Lost his wife to Covid, then got support from Geeta | जयपुर में 71 साल के बुजुर्ग ने CA क्लियर किया: पत्नी की मौत के बाद पढ़ना शुरू किया, कोचिंग नहीं की; यूट्यूब-सोशल मीडिया से तैयारी – Rajasthan News


जयपुर के 71 साल के ताराचंद अग्रवाल चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) बने हैं। ताराचंद 2014 में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर (अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया) में असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद से रिटायर्ड हुए थे। नवंबर 2020 में कोविड के दौरान पत्नी दर्शना अग्रवाल का न

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पीएचडी करने की सोची तो बच्चों ने सुझाव दिया कि देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक CA की तैयारी की जाए। पोती ने कहा- जब आप मुझे गाइड कर सकते हैं तो खुद क्यों नहीं कर सकते? इसी विश्वास के साथ ताराचंद ने सीए की राह पकड़ी।

2021 में लिया फैसला, 2025 में बन गए CA ताराचंद ने जुलाई 2021 में CA के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। मई 2022 में फाउंडेशन क्लियर किया। जनवरी 2023 में इंटरमीडिएट पास किया। मई 2024 में उन्होंने फाइनल का अटेम्प्ट दिया। सफल नहीं हुए। इसके बाद मई 2025 में दोबारा फाइनल परीक्षा दी। इस बार सफलता हासिल कर ली।

ताराचंद ने बताया- मैंने कभी पढ़ना छोड़ा नहीं। बैंक में रहते हुए भी कई ट्रेनिंग की। 1988 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स से C.A.I.I.B. क्लियर किया था।

बैंक से रिटायर होने के बाद ताराचंद अग्रवाल ने बच्चों के कहने पर फिर से पढ़ना शुरू किया था।

बैंक से रिटायर होने के बाद ताराचंद अग्रवाल ने बच्चों के कहने पर फिर से पढ़ना शुरू किया था।

गीता ने संभाला, पोतियों ने बढ़ाया ताराचंद बताते हैं- 2020 में पत्नी के जाने के बाद बहुत खालीपन था। बच्चे और पोते-पोतियां मेरे साथ रहते थे, पर मन नहीं लगता था। तब बच्चों की सलाह पर गीता पढ़ना शुरू किया। उसमें इतना डूब गया कि पढ़ने की आदत वापस आ गई। एक दिन बच्चों से कहा- मैं भी कुछ कर लेता हूं। बीकॉम किया है। पीएचडी कर लूं। बच्चों ने कहा- CA करो। यह कठिन जरूर है, लेकिन पहचान दिलाएगा। फिर पोती ने कहा- आप कर सकते हैं। बच्चों ने लैपटॉप लाकर रजिस्ट्रेशन करवा दिया।

उन्होंने बताया- मेरे ताऊजी गीता पढ़ाते थे। उन्होंने कहा था, काम जो करो पक्का करो। तब से यही आदत है, जो करता हूं उसमें 100 प्रतिशत देता हूं। मैंने इंटर में तो इसे सीरियसली नहीं लिया। काउंटर पर बैठकर ही पढ़ाई किया करता था। इसी बीच कस्टमर आता था तो किताबें बंद कर कस्टमर अटेंड करने लग जाता। इस कारण फाइनल में मैं फेल हो गया।

तब सोचा कि अब आइसोलेशन में पढ़ाई करनी पड़ेगी। मेरे लेफ्ट और राइट शोल्डर में परेशानी थी। इस कारण लिखने में दिक्कतें आ रही थी। जनवरी में मेरा रिजल्ट आया। उसके बाद मैंने 10 घंटे पढ़ना शुरू किया। डेली 2 से 4 घंटे लिखने की प्रैक्टिस की। मॉड्यूल पेपर को लगातार सॉल्व करता रहता था। इससे मेरे लिखने की प्रैक्टिस अच्छी हो गई।

ताराचंद ने बेटे के स्टोर पर बैठकर पढ़ाई की।

ताराचंद ने बेटे के स्टोर पर बैठकर पढ़ाई की।

कोचिंग नहीं, शोरूम के काउंटर पर पढ़कर निकाला एग्जाम ताराचंद ने बताया- CA की कोई कोचिंग नहीं ली। सिर्फ जरूरत पड़ने पर यूट्यूब से कुछ वीडियो देखे और किताबों के सहारे खुद तैयारी की। मैंने हर विषय को समझकर पढ़ा। जो सब्जेक्ट रटने वाले थे, उन्हें समझने की कोशिश की। मैं घर में अकेला रहता था, मन नहीं लगता था तो छोटे बेटे के जनरल स्टोर पर आना शुरू किया। वहीं, काउंटर पर बैठकर पढ़ाई करता था। इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी शोरूम पर ही की। एग्जाम क्लियर किया।

उनका मानना है कि आज की पढ़ाई में गहराई नहीं है, बस एग्जाम पास करने तक सीमित कर दी गई है। पहले के समय में पूरा विषय समझने पर जोर होता था।

जब एग्जाम देने गया तो बच्चों ने सोचा मैं पेपर लेने आया हूं। मेरी घुल-मिल जाने की आदत है, इसलिए वो जल्दी दोस्त बन जाते थे। कहते थे-अंकल आप हमारे साथ एग्जाम दे रहे हो, बहुत अच्छा लग रहा है।

अपने परिवार के साथ ताराचंद अग्रवाल।

अपने परिवार के साथ ताराचंद अग्रवाल।

परिवार बना सबसे बड़ा सहारा ताराचंद ने बताया- परिवार शुरुआत से मेरे साथ खड़ा रहा। बड़े बेटे ललित अग्रवाल सीए हैं। दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं। छोटे बेटे अमित अग्रवाल टैक्स प्रैक्टिस में हैं। दोनों बहुएं भी प्रेरणा का स्रोत बनीं।

22 की उम्र में बैंक जॉइन किया, AGM बनकर रिटायर हुए ताराचंद ने बताया- हम मूल रूप से संगरिया (हनुमानगढ़) के रहने वाले हैं। 8 भाई-बहनों में चौथे नंबर पर हैं। मेरे पिता खेती और व्यापार करते थे। स्कूलिंग संगरिया से हुई और 1974 में दर्शना अग्रवाल से शादी हो गई। 1976 में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर में क्लर्क के पद पर भर्ती हुए। पहली पोस्टिंग अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर) में हुई। 1986 तक वहां रहे। 1999 में जयपुर में सी-स्कीम ब्रांच हेड बने। बीच में बीकानेर ट्रांसफर हुआ, फिर 2006 में वापस जयपुर आए। 2002 में महारानी फार्म में घर बनाकर स्थायी रूप से वहीं रहने लगे। 2014 में असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए।

अब लोग कहते हैं – सीए अंकल आ गए ताराचंद ने बताया- अब लोग ‘शोरूम वाले अंकल’ नहीं, ‘सीए अंकल’ कहते हैं। लोग अपने बच्चों को गाइडेंस के लिए भेजते हैं। जो खुद संघर्ष करता है, वही दूसरों को सही दिशा दिखा सकता है। आजकल के बच्चों को बस यही कहता हूं कि डरने से कुछ नहीं होगा, मेहनत ही रास्ता है।



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