रीवा में 400 रुपए में कफ सिरप मिल रहा है। इसमें कोडीन फॉस्फेट पाया जाता है, जिससे नशा होता है।
मध्यप्रदेश में नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली प्रतिबंधित सिरप ठेलों पर बिक रही है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे रीवा में 400 रुपए में नशे का डोज मिल रहा है। दैनिक भास्कर ने रीवा में 20 दिन तक ड्रग कारोबार के नेटवर्क का हिस्सा बनकर 10 चेहरों को एक्सपोज
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रीवा में एसपी ऑफिस से 500 मीटर दूर किस तरह नशा बिक रहा है, इस दृश्य से जानिए कि एक गली में दो महिलाएं ठेला लगाकर बैठी हैं। दो युवक इनमें से एक महिला के पास पहुंचे। 500 रुपए का नोट दिया और बोले- आंटी एक ‘माहौल’ दे दो। महिला ने 100 रुपए वापस किए और झोले में से एक शीशी निकालकर दे दी। महिला ने शीशी के रूप में जो ‘माहौल’ दिया, वह कफ सिरप था।
इस कफ सिरप में कोडीन फॉस्फेट नाम का ड्रग पाया जाता है, जिससे नशा होता है। इस ड्रग से बना सिरप मेडिकल स्टोर से केवल डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर ही लिया जा सकता है। इस ड्रग को अवैध रूप से बेचने पर एनडीपीएस एक्ट में केस दर्ज कर जेल भेजा जा सकता है।
मध्यप्रदेश पुलिस 15 से 31 जुलाई तक नशे के खिलाफ प्रदेशभर में अभियान चला रही थी, उसी दौरान भास्कर रिपोर्टर ने रीवा के गली-मोहल्लों में घूमकर 20 स्पॉट आइडेंटिफाई किए, जहां नशे का कारोबार किया जा रहा है। रिपोर्टर ने इनसे कफ सिरप की शीशी और टैबलेट भी खरीदी।
रीवा में पड़ताल इसलिए की गई क्योंकि उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश में ड्रग की एंट्री का पॉइंट यहीं है।

4 पॉइंट्स में जानिए, कैसे चल रहा है नशे का कारोबार
- कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप के अलग-अलग ब्रांड नेम हैं। ये ‘माहौल’ कोडवर्ड से बिकता है। नशे की टैबलेट ‘नीला पत्ता’ या ‘नीली गोली’ के नाम से बिकती है।
- कफ सिरप या टैबलेट बेचने वालों में महिलाएं और बच्चे ज्यादा हैं। नुक्कड़ पर ठेला लगाकर बेचते हैं। तीन हॉट स्पॉट हैं- कबाड़ी मोहल्ला, धोबिया टंकी और वेंकट रोड।
- कफ सिरप के रेट रोजाना शेयर मार्केट की तरह ऊपर-नीचे होते हैं। इस धंधे में शामिल तस्करों के मुताबिक मार्केट में सिरप के स्टॉक के मुताबिक इसके रेट तय होते हैं।
- शहरी इलाके में इसकी सप्लाई सुबह 5 बजे से 8 बजे के बीच टू-व्हीलर से होती है। इस समय पर पुलिस की गश्त का टाइम बदलता है।

अब सिलसिलेवार जानिए, कैसे बिक रहा बैन कफ सिरप

महिला ने ठेले पर लगाई नशे की दुकान, 400 रुपए में शीशी दे दी रीवा के कबाड़ी मोहल्ला में मेन रोड पर जावेद चिकन शॉप है, इसी के बगल से एक गली अंदर जाती है। इस गली में आगे बढ़ते हुए एक नुक्कड़ पर एक महिला दो ठेले लगाकर बैठी है। ठेले पर सब्जी रखी है, मगर असल काम कफ सिरप की शीशी बेचना है। भास्कर रिपोर्टर एक नशेड़ी युवक के साथ यहां पहुंचा। युवक ने 500 का नोट महिला के हाथ में थमाया और बोला- आंटी एक ‘माहौल’ दे दो।
महिला ने 100 रुपए वापस करते हुए अपने झोले से कफ सिरप की शीशी नशेड़ी के हाथ में थमा दी। जब बाहर आए तो नशेड़ी युवक बोला- ये महिला बेखौफ होकर दिनभर कफ सिरप की शीशी बेचती है। इसके अलावा वह नीली गोली का पैकेट (स्पास्मो-प्रॉक्सीवॉन प्लस) भी बेचती है।

कबाड़ी मोहल्ले में महिला ठेला लगाकर सब्जी बेचने की आड़ में नशे की गोलियां बेचती है।
पेट दर्द की दवा भी बिक रही इसकी तफ्तीश करने भास्कर रिपोर्टर एक बार फिर महिला के पास पहुंचा और 20 रुपए निकालकर बोला- आंटी नीली गोली चाहिए। महिला ने झोले से स्पास्मो प्रॉक्सीवॉन प्लस टैबलेट का पत्ता निकाला। उसमें से एक गोली काटकर रिपोर्टर को दे दी।
स्पास्मो प्रॉक्सीवॉन टैबलेट का इस्तेमाल पेट दर्द के लिए होता है। इसमें ट्रामाडॉल, डाइसाइक्लोमिन और एसिटामिनोफेन होता है। ये भी बिना डॉक्टर के पर्चे के नहीं बेच सकते। ज्यादा सेवन करने पर इससे नशा होता है।

दो मंजिला मकान, पूरा परिवार करता है नशे का कारोबार कबाड़ी मोहल्ला में टू व्हीलर सर्विस सेंटर है। उसी के पास से एक गली अंदर की तरफ जाती है। यहां दो मंजिला मकान बना है। भास्कर रिपोर्टर जब अपने सोर्स के साथ पहुंचा तो दो-तीन महिलाएं मकान के बाहर खड़ी थीं। उस समय शाम के करीब साढ़े चार बज रहे थे। रिपोर्टर ने युवक को कफ सिरप की शीशी लेने भेजा।
वह महिला के पास गया और माहौल कोडवर्ड का इस्तेमाल किया। महिला ने तुरंत ही पास रखे थैले से कफ सिरप की शीशी निकालकर दे दी। वहां से निकलने से पहले ही बाइक पर सवार कुछ युवा पहुंचे। उन्होंने एक साथ कई शीशी खरीदीं। युवाओं का पहनावा और उनकी बाइक देखकर लगा कि ये सभी अच्छे घरों से ताल्लुक रखते हैं।

कबाड़ी मोहल्ले में महिलाओं का पूरा गैंग कफ सिरप बेचने का काम करता है।
परिवार शिफ्ट में काम करता है इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि घर की महिला और पुरुष सभी कफ सिरप बेचने का ही कारोबार करते हैं। कुछ साल पहले तक इनका ये मकान बड़ा नहीं था लेकिन जब से पूरा परिवार इस धंधे में जुटा है, मकान दो मंजिला बना लिया है। इनके चेहरों पर पुलिस को डर नहीं दिखा। सोर्स रिपोर्टर को कबाड़ी मोहल्ले में ही अलग-अलग 20 स्पॉट पर ले गया, जहां कफ सिरप बेचा जा रहा था।

घर के अंदर ही खोल ली दुकान, झोले से निकालकर दे दिया सिरप रीवा के वेंकट रोड पर गुप्ता लॉज के पास शिवम् हार्डवेयर और कपड़े की दुकान के बीच में एक गली है। इसी गली में जिला सहकारी मुद्रणालय का पुराना ऑफिस भी है। गली के अंदर दो मंजिला घर बना है। घर का मेन दरवाजा गली की तरफ खुलता है। यहां टी-शर्ट और शॉर्ट पहने 25 साल का एक युवक बैठा है। उसके घर के भीतर काले रंग का एक झोला रखा है।
भास्कर रिपोर्टर यहां पहुंचा तो युवक ने इशारे से पूछा कि क्या चाहिए? भास्कर रिपोर्टर ने 500 का नोट निकालकर युवक को दिया। उसने तुरंत कफ सिरप की शीशी निकालकर रिपोर्टर और साथ में पहुंचे सोर्स के हाथ में दे दी।

घर-घर में कफ सिरप की दुकान खुली हुई है जबकि ये मेडिकल दुकानों पर बिकना चाहिए।
15 मिनट में 5 लड़कों ने कफ सिरप खरीदा भास्कर रिपोर्टर कुछ देर यहां रुका और युवक की गतिविधियों पर नजर रखी। युवक अपनी जगह से उठा भी नहीं। वह मोबाइल देखता रहा। कुछ देर बाद वहां दो लड़के आए। दोनों लड़कों ने पैसे दिए और युवक ने बिना कुछ कहे दोनों के हाथ में कफ सिरप की शीशी थमा दी। भास्कर रिपोर्टर ने 15 मिनट तक यहां रुककर देखा तो इतनी देर में 5 लड़कों ने कफ सिरप खरीदा।

बीएड कॉलेज के सामने घर से बिक रहा नशा, सीसीटीवी से नजर कबाड़ी मोहल्ले के बाद नशे के कारोबार का दूसरा बड़ा स्पॉट धोबिया टंकी है। भास्कर रिपोर्टर अपने सोर्स के साथ यहां चिकन शॉप वाली गली में पहुंचा। ये गली बीएड कॉलेज के ठीक सामने है। गली के एंट्री पॉइंट से 50 मीटर अंदर एक मकान में महिला कफ सिरप और नशे की गोलियां बेचने का काम करती है।
सूत्र ने बताया कि महिला इतनी शातिर है कि उसने अपने घर में सीसीटीवी कैमरा लगाया हुआ है। वह हर आने जाने वाले पर नजर रखती है। जरा सा भी शक होने पर नशे का माल तत्काल गायब कर देती है। पास ही में बीएड कॉलेज और स्कूल है। कॉलेज के लड़के और कुछ बच्चे भी यहां कफ सिरप लेने पहुंचते हैं।

महिला सीसीटीवी कैमरे के जरिए हर आने-जाने वाले पर नजर रखती है।
मुश्किल में फंसती हैं तो कपड़े फाड़ लेती हैं यहां पता चला कि महिला के साथ उसके परिवार के सदस्य भी मौजूद रहते हैं। इनका नेटवर्क इतना मजबूत है कि यदि इन्हें लगता है कि किसी ने कफ सिरप बेचते हुए इनका वीडियो बनाया है तो महिलाएं हंगामा मचा देती हैं। जिसने वीडियो बनाया, उसके सामने अपने कपड़े फाड़ लेती हैं और छेड़छाड़ का आरोप लगा देती हैं। मोहल्ले के बाकी लोग भी इकट्ठे हो जाते हैं इसलिए कोई इनकी शिकायत नहीं करता।

तीन महिलाएं- एक रुपए लेती है, दूसरी सिरप देती है और तीसरी नजर रखती है यातायात पुलिस थाने के पास वाली गली के पिछले हिस्से में कफ सिरप के अवैध कारोबार का एक और ठिकाना है। यहां पर तीन महिलाएं खुले मैदान में ठेला लगाकर बैठती हैं। तीनों के पास अलग-अलग काम है। एक महिला हाथ में नोटों की गड्डी लेकर बैठी रहती है। जो लोग कफ सिरप लेने आते हैं, वह उनसे पैसा इकट्ठा करती है।
दूसरी महिला पैसा देने वाले को कफ सिरप की शीशी देती है और तीसरी महिला वहां आने वाले हर आदमी पर नजर रखती है। यह तीनों महिलाएं 50 साल से अधिक उम्र की हैं और कम पढ़ी-लिखी हैं।
ऑनलाइन पेमेंट नहीं, कैश में डिलीवरी भास्कर रिपोर्टर ने इन्हीं महिलाओं से कफ सिरप की शीशी खरीदी। रिपोर्टर ने पहली महिला को पैसा दिया तो दूसरी महिला ने शीशी रिपोर्टर के हाथ में थमा दी। रिपोर्टर के सामने ही 10 से 15 लोगों ने इन महिलाओं से कफ सिरप खरीदा। एक युवक ने रिपोर्टर से कहा कि भैया मैं आपको ऑनलाइन पेमेंट कर देता हूं। आप मुझे कैश दे दीजिए। कफ सिरप का अवैध कारोबार कैश में ही होता है।

भास्कर रिपोर्टर महिला से कफ सिरप खरीदते हुए।
फल वाला बोला- दिनभर में 300 कमाता हूं, ये एक शीशी के 300 लेते हैं दैनिक भास्कर रिपोर्टर की मुलाकात कबाड़ी मोहल्ले में फल का ठेला लगाने वाले राजेंद्र लुनिया से हुई। रिपोर्टर ने आम खरीदने के बहाने बातचीत की। राजेंद्र से बात करने की वजह थी कि उसके ठेले के ठीक पीछे महिलाएं कफ सिरप बेच रही थीं। ग्राहक लगातार इन महिलाओं के पास आ रहे थे।
रिपोर्टर: यह पीछे क्या हो रहा है?
राजेंद्र: यह महिलाएं कफ सिरप बेच रही हैं। हम दिनभर मेहनत करते हैं तो मुश्किल से 300 रुपए कमाते हैं और यह दिनभर में 2 हजार कमाती हैं। इनका पूरा परिवार ही इस धंधे में शामिल है।
रिपोर्टर: इन्हें पुलिस का डर नहीं है?
राजेंद्र: इन्हें किस बात का डर, पुलिसवालों से तो इनकी बंदी है। रोज का हिसाब उनके पास जाता है।
रिपोर्टर: कितने साल से यह काम कर रहे हैं?
राजेंद्र: भैया, मुझे देखते हुए कई साल हो गए हैं। कफ सिरप वालों ने तो हमारे मोहल्ले को बदनाम कर रखा है। पुलिस भी इनके साथ मिली हुई है।
(इसके बाद कुछ लड़के फल वाले ठेले के पास चलकर आते हैं। राजेंद्र आगे बातचीत करना बंद कर देता है। रिपोर्टर भी आम लेकर वहां से निकल जाता है।)

फल बेचने वाले ने कहा- दिनभर में 300 रुपए मुश्किल से कमा पाता हूं। कफ सिरप बेचने वाले दो हजार तक कमा लेते हैं।
नशे से कैसे बर्बाद हुआ जीवन, पढ़िए दो केस
केस-1: कफ सिरप के लिए पैसे नहीं दिए तो घर में दो बार आग लगाई रीवा शहर के पास हरदी कपसा की रहने वाली महिला ने बताया कि वो सामान्य परिवार से आती है। उसके बेटे को कॉलेज में कफ सिरप पीने की आदत लग गई। उसने कहा- मैं कॉलेज के लिए फीस देती थी, लेकिन इससे वह नशा करता था। जब हमें पता चला तो हमने उसे पैसा देना बंद कर दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि बेटा मुझसे मारपीट करने लगा।
पैसों के लिए उसने दो बार घर में आग लगा दी। जैसे-तैसे उसे नशामुक्ति केंद्र भेजा। अभी वो इस नशे से बाहर आने की कोशिश कर रहा है।
केस-2: खांसी दूर करने के लिए दवा पी और लत लग गई रीवा के रहने वाले बिजनेसमैन सचिन गुप्ता (बदला हुआ नाम) बताते हैं- एक बार मेरे पिताजी को तेज खांसी हो गई थी। कई बार डॉक्टर को चेक कराया, लेकिन इलाज नहीं हुआ। खांसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी, रात को वो ढंग से सो नहीं पाते थे। किसी ने सलाह दी कि बाबूजी को कफ सिरप पिलाओ, वो ठीक हो जाएंगे।
पिताजी ने नियमित रूप से उसे लेना शुरू किया, तो उनकी खांसी काफी कम हो गई। जब हमने उन्हें दो से तीन शीशी दी तो धीरे-धीरे उन्हें इसे पीने की लत लग गई। रात को सोने से पहले वो रोजाना कफ सिरप लेने लगे। जब हमने कफ सिरप देना बंद कर दिया तो उन्हें रात को नींद नहीं आती थी। धीरे-धीरे हमने उन्हें इससे दूर किया। सिरप का नशा छुड़ाने में हमें 6 महीने लग गए।

नशे के 50% मरीज हर साल बढ़ रहे, ज्यादातर 30 साल से कम रीवा मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग की ओपीडी में साल 2021 में 21 हजार, 2022 में 28 हजार और 2023 में 32 हजार मरीज आए। इनमें नशे की वजह से मनोरोगी होने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ी है। 2021 में नशे वाले मनोरोगी 10 हजार थे। 2022 में ये 15 हजार हुए और 2023 में इनकी संख्या 20 हजार के पार हो गई।
मानसिक रोग विभाग के डॉक्टरों के मुताबिक कफ सिरप, गांजा और अल्प्राजोलम की टैबलेट का नशा करने वाले मरीज ज्यादा हैं। कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप का प्रचलन युवाओं में ज्यादा बढ़ा है। आयु वर्ग की बात करें तो 14 से 30 साल तक की उम्र वाले युवा इसके ज्यादा आदी है।
सीनियर डॉक्टर और नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के संयुक्त संचालक डॉ. प्रभाकर तिवारी कहते हैं- कोडीन का ज्यादा सेवन शरीर पर बुरा असर डालता है।

एसपी बोले- पुलिस की भी अपनी सीमाएं, रिसोर्स की कमी एसपी ऑफिस से चंद कदमों की दूरी पर कबाड़ी मोहल्ले से कफ सिरप और टैबलेट खरीद कर भास्कर रिपोर्टर एसपी ऑफिस पहुंचा। रिपोर्टर ने खरीदी हुई शीशी एसपी ऑफिस में जमा करवा दी और एसपी विवेक सिंह से पूछा कि पुलिस ने 15 जुलाई से 30 जुलाई तक नशामुक्ति अभियान चलाया, लेकिन कफ सिरप की शीशी तो खुलेआम बिक रही है।
इस पर एसपी ने कहा- कबाड़ी मोहल्ले में पुलिस लगातार कार्रवाई कर रही है। इस साल अगर 71 आरोपी पकड़े गए हैं तो उनमें से 20 से 25 आरोपी वहीं के होंगे। पुलिस लगातार उस मोहल्ले पर कार्रवाई करती है, लेकिन हमारी कुछ लिमिटेशन है। कार्रवाई में हमें 5 से 7 घंटे लगते हैं। आरोपी से जो जब्ती करते हैं, वो हमारी कार्रवाई को स्लो कर देता है। इसके पीछे आप रिसोर्सेज की कमी मान सकते हैं।
एसपी ने माना कि इस कारोबार में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। इसके पीछे वजह है कि महिलाओं पर कई बार कार्रवाई करने में पुलिस को कई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। जिसका लाभ उठाने का तस्कर प्रयास करते हैं।

हाईकोर्ट मांग चुका सरकार से जवाब इसी साल जबलपुर के वकील अमिताभ गुप्ता ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि सरकार ने जून 2023 में अधिसूचना जारी कर क्लोफेनिरामाइन और कोडीन युक्त कफ सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बावजूद ऐसे कफ सिरप का उत्पादन जारी है। याचिका में यह भी कहा गया कि ऐसे कफ सिरप का उपयोग नशे के लिए किया जाता है।
देश और प्रदेश के कई स्थानों पर बड़ी संख्या में प्रतिबंधित सिरप बरामद किए गए हैं। अधिसूचना के अनुसार इस तरह की गतिविधियों पर ड्रग कंट्रोलर, ड्रग इंस्पेक्टर और नारकोटिक्स कंट्रोल को निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। संबंधित अधिकारियों द्वारा अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वहन नहीं किए जाने के कारण प्रतिबंधित सिरप का उत्पादन जारी है।
याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल, प्रदेश सरकार के खाद्य एवं औषधि विभाग और ड्रग कंट्रोलर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

पार्ट-2 में कल पढ़िए…
किस तरह से यूपी के रास्ते से विंध्य में आता है अवैध कफ सिरप, आखिर तस्कर पुलिस को कैसे चकमा देने में कामयाब होते हैं?
