Punjab 1993 fake encounter case five police personnel convicted by CBI court Mohali updat | तरनतारन फर्जी एनकाउंटर में SSP-DSP समेत 5 दोषी: सोमवार को सुनाई जाएगी सजा; CBI कोर्ट का फैसला, साल 1993 में हुआ था – Punjab News


1993 में हुए फर्जी एनकाउंटर मामले में मारे गए लोगों के परिजन अपना दुख सुनाते हुए।

पंजाब के तरनतारन में 1993 में हुए फर्जी एनकाउंटर से जुड़े मामले में सीबीआई की अदालत ने तत्कालीन एसएसपी और डीएसपी समेत 5 लोगों को दोषी ठहराया है। परिवारों ने कोर्ट के इस फैसले पर संतुष्टि जताई है। सोमवार को अदालत में इन्हें सजा सुनवाई जाएगी।

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दोषी करार दिए गए अधिकारियों में रिटायर्ड एसएसपी भूपेंद्रजीत सिंह, रिटायर्ड इंस्पेक्टर सूबा सिंह, रिटायर्ड डीएसपी दविंदर सिंह, और रिटायर्ड इंस्पेक्टर रघुबीर सिंह और गुलबर्ग सिंह शामिल हैं। इन सभी पर IPC की धारा 302 (हत्या) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत सजा सुनाई जाएगी। दोषी ठहराए जाने के बाद सभी को गिरफ्तार कर लिया गया है।

7 नौजवानों को मारा था

बचाव पक्ष के वकीलों ने बताया कि यह मामला 1993 का है, जिसमें 7 नौजवानों को दो अलग-अलग पुलिस मुठभेड़ों में मरा हुआ दिखाया गया था। दोषियों ने उन युवकों को उनके घरों से उठाकर कई दिनों तक अवैध हिरासत में रखा और उन पर अमानवीय अत्याचार किए।

उन्हें घरों में ले जाकर जबरन रिकवरी करवाई गई और थानों में यातनाएं दी गईं। इसके बाद तरनतारन में थाना वैरोवाल और थाना सहराली में दो अलग-अलग फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की एफआईआर दर्ज की गईं। उन्हें झूठे एनकाउंटर में मार दिया।

बचाव पक्ष के वकील मोहाली अदालत के बाहर मीडिया को जानकारी देते हुए।

बचाव पक्ष के वकील मोहाली अदालत के बाहर मीडिया को जानकारी देते हुए।

4 एसपीओ पद पर थे तैनात

जिन 7 लोगों को पुलिस ने मार दिया था, उनमें से 4 पंजाब सरकार में एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) के पद पर कार्यरत थे। उन्हें आतंकवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया था। करीब 33 साल बाद आज इस मामले में अदालत का फैसला आया है।

इस केस में 10 पुलिस कर्मियों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से 5 की ट्रायल के दौरान मौत हो गई। जिन लोगों को मारा गया, उनके परिवारों को न तो उनकी मृत देह (डेड बॉडी) सौंपी गई, न ही उनसे कोई संपर्क किया गया। यहां तक कि परिजनों को उनकी अस्थियां तक नहीं दी गईं। इतना ही नहीं, मृतकों के घरों में अंतिम धार्मिक संस्कार (पाठ आदि) तक करने नहीं दिए गए।

पुलिस की तरफ ये कहानी पेश की गई

हालांकि पुलिस ने कई कहानियां बनाई। पुलिस एक युवक मंगल सिंह को रिकवरी के लिए ले जा रही थी, तभी उसके साथियों ने पुलिस पर हमला कर दिया। जवाबी कार्रवाई में मंगल सिंह समेत तीन लोग मारे गए। दूसरे मामले में, पुलिस ने बताया कि नाका लगाया हुआ था।

कुछ लोग आए, लेकिन वे रुके नहीं। इस दौरान दोनों तरफ से फायरिंग हुई और तीनों लोग मारे गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यह मामला सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई ने जांच कर 10 लोगों के खिलाफ याचिका दायर की। ट्रायल के दौरान 5 लोगों की मौत हो गई।

सुखदेव की पत्नी अपने दर्द सुनाते हुए।

सुखदेव की पत्नी अपने दर्द सुनाते हुए।

जब पति को मारा, उस समय गर्भवती थी

मृतक सुखदेव सिंह की विधवा ने बताया कि जब मेरे पति को पुलिस ने उठाकर एनकाउंटर किया था, उस समय मैं गर्भवती थी। उनके दुनिया से चले जाने के बाद मेरा बच्चा हुआ। करीब एक महीने बाद पता चला कि उनका एनकाउंटर हो गया है। इसके बाद परिवार ने कई मुश्किलें झेली। मैंने मजदूरी करके बच्चों को पाला। सरकारी नौकरी भी नहीं मिली। पूरी उम्र लोगों से मांगकर गुजारा चलाया है।

मृतक के परिवारिक मेंबर आपबीती सुनाते हुए।

मृतक के परिवारिक मेंबर आपबीती सुनाते हुए।

घर से उठाकर ले गई थी पुलिस

मृतक छिंदा सिंह की पत्नी नरेंद्र कौर ने बताया कि उसके पति को दोषी पुलिस वाले घर की छत से ले गए थे। उसके बाद की लाश भी नहीं दी गई। पति की मौत के बाद परिवार ने काफी मुश्किल उठाई है। आज उन्हें लगभग 33 साल बाद इंसाफ मिला है।



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