17 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी
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शुत्रुघ्न सिन्हा के बेटे कुश सिन्हा सुपरनैचुरल थ्रिलर मिस्ट्री फिल्म ‘निकिता रॉय’ से अपना डायरेक्टोरियल डेब्यू कर रहे हैं। कुश की इस फिल्म में दिग्गज एक्टर परेश रावल के अलावा अर्जुन रामपाल, बहन सोनाक्षी सिन्हा और एक नए स्टार सुहैल नायर नजर आएंगे। फिल्म 18 जुलाई को थिएटर में रिलीज हो रही है। फिल्म के ट्रेलर को काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। दैनिक भास्कर से बातचीत में कुश ने अपनी जर्नी और चुनौतियों पर बात की है।
‘निकिता रॉय’ का ट्रेलर देखने के बाद लग नहीं रहा कि ये आपकी डायरेक्टोरियल फिल्म है।
मैं अभी शांत हूं। अभी आगे बहुत कुछ करना है। हां, मुझे खुशी जरूरी महसूस हो रही है कि हमने लोगों के सामने कुछ अच्छा और नया लाने की कोशिश की है। जब फिल्म के सारे स्टार्स ने हां बोल था, तब लगा था कि मेरे ऊपर एक जिम्मेदारी आ गई है। जब इतने दिग्गज स्टार्स मेरी पहली फिल्म के लिए हां बोल रहे हैं तो मुझे भी लोगों को लिए कुछ अच्छा लाने की जिम्मेदारी है। लोगों को लगता होगा कि सोनाक्षी तो घर की बात है लेकिन ऐसा नहीं था। उसने कई बार पहले ना बोला था। परेश रावल सर, अर्जुन रामपाल ने उससे पहले हां बोल दिया था। ट्रेलर आने के बाद लोगों ने जिस तरह से फीडबैक दिया है, उससे मैं फिलहाल खुश हूं लेकिन पता है कि फिल्म रिलीज तक बहुत कुछ करना है।

इंडिया में सुपरनैचुरल थ्रिलर फिल्में कम बनती हैं। आपके दिमाग में ये कॉन्सेप्ट कहां से आया?
इस कहानी को पवन कृपलानी जी ने लिखी थी। जब मेरे पास ये कहानी आई तो इंडस्ट्री के एक सीनियर इंसान ने मुझसे कहा कि आप रहने दीजिए। ये हम किसी और के साथ बनाना चाहते हैं। वो जिसके साथ भी बनाना चाहते थे, वहां ये बनी नहीं। फिर घूम-फिरकर मेरे पास आ गई। मैं मानता हूं कि ये मेरी किस्मत में था कि ‘निकिता रॉय’ मुझे बनानी थी। इसके बाद मैंने सोनाक्षी से बात की। उसे स्क्रिप्ट के बारे में पहले से पता था। मैंने उससे कहा कि एक बार फिर से पढ़ लो, तुम्हारे जो भी सवाल होंगे, मैं उस पर बात करूंगा। फिर मैंने और मेरे को राइटर नील मोहंती, अंकुर टकरानी स्क्रिप्ट पर बहुत काम किया। हम तीनों ने मिलकर कहानी को बहुत बदल है। कई चीजें थीं, जो लोगों को आहत कर सकती थीं। मैं आर्ट के फील्ड में अपना करियर शुरू कर रहा हूं और मैं किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था।
मुझे लोगों को कुछ दिलचस्प देना है ताकि वो देखे और उन्हें मजा आया। सोनाक्षी ने जब हां कहा, तब लगा कि हम सही रास्ते पर जा रहे हैं। लेकिन जब परेश जी ने दो मीटिंग के बाद ही हां बोल दिया, तब लगा कि इस कहानी में दम है। परेश जी बहुत अच्छे इंसान हैं और शूटिंग के दौरान उन्हें मेरी बहुत मदद की। वहीं, अर्जुन रामपाल के साथ आखिरी तक बात चलती रही। हमने लंदन में शूटिंग शुरू कर दी, तब जाकर वो फिल्म का हिस्सा बने हैं। फिल्म में नए एक्टर सुहैलल हैं, उनका काम भी काफी अच्छा है।
आप मेहनती और क्रिएटिव होने के साथ बहुत ईमानदार भी हैं। आपको नहीं लगता कि फिल्म इंडस्ट्री जैसी है, उसमें इतनी सच्चाई ठीक नहीं है?
देखिए मैं इंडस्ट्री पर कमेंट नहीं करना चाहूंगा। इंडस्ट्री में हर किस्म के लोग होते हैं। कोई लोग अच्छे होते हैं, कोई लोग कम अच्छे होते हैं। कुछ लोग बुरे होते हैं। कुछ लोगों से तुरंत दोस्ती हो जाती और कुछ लोगों के साथ आप कभी दोस्त नहीं बन सकते हैं। ईमानदारी एक अच्छी बात है। इससे पता होता है कि हम क्या करना चाहते हैं।
मेरा मानना है कि ईमानदारी से काम करने पर रिजल्ट अच्छा ही आएगा। आप अपने काम के साथ नाइंसाफी और कामचोरी नहीं करेंगे। आप सिर्फ अपने काम पर ध्यान देंगे। दूसरा मैं ये कहना चाहूंगा कि जब मेरे पिता जी मुंबई आए थे, तब वो किसी को नहीं जानते थे। उनका भी कोई दोस्त नहीं था। उन्होंने अपनी ईमानदारी की वजह से सफलता हासिल की। मेरा इस बात में विश्वास है कि अगर आप ईमानदारी से काम करते हैं तो आपके लिए रास्ते बनते जाते हैं।
डायरेक्टोरियल डेब्यू के लिए अपने लीक से हटकर फिल्म क्यों चुनी?
मैंने अलग कहानी इसलिए चुनी क्योंकि इसमें मजा है। अगर सब लोग जो कर रहे हैं, मैं भी वही करूं तो ऑडियंस को कुछ अलग नहीं मिलेगा। मुझे ये भी लगता है कि लोग इस बात से भी परेशान हैं कि इंडस्ट्री में कुछ नया क्यों नहीं बन रहा है। हम लगातार दूसरों के आइडिया या रीमिक्स पर क्यों काम कर रहे हैं। लोग अब इस बात को एक्सेप्ट करने को तैयार नहीं हैं। मुझे इसलिए भी ऑडियंस के लिए नया कुछ लेकर आना था। आप जब फिल्म देखेंगे तो आपको एहसास होगा कि हमने हिंदी सिनेमा के ग्रामर को पीछे नहीं छोड़ा है। हमने गाने सही जगह पर डाले हैं। इमोशन, डर सब जगह पर है। मेरे सारे एक्टर्स ने इतना अच्छा काम किया है कि आपको भटकाव महसूस नहीं होगी।

कहानी में वो कौन सी बात थी, जिसने आपको मजबूर कर दिया इस पर काम करने के लिए?
इस कहानी की खासियत ये है कि आप फिगर आउट नहीं कर पाते हैं। आपको अंत तक पता नहीं चलेगा कि क्या सच है और क्या झूठ। फिल्म में एक डायलॉग भी है कि सच ही दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। हमने इस सोच को अच्छे तरीके से पेश किया है। इस फिल्म में आप अंत तक सिर्फ गेस ही करते रह जाएंगे। हमने इस फिल्म को सिनेमा के लिए बनाया है। लोग थिएटर जाए और मिस्ट्री की मजा लें।
शूट के दौरान सेट का माहौल कैसा था?
सेट पर बहुत मजा आ रहा था क्योंकि सारे ही काबिल कलाकार हैं। जब भी मैं उनसे कहता है कि क्या हम इस सीन को किसी और तरीके से कर सकते हैं और वो मुझे मिल जाता। उस टाइम शायद सबके सितारे अच्छे चल रहे थे क्योंकि पूरा प्रोसेस ही बहुत स्मूथ रहा। परेश सर ने मेरी बहुत मदद की है। डायरेक्टर के तौर पर मुझे जो इमोशनल सपोर्ट चाहिए था, वो उन्होंने मुझे दिया। सोनाक्षी मेरी बहन है लेकिन बतौर एक्टर मैं उसकी बहुत इज्जत करता हूं। उसने बहुत काम किया हुआ है। वो अपना काम बहुत अच्छे से जानती है।
अर्जुन रामपाल भी बहुत सपोर्टिंव हैं। उनके सेट पर आने के पहले कुछ लोगों ने मुझे डराने की कोशिश की थी कि उनके साथ काम करना मुश्किल होगा। लेकिन मुझे ऐसा कुछ नहीं दिखा। मैं उन्हें ‘पलटन’ फिल्म के सेट पर मिल चुका था। उस समय ही मैं उन्हें जान गया था कि वो इंसान अच्छे हैं। लोग उनके बारे में गलत राय बना लेते हैं।
सेट से जुड़ी कोई ऐसी याद, जो दिल करीब है और आप शेयर करना चाहेंगे?
मुझे ये फिल्म डायरेक्ट करके बहुत मजा आया। हम जो कागज पर लिखते हैं, शूट के दौरान वैसा 60 फीसदी भी कर लेना बहुत बड़ी बात होती है। हम लोग लकी थे कि हमने जो कागज पर लिखा था, उससे बहुत ज्यादा काम हुआ। मैं कोई एक पल नहीं बता पाऊंगा। मेरे पास बहुत सारी यादें हैं। मुझे ओवर ऑल इस फिल्म को बनाकर अच्छा लगा।
आपने संजय लीला भंसाली को असिस्ट किया है। उनसे क्या सीखा?
वो एक शब्द अक्सर कहते थे, बारीकियां। मैंने उनसे ये चीज सीखी। उनका जो सेट होता है या उन्हें सेट डिजाइन के लिए जितना समय मिलता है, वो इसलिए क्योंकि वो संजय लीला भंसाली हैं। मैं नया डायरेक्टर हूं, मुझे वो समय नहीं मिलेगा। मैं री शूट करना चाहूं तो मुझे 20 दिन का समय अभी के समय में नहीं मिलेगा। मैंने उनसे सीखा कि डायरेक्शन के समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए। संजय सर बहुत सारी अलग चीजों पर ध्यान देते हैं।
मेरी सोच थोड़ी अलग, मैं उन बातों पर उतना ध्यान नहीं दूंगा। मैं कलाकारों और उनके इमोशनल पर ध्यान देता हूं। मैं देखता हूं कि जब वो सीन कर रहे हैं तो क्या उनके अंदर वो सच्चाई दिख रही है। आजकल वीएफएक्स, सेट डिजाइन,कॉस्मेटिक जैसी चीजों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और कलाकार पर कम। लेकिन मेरा मानना है कि कलाकार मजबूत होना चाहिए। अगर अच्छा कलाकार होगा तो उसे एक दीवार के सामने भी खड़ा कर देंगे और कहेंगे कि अपनी कहानी से लोगों को रुलाओ तो वो कर दिखाएगा।
आपके पेरेंट्स का इस फिल्म को लेकर क्या रिएक्शन रहा है?
मेरे लिए खुशी की बात थी कि उन्होंने इस फिल्म को देखा और उन्हें अच्छी लगी। मेरे पेरेंट्स मुझसे झूठ बोलेंगे नहीं। वो सच सीधा मुंह पर बोलते हैं। मेरे पिताजी के पास 250 फिल्मों का एक्सपीरियंस हैं। वो मुझसे झूठ नहीं बोलेंगे। उन्हें मुझसे झूठ बोलकर क्या मिलेगा। उनका ही बेटे हूं, अगर वो मुझे झूठ बोलकर धोखे में रखेंगे तो इससे मेरा ही घाटा होगा। उन्होंने फिल्म देखकर कहा कि पहली फिल्म अच्छी बनाई है।

जब आप डायरेक्शन में आ रहे थे, तब पापा की तरफ से कोई टिप्स मिला था?
हां, उन्होंने मुझसे कहा था कि सब्र रखना। समय का सम्मान करना। समय अच्छा-बुरा जैसा भी जाए, उस वक्त उसमें मत बह जाना। अपने आपको मजबूत रखना। फिल्म में एक्टर्स और बाकी लोग एक टाइम के लिए आते हैं और चले जाते हैं। सारा भार डायरेक्टर के ऊपर आता है। वो लंबे समय के लिए इससे जुड़ा होता है। ऐसे में पॉजिटिव अप्रोच से अपने आपको फिल्म से कैसे जोड़ रखना बहुत जरूरी होता है।
आप स्टोरी राइटिंग भी करते हैं। इसकी प्रेरणा कहां से मिली?
ये मेरे अंदर पहले से ही था। मैंने जब फिल्म मेकिंग के बारे में पढ़ना शुरू किया था, तब मुझे समझ आ गया था कि जो भी बेहतरीन फिल्म मेकर होते हैं, उन्हें राइटिंग और स्टोरी की समझ होनी बहुत जरूर है। मैंने जब जेवियर्स में स्क्रिप्ट राइटिंग का कोर्स किया था। इस फिल्म के दौरान मैंने नील मोहंती और अंकुर टकरानी के साथ भी सीखा। फिल्म मेकर के लिए राइटिंग जरूरी है। अगर आप सीन को समझोगे नहीं, फिर आप किसी और को कैसे समझाओगे। कुछ लोगों के लिए राइटिंग अकेले का काम है लेकिन मेरा मानना है कि ये एक कौलेबेरिटेव काम है।
आपने पहली बार कब सोचा था कि डायरेक्शन में जाना है?
मैं जब संजय लीला भंसाली सर को असिस्ट करने गया था। मैं स्कूल कई चीजों में एक्टिव था लेकिन मुझे डायरेक्शन के लिए अवॉर्ड मिला था। तब से मैं जानता था कि ये चीज मुझे समझ आती है। मैं ये कर सकता हूं इसलिए संजय सर के पास गया और वहां असिस्टेंट डायरेक्टर बना। उसके बाद अभिनव कश्यप से जुड़ा। फिर मैंने एड एजेंसी के लिए भी काम किया। उसके बाद कोविड के दौर आया तो थोड़ा काम रुका। वो दौर खत्म होने के बाद ‘निकिता रॉय’ की जर्नी शुरू हुई।
शुत्रुघ्न सर की किसी फिल्म का रीमेक बनाना हुआ तो वो कौन सी फिल्म होगी?
देखिए मुझे पापा की फिल्म ‘मेरे अपने’, ‘काला पत्थर’ की कहानी बहुत अच्छी लगती है। लेकिन रीमेक बनाना मुश्किल है। मुझे नहीं लगता कि उस लेवल के कलाकार मुझे मिलेंगे। ऐसी फिल्मों के लिए किस्मत का भी हाथ होता कि सारे कलाकार अच्छे मिल गए। सबने जबरदस्त एक्टिंग की। कहने के लिए अच्छा लग सकता है कि हां मैं रीमेक बना दूंगा लेकिन ये मुमकिन नहीं है। मैं उनकी फिल्मों के नहीं छू पाऊंगा। ख्वाहिश रहेगी कि पापा के साथ काम कर पाऊं लेकिन रीमेक नहीं बना सकता।

क्या आप अपने पापा को डायरेक्ट करना चाहेंगे?
बिल्कुल करना चाहूंगा। वो कमाल के इंसान और कलाकार हैं। ऐसे लोग कम मिलते हैं। आज भी वो लोगों से आसानी से जुड़ जाते हैं। मैंने और सोनाक्षी ने पापा के साथ ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ के लिए एक एड किया था। सोनाक्षी ने रोल निभाया था और पापा ने अपनी आवाज दी थी। वो छोटा सा काम करके ही बहुत खुशी मिली थी। मैं उन्हें जरूर डायरेक्ट करना चाहूंगा लेकिन उनके लिए सही कहानी ढूंढनी पड़ेगी।
सुपरनैचुरल थ्रिलर मिस्ट्री के बाद किस तरह की फिल्में करना चाहेंगे?
मैं एक्शन फिल्म करना चाहूंगा। एक हॉरर कॉमेडी फिल्म को डेवलप कर रहा हूं। मैंने फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा एक शो डेवलप किया है। यही पले-बढ़े हैं तो अपने ऑब्जर्वेशन लोगों को दिखाना चाहूंगा। एक और सुपर नैचुरल मिस्ट्री मेरे पास आ चुकी हूं, जिसे लिख और डायरेक्ट दोनों कर रहा हूं। जब चीजें और क्लियर हो जाएंगी, फिर मैं आपको बताऊंगा।
इंडस्ट्री के किन कलाकारों के साथ काम करने की इच्छा है?
मुझे रणबीर कपूर अच्छे लगते हैं। मैं माधुरी दीक्षित के साथ काम करना चाहूंगा। आमतौर पर मैं स्क्रिप्ट को पहले देखता हूं। फिर समझने की कोशिश करता हूं कि यहां कौन सा कलाकार फिट होगा। अगर कलाकार को देखकर स्क्रिप्ट लिखा जाता है तो कहानी के साथ जस्टिस नहीं हो पाता है। मैं एक्टर्स को दिमाग में नहीं रखता, मैं स्क्रिप्ट पर ध्यान देता हूं।