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पर्णश्री देवी16 मिनट पहले
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सारप नदी के किनारे एक गुफा में स्थित फुकताल मोनेस्ट्री।
पक्की सड़कों, मोबाइल नेटवर्क और पर्यटक नक्शों से दूर लद्दाख की मंत्रमुग्ध कर देने वाली जांस्कर घाटी की वादियों में बसा है एक अनोखा मठ- फुकताल मठ। इसे ‘फुगताल गोम्पा’ भी कहा जाता है। यह भारत के उन बौद्ध मठों में से एक है, जहां एकांत, आध्यात्म और हिमालय की मौलिक सुंदरता, सबको एकसाथ महसूस किया जा सकता है। मठ की औपचारिक स्थापना 12वीं शताब्दी की शुरुआत में गांगसेम शेरप सम्पो ने की थी, जो एक प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान लोथसावा रिनचेन जंगपो के शिष्य थे।
तीन घंटे का ट्रैक पुरने गांव से फुकताल मठ का ट्रैक करीब तीन घंटे का है। यह है तो कठिन और थकाऊ, लेकिन जब आप इसे पार करके फुकताल मठ के रंग-बिरंगे द्वार, जो बौद्ध प्रार्थना पताकाओं से सजा होता है, को देखते हैं तो सारी थकान जैसे अचानक से ओझल हो जाती है। एक ऐसे आनंद की लहर छा जाती है, जिसका शब्दों में वर्णन भी नहीं किया जा सकता। वैसे इस यात्रा का रोमांच तो मठ के दरवाजे तक पहुंचने से काफी पहले ही शुरू हो जाता है। सबसे निकटतम मोटरेबल पाइंट ‘चा’ नामक गांव है, जो जांस्कर के मुख्य नगर पदुम से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। ‘चा’ से आपको 7-8 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है।
प्राकृतिक गुफा के चारों ओर विकसित ‘फुकताल’ नाम दो तिब्बती शब्दों से बना है। एक, ‘फुक’ और दूसरा, ‘ताल’। ‘फुक’ का मतलब होता है गुफा और ‘ताल’ का मतलब होता है विश्राम या शांति। अपने नाम के अनुरूप यह मठ एक प्राकृतिक गुफा के चारों ओर विकसित हुआ है। माना जाता है कि अनेक महान ऋषियों, जिनमें गुरु पद्मसंभव भी शामिल हैं, ने यहां दूसरी शताब्दी में अपने ध्यान-साधना स्थल के रूप में इसका उपयोग किया था। यह पवित्र गुफा मठ के केंद्र में स्थित है। गुफा के अंदर एक छोटा-सा पवित्र जलस्रोत है, जिसका जल स्तर हमेशा एकजैसा रहता है, फिर कैसा भी मौसम हो। आज फुकताल मठ तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुगपा परंपरा से जुड़ा है, जो दलाई लामा की भी परंपरा है।
70 भिक्षुओं का आश्रय स्थल फुकताल लगभग 70 भिक्षुओं का घर है, जिनमें से कई युवा नवदीक्षित हैं। कुछ तो केवल आठ या नौ वर्ष के हैं। उनका दैनिक जीवन भोर से पहले शुरू हो जाता है- जप, ध्यान और दर्शनशास्त्र की कक्षाओं के साथ। आध्यात्मिक अध्ययन के अतिरिक्त ये भिक्षु साफ-सफाई, खाना बनाने से लेकर मठ की देखरेख करने जैसे दैनिक काम भी करते हैं। वे फुकताल मोनास्टिक स्कूल में पढ़ाते भी हैं। यह स्कूल आसपास के गांवों के बच्चों के लिए एक उम्मीद की किरण की तरह है। यहां बच्चों को निशुल्क शिक्षा, भोजन और आश्रय इस मठ द्वारा ही प्रदान किया जाता है।
अद्भुत स्थापत्यकला फुकताल की अद्भुत वास्तुकला को देखकर कोई भी पर्यटक चकित हुए बिना नहीं रहता। मिट्टी की ईंटों, पत्थरों और लकड़ी से बना यह मठ ऐसा प्रतीत होता है, मानो चट्टान से ही उग आया हो और अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ पूरी तरह घुल-मिल गया हो। इसके भीतर पत्थर और लकड़ी की संकरी सीढ़ियां बनी हुई हैं। मंद रोशनी वाले गलियारे विभिन्न कक्षों को आपस में जोड़ते हैं। भिक्षुओं के रहने के स्थान, सभा कक्ष, पुस्तकालय और ध्यानकक्ष, मानो हर कोने में इतिहास की सांसें सुनाई देती हैं। दीवारों पर प्राचीन भित्तिचित्र सुशोभित हैं जिनमें बौद्ध देवी-देवता और आध्यात्मिक प्रतीक दर्शाए गए हैं। मुख्य प्रार्थना कक्ष में घी के दीपों तथा अगरबत्तियों की सुगंध व्याप्त रहती है और उसमें भिक्षुओं के जप की गूंज सुनाई देती रहती है।
कब करें यहां का सफर? फुकताल की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय जून से सितंबर के बीच होता है, जब ट्रेकिंग मार्ग खुले रहते हैं और जांस्कर कारगिल से पदुम तक सड़क मार्ग से जुड़ा होता है। सर्दियों में पूरी घाटी कई फीट बर्फ के नीचे दब जाती है और फुकताल पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कट जाता है। साहसी यात्री इस समय प्रसिद्ध “चादर ट्रेक’ करने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह मार्ग सीधे फुकताल तक नहीं जाता।
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