Producer nikhil dwivedi Says ‘Sushant Singh Rajput was a top level actor’ | ‘सुशांत सिंह राजपूत ऊंचे लेवल के एक्टर थे’: निखिल द्विवेदी बोले- इंडस्ट्री की साजिशें बहुत छोटे लेवल की होती हैं, बाहर वाला सुनकर हंसेगा


36 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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साल 2008 में फिल्म ‘माइ नेम इज एंथोनी गोंसाल्वेस’ से बतौर अभिनेता हिंदी सिनेमा में कदम रखने वाले निखिल द्विवेदी ने कुछ साल बाद ही एक्टिंग छोड़ प्रोडक्शन का जिम्मा संभाला लिया। अभिनय की पारी ज्यादा न चलने के बाद बतौर निर्माता उन्होंने ‘वीरे दी वेडिंग’ और ‘दबंग 3’ जैसी हिट फिल्में बनाई।

इस वक्त निखिल की कोशिश प्रोडक्शन और एक्टिंग दोनों जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने की है। उन्होंने दैनिक भास्कर से उनके पेशेवर सफर और इंडस्ट्री के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की है।

आपका सलमान खान और शाहरुख खान दोनों के साथ करीबी रिश्ता है। ये बॉन्ड कैसे बना?

सलमान बड़े दिल वाले इंसान हैं। बड़े दिलवाले लोग सभी को अपने करीब रखते हैं। वो हमेशा दूसरों की मदद करने में लगे रहते हैं। मैं किसी के साथ करीब हूं या नहीं, यह बहुत निजी मामला है। ये सब कलाकार बहुत बड़े लोग हैं,जिन्होंने बड़ा नाम कमाया है।

कुछ साल पहले निखिल सलमान और शाहरुख को लेकर एक फिल्म बनाने वाले थे, जिसका डायरेक्शन संजय लीला भंसाली करने वाले थे।

कुछ साल पहले निखिल सलमान और शाहरुख को लेकर एक फिल्म बनाने वाले थे, जिसका डायरेक्शन संजय लीला भंसाली करने वाले थे।

मैं सोचता हूं कि कहीं ऐसा ना लगे कि मैं उनका नाम सिर्फ खबरों में बने रहने के लिए ले रहा हूं। आप इनके करीब हो या न हो, लेकिन अगर ये आपको अपने करीब आने या मिलने का मौका देते हैं, तो आपको उनसे कुछ सीखना चाहिए। कुछ कारण है कि वो पिछले 30-35 सालों से इंडस्ट्री में टिके हुए हैं। भगवान की कृपा है कि मुझे दोनों के साथ कुछ अच्छा समय बिताने का मौका मिला है।

आउटसाइडर और इनसाइडर के संघर्षों पर बहस तो होती रहती है। आपका क्या संघर्ष रहा?

आप कहीं से भी हो, फिल्मों में जाना और अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं है। अगर आपने वहां अपनी जगह बना भी ली, तो वहां टिके रहना आसान नहीं है। लोग अक्सर बोलते हैं कि स्टार किड्स को तो बड़ी सहजता से मौका मिल जाता है। उन्हें मौका ही सहजता से मिलता है, उसके बाद उनका सफर और संघर्ष उतना ही मुश्किल है, जितना एक आउटसाइडर्स का। मैं इनसाइडर और आउटसाइडर की बहस को बेबुनियादी मानता हूं। या ना किसी अंदर के शख्स ने बाहर वाले को रोकने की कोशिश की, ना ही किसी को निकाला है। जैसे ही आप बाहर से आकर यहां सफल होते है, वो एक पल में ही आपको अपना भी लेते हैं।

सुशांत के निधन के बाद बॉलीवुड पर कई आरोप लगे। अगर आउटसाइडर्स की फिल्में दर्शक नहीं देखेंगे तो वो एक्टर नहीं चलेगा। ऐसे में जनता ज्यादा जिम्मेदार है?

मैं आपकी बातों से सौ फीसदी सहमत हूं। सुशांत के साथ जो हुआ वो दुखद है। मैं आपको बता दूं कि सुशांत सिंह राजपूत को बहुत सक्सेसफुल माना जाता है। जहां से वो आए, जो लड़ाई उन्होंने लड़ी, जिस तरह की फिल्में उन्होंने की और स्टार बने। वो बहुत ऊंचे लेवल के स्टार थे। आगे चलकर वो बहुत बड़े स्टार ही बनते।

लोगों का ये कहना कि बड़े स्टार्स डर गए थे, ऐसे तो हर साल कितने लोग आते हैं और बड़े स्टार्स को लगता है कि अपनी पोजिशन बनाकर रखना है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो सब लोग मिलकर प्लान बनाने लगते हैं कि इसे कैसे गिराना है।

सुशांत ने साल 2013 में फिल्म 'शुद्ध देसी रोमांस' से करियर की शुरुआत की थी।

सुशांत ने साल 2013 में फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’ से करियर की शुरुआत की थी।

फिल्मी इंडस्ट्री की जो साजिशें हैं, वो बहुत छोटे लेवल की होती हैं। बाहर वाला उसे सुनकर हंसेगा। इससे कहीं ज्यादा साजिश,षड्यंत्र, एक-दूसरे को गिराने की कोशिश बिजनेसमैन और राजनेता करते हैं। हमारी साजिश इतनी होती है कि किसी के बारे में एक आर्टिकल छपवा दो कि इसकी फिल्म नहीं चली। या अच्छा नहीं कर रहा है। फिर बात इधर ही खत्म हो जाती हैं। ये साजिशें ज्यादा लंबी चलती भी नहीं है।

सुशांत के मैटर के वक्त आपने रिया चक्रवर्ती के सपोर्ट में एक ट्वीट किया था। उस वक्त बहुत कम लोग थे, जिन्होंने उनका साथ दिया था।

मैंने अपने ट्वीट में कहा था कि मैं आपको जानता भी नहीं हूं। मैंने कहा था कि मैं आपके साथ काम करना चाहूंगा लेकिन किसी वजह से वो अब तक हो नहीं पाया। मुझे इस बात के लिए शर्मिंदगी भी है। लेकिन मैं आज भी दावे के साथ ये कह सकता हूं कि रिया के सपोर्ट में वो ट्वीट मैंने किसी अटेंशन के लिए नहीं किया था।

मुझे मालूम था कि उनके साथ नाइंसाफी और गलत हो रहा है। देख लीजिए वही हुआ भी। वो पूरा केस रफा-दफा हो गया। सीबीआई की चार्जशीट में भी बता दिया गया कि सुशांत ने सुसाइड किया था।

क्या ओटीटी की वजह से सिनेमा का क्रेज कम हो रहा है?

मैं नहीं मानता…क्योंकि टेक्नोलॉजी, मीडियम, प्लेटफॉर्म्स ये बदलते रहेंगे। कुछ न कुछ ऐसा नया आता रहेगा कि आपको अपना सुर ढूंढना पड़ेगा। ये 80 के दशक में भी हो चुका है। जब वीसीआर वीडियो आया था,उस वक्त सबका यही कहना था कि वीडियो फिल्मों को खत्म कर देगी। लोगों ने थियेटर जाना बंद कर दिया था क्योंकि थियेटर को अपग्रेड नहीं किया जा रहा था।

दर्शकों के पास इतने पैसे थे कि वे वीसीआर खरीद लें तो उन्होंने घर पर छोटे टीवी में फिल्में देखना शुरू कर दिया। इससे बिजनेस बहुत इफेक्ट हुआ। फिर बड़े-बड़े सितारे आकर अपनी फिल्मों का प्रमोशन करते थे कि आप बड़े थियेटर में आइए फिल्म देखिए। पूरा एक दशक लगा इसे दोबारा सुधरने में जब कयामत से कयामत तक और मिस्टर इंडिया जैसी फिल्में आईं।

निखिल जल्द ही श्रद्धा कपूर के साथ फिल्म 'नागिन' बनाने वाले हैं।

निखिल जल्द ही श्रद्धा कपूर के साथ फिल्म ‘नागिन’ बनाने वाले हैं।

इन दिनों हिंदी और साउथ फिल्मों के बीच ज्यादा जड़ों से जुड़ी होने और ना होने की बहस है। आपको क्या लगता है?

साउथ और नॉर्थ सिनेमा के बीच ऐसा बंटवारा नहीं है। इंटरनेट मीडियम और कुछ दूसरे कारणों से अब उनके सिनेमा का हमारी तरफ और हमारी सिनेमा को उनकी तरफ ज्यादा देखा जा रहा है। अब उनकी फिल्मों को डब कर यूट्यूब पर दिखा रहे हैं। पहले उन्हें सिर्फ सिनेमाघरों में ही देखा जाता था। इससे पहले उनके काम को हमने इतना ज्यादा कभी देखा ही नहीं। हालांकि,साउथ के फिल्मकार फिर वह तेलुगु, तमिल, मलयालम या कन्नड़ किसी भी भाषा के हो, वो जब यहां आकर फिल्में बनाते थे, तो उनकी फिल्में ली है।

अनिल कपूर की पहली फिल्म ‘वो सात दिन’ को बापू ने निर्देशित किया था। जितेंद्र ने तो पता नहीं कितने साउथ के फिल्मकारों के साथ काम किया है। अमित जी के साथ कितनी फिल्में बनी हैं। कमल हासन बड़े हिट हुए थे। रजनीकांत की ‘अंधाकानून’ और ‘गिरफ्तार’ जैसी कई फिल्में हिट रही हैं।

अब पैन इंडिया का चलन इसलिए हैं, क्योंकि लोग पिछले सात-आठ साल से लगातार उनकी फिल्में देख रहे हैं। इसमें यूट्यूब का बड़ा हाथ है। अब लोग उनके कलाकारों को जानने पहचानने लगे हैं। वो ज्यादा जुड़े हुए इसलिए लगते हैं कि हमारे यहां के ज्यादातर नए कलाकार और फिल्मकार हॉलीवुड और पश्चिमी देशों की फिल्मों से प्रेरित हैं।

कई लोगों ने तो बॉलीवुड की अच्छी फिल्में देखी ही नहीं होंगी। कई लोगों ने तो ‘शोले’ भी नहीं देखी है। हम देश को गांवों और दूर दराज के क्षेत्रों दिखाना भूल गए, इससे लोग फिल्मों से जुड़ नहीं पा रहे हैं, जिसका असर अब काम पर भी दिख रहा है।

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