Putrada Ekadashi of Sawan month is on 5th August, significance of putrada ekadashi in hindi, vishnu puja in savan month | सावन मास की पुत्रदा एकादशी 5 अगस्त को: संतान से जुड़ी परेशानियां दूर करने की कामना से किया जाता है ये व्रत, भगवान शिव और श्रीहरि का करें अभिषेक


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48 मिनट पहले

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सावन माह की दूसरी एकादशी 5 अगस्त को है। इसका नाम पुत्रदा और पवित्रा एकादशी है। एकादशी व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किया जाता है। पुत्रदा एकादशी व्रत से संतान से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं, जाने-अनजाने में किए गए पाप कर्मों के अशुभ फल खत्म होते हैं, जीवन में पवित्रता आती है, ऐसी मान्यता है।

एक साल में दो बार आती है पुत्रदा एकादशी

पुत्रदा एकादशी वर्ष में दो बार आती है, एक सावन मास के शुक्ल पक्ष में और दूसरी पौष मास के शुक्ल पक्ष में। सावन शिव जी की पूजा का महीना है और एकादशी तिथि के स्वामी भगवान विष्णु है। ऐसे में सावन और एकादशी के योग में भगवान शिव और श्रीहरि का अभिषेक एक साथ करना चाहिए।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से भक्त को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इस व्रत से संतान को सफलता मिलती है।

पुत्रदा एकादशी व्रत कैसे करें?

पुत्रदा एकादशी के व्रत की शुरुआत दशमी तिथि से हो जाती है। दशमी (4 अगस्त) की शाम सात्विक भोजन करें। व्रत के दिन यानी एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद घर के मंदिर में भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करें।

पूजा में धूप, दीप, फूल-माला, बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल, धतूरा, चावल, रोली और नैवेद्य सहित कुल 16 सामग्री अर्पित की जाती हैं। सिर्फ भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाएं, शिव जी को नहीं। तुलसी दल विष्णु पूजा का अभिन्न अंग है, लेकिन शिव पूजा में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पूजा के बाद पुत्रदा एकादशी की कथा का पाठ करें और अंत में आरती करें।

पूजा में भगवान के सामने एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। दिनभर निराहार रहें, भूखे रहना संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। शाम को भी भगवान विष्णु की पूजा करें। अगले दिन सुबह जल्दी उठें और विष्णु पूजा करें। इसके बाद जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं, फिर खुद भोजन करें। इस तरह एकादशी व्रत पूरा होता है।

दीपदान और दान का महत्व

एकादशी पर भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए किसी पवित्र नदी, सरोवर में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद नदी में दीपदान करने की परंपरा है। अगर नदी स्नान करना संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। पूजा के बाद जरूरतमंद लोगों को दान देना भी व्रत का एक अनिवार्य अंग है। दान देने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्रत का फल दोगुना हो जाता है।

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