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गौरव पाठक3 घंटे पहले
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अब भारत में चरम मौसमी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। मूसलाधार बारिश हो या अचानक आई बाढ़, घरों और व्यवसायों को लगातार प्रभावित कर रही है। इस तरह के मामलों मंे बीमा पॉलिसियों से वित्तीय सुरक्षा की अपेक्षा की जाती है, लेकिन उपभोक्ताओं को तब दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जब तकनीकी वजहों से उनके दावे अस्वीकृत हो जाते हैं। आज हम जानेंगे कि उपभोक्ता आयोगों ने बारिश और बाढ़ से संबंधित नुकसान के बीमा दावों को किस तरह देखा है और इससे पॉलिसीधारकों को क्या महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं।
तूफान के खिलाफ सुरक्षा: प्राकृतिक आपदाओं जैसे तूफान, चक्रवात और बाढ़ से हुए नुकसान सामान्यतः स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरील्स पॉलिसी के तहत कवर किए जाते हैं। हालांकि, कभी-कभी बीमा कंपनियां यह कहकर दावे खारिज कर देती हैं कि नुकसान पॉलिसी में शामिल नहीं था या फिर यह कि नुकसान की वजह ठीक से देखभाल न करना था या बीमा कंपनी को सूचना देरी से दी गई। लेकिन न्यायालयों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि अगर कोई आपदा (जैसे वर्षा या बाढ़) पॉलिसी में स्पष्ट रूप से शामिल है, तो दावे को महज तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
दो महत्वपूर्ण उदाहरण: अनिरुद्ध बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी (2020) मामले में हिमाचल प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग ने भारी बारिश के कारण एक कमरा ढहने के मामले में फैसला सुनाया। बीमा कंपनी ने दावा यह कहकर खारिज कर दिया था कि वर्षा से हुआ नुकसान पॉलिसी में कवर नहीं था और शिकायतकर्ता को संपत्ति का बीमा करवाने का अधिकार भी नहीं था। लेकिन आयोग ने यह माना कि वर्षा से हुआ नुकसान पॉलिसी के दायरे में आता है और यह भी कि संपत्ति का एक सह-स्वामी दूसरों की सहमति के बिना भी वैध बीमा करवा सकता है। बीमा कंपनी द्वारा दावा अस्वीकार करना अनुचित पाया गया और शिकायतकर्ता को मुआवजा प्रदान किया गया। इसी तरह एक अन्य मामले में बाढ़ का पानी एक फैक्ट्री में घुस गया और इससे स्टॉक को नुकसान पहुंचा। बीमा कंपनी ने यह कहकर दावा खारिज कर दिया कि एक तो दावा देर से दाखिल किया गया और नुकसान खराब भंडारण के कारण हुआ। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि बीमित पक्ष ने उचित सावधानी बरती थी और समय पर कदम उठाए थे। बीमा कंपनी को 54 लाख रुपए से अधिक की राशि ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया गया।
बीमा नवीनीकरण में देरी: यूनियन बैंक बनाम काशी विश्वनाथ फर्टिलाइजर्स (2024) मामले में बैंक ने उधारकर्ता के खाते से बीमा प्रीमियम की राशि तो काट ली थी, लेकिन उसे बीमा कंपनी को भेजने में देरी कर दी। जब भारी बारिश के कारण स्टॉक को नुकसान हुआ, तब तक पॉलिसी का नवीनीकरण नहीं हो पाया था। राष्ट्रीय आयोग ने बैंक को सेवा में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया और 13 लाख रुपए से अधिक की राशि ब्याज सहित चुकाने का आदेश दिया। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि जब कोई संस्था ग्राहक की ओर से बीमा का प्रबंधन करती है तो उसे पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।
कब खारिज हो सकता है दावा? – बीमा पॉलिसियों में सामान्यतः यह शर्त होती है कि नुकसान की सूचना समय पर दी जाए। एक मामले में शिकायतकर्ता ने अपने ईंट-भट्टे को बाढ़ से हुए नुकसान की रिपोर्ट घटना के दो महीने बाद दी। आयोग ने इस देरी को गंभीर मानते हुए बीमा कंपनी द्वारा दावे की अस्वीकृति को सही ठहराया। अतः यह स्पष्ट है कि अगर बीमित व्यक्ति नुकसान की सूचना बीमा कंपनी को देर से देता है, तो उसका दावा जायज होने के बावजूद भी खारिज किया जा सकता है। – हर दावा बिना जांच के स्वीकार नहीं किया जाता। गिरीधर संपत मामले (2021) में चावल मिल को नुकसान छत से रिसे बारिश के पानी के कारण हुआ था। आयोग ने पाया कि यह उचित रखरखाव की कमी के कारण हुआ और इसलिए बीमा कंपनी द्वारा दावा अस्वीकार करना उचित था। इसी प्रकार विजार्ड बायोटेक मामले में बीमित परिवर्तित परिसर के लिए 30 दिन की प्रतीक्षा अवधि थी। चूंकि बाढ़ इस अवधि से पहले ही आ गई, आयोग ने दावा खारिज करने के निर्णय को सही माना।
(लेखक सीएएससी के सचिव भी हैं।)
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