ड पर बना पुल भारत का पहला केबल स्टे रेल ब्रिज है। यह पुल नदी तल से 331 मीटर की ऊंचाई पर बना है। 1086 फीट ऊंचा एक टावर इसे सहारा देने के लिए बनाया गया है, जो करीब 77 मंजिला बिल्डिंग जितना ऊंचा है।
यह ब्रिज अंजी नदी पर बना है जो रियासी जिले को कटरा से जोड़ता है। चिनाब ब्रिज से इसकी दूरी महज 7 किमी है। इस पुल की लंबाई 725.5 मीटर है। इसमें से 472.25 मीटर का हिस्सा केबल्स पर टिका हुआ है।

पहाड़ी ढलानों को स्टेबल रखने के लिए अंजी पुल में अलग-अलग लंबाई (82 से 295 मीटर) की 96 केबल्स का इस्तेमाल किया गया है।
टूरिज्म और एक्सपोर्ट को फायदा, सेना तक तेजी से हथियार पहुंचेंगे ट्रेन शुरू होने से अब देश के अलग-अलग हिस्सों से टूरिस्ट आसानी और कम खर्च में कश्मीर जा सकेंगे। साथ ही अभी कश्मीर से सेब और चेरी जैसे फल दिल्ली भेजने में दो-तीन दिन लगते हैं।
बर्फबारी या पहाड़ धंसने जैसी स्थिति में रास्ते बंद होने पर समय और बढ़ जाता है। अब यह समस्या हल हो जाएगी। चेरी जैसे फल जो जल्दी खराब हो जाते हैं, उन्हें देशभर में अच्छा दाम मिल सकेगा।
यह पूरा प्रोजेक्ट सेना के लिए भी बहुत अहम है। डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एक्सपर्ट रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी बताते हैं, ‘हमारी सामरिक और सैन्य क्षमताओं में जबरदस्त इजाफा होगा। आर्म्स, एम्यूनिशन, राशन बॉर्डर तक आसानी से पहुंच सकेंगे। रेल कनेक्टिवटी से कश्मीर में सेना का मूवमेंट भी तेजी से हो सकेगा।’


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1892 में अंग्रेजों ने जम्मू से कश्मीर तक रेल लाइन बिछाने की कोशिश की। चीन से व्यापार को बेहतर करने के लिए इस पूरे इलाके में रेल लाइन बिछाई जा रही थी, लेकिन कुछ खास हासिल नहीं हुआ। 20वीं सदी की शुरुआत में कश्मीर के राजा प्रताप सिंह ने जम्मू और श्रीनगर के बीच एक रेल लिंक की नींव रखी, लेकिन राजा की मौत के बाद 1925 में इसका काम बंद कर दिया गया। पूरी खबर पढ़ें…