Lord Krishna’s teaching – start work after taking blessings from elders, Mahabharata Facts, Life management tips about success, how to get success | श्रीकृष्ण की सीख- बड़ों का आशीर्वाद लेकर काम शुरू करें: महाभारत युद्ध शुरू होने से ठीक पहले युधिष्ठिर कौरव सेना की ओर जाने लगे तो सभी पांडव डर गए थे


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1 घंटे पहले

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महाभारत युद्ध शुरू होने वाला था। कौरव और पांडवों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। युद्ध शुरू होने से ठीक पहले पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ने अपने अस्त्र-शस्त्र रथ पर रख दिए। युधिष्ठिर अपने रथ से नीचे उतरे और पैदल ही कौरव सेना की ओर चल दिए।

युधिष्ठिर को कौरव पक्ष की ओर जाते देखकर भीम और अर्जुन ने पूछा कि भैया आप कहां जा रहे हैं?

युधिष्ठिर ने भीम-अर्जुन की बात सुनी, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। सभी पांडव डर गए और सभी को ऐसा लगने लगा कि कहीं युधिष्ठिर कौरवों के सामने समर्पण न कर दें। भीम-अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि आप भैया को रोकिए, कहीं भैया युद्ध से पहले ही आत्म समर्पण न कर दें।

कौरव सेना के लोग भी आपस में बात करने लगे कि धिक्कार है युधिष्ठिर पर, अभी तो युद्ध शुरू भी नहीं हुआ और ये समर्पण करने आ रहे हैं। कोई समझ नहीं पा रहा था कि युधिष्ठिर आखिर क्या करने वाले हैं?

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मैं जानता हूं, भैया क्या करने जा रहे हैं, आप सभी कुछ देर धैर्य रखें, विचलित न हों।

युधिष्ठिर कौरव पक्ष में भीष्म पितामह के सामने पहुंच गए और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। दूर से देखने पर सभी को ऐसा लग रहा था कि युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। युद्ध से पहले ही पराजय स्वीकार कर ली है, लेकिन सच्चाई ये नहीं थी। दरअसल युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर भीष्म से कहा था कि पितामह आज्ञा दीजिए ताकि हम आपके विरुद्ध युद्ध कर सके।

भीष्म पितामह युधिष्ठिर की इस बात से बहुत प्रसन्न हुए। भीष्म ने प्रसन्न होकर कहा कि अगर तुमने आज्ञा नहीं मांगी होती तो मैं क्रोधित हो जाता, लेकिन तुम आज्ञा मांग रहे हो, इससे मैं बहुत खुश हूं। मैं तुम्हें विजयश्री का आशीर्वाद देता हूं।

दूसरी ओर श्रीकृष्ण ने पांडवों को समझाया कि शास्त्रों में लिखा है- जब भी कोई बड़ा काम करो तो सबसे पहले घर के बड़ों का आशीर्वाद और अनुमति लेनी चाहिए। तभी विजय मिलती है। युधिष्ठिर यही काम करने गए हैं।

भीष्म के बाद युधिष्ठिर द्रोणाचार्य के पास पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके युद्ध करने की अनुमित मांगी। द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं बहुत प्रसन्न हूं और मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हारी विजय हो।

प्रसंग की सीख

इस किस्से से हमें दो सीख मिलती है। पहली, ये कि हम जब भी कोई बड़ा काम शुरू करें तो सबसे पहले घर के बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए। दूसरी सीख ये है कि कभी भी जो दिखाई दे रहा है, उसे सच न मानें। जब तक पूरी बात नहीं मालूम होती है, तब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए।

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