Rajkumar Rao’s most dangerous avatar till date, the film leaves an impact on the heart and mind | मूवी रिव्यू- मालिक: राजकुमार राव का अब तक का सबसे खतरनाक अवतार, फिल्म  दिल और दिमाग पर असर छोड़ती है

[ad_1]

43 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

  • कॉपी लिंक

राजकुमार राव की फिल्म ‘मालिक’ सिनेमाघरों में आज रिलीज हो चुकी है। पुलकित के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में राज कुमार राव के अलावा प्रोसेनजीत चटर्जी, मानुषी छिल्लर, सौरभ शुक्ला, अंशुमान पुष्कर, स्वानंद किरकिरे और हुमा कुरैशी की अहम भूमिका है। सत्ता की भूख, निजी नुकसान, जाति की राजनीति और सिस्टम से टकराव के बीच जूझती इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 29 मिनट है। इस फिल्म को दैनिक भास्कर ने 5 में से 3.5 स्टार रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी क्या है?

1988 का प्रयागराज। किसान का बेटा दीपक (राजकुमार राव) एक दर्दनाक हादसे के बाद अपराध की दुनिया में उतरता है। धीरे-धीरे वह ‘मालिक’ बनता है। वो नाम जिससे लोग डरते हैं, लेकिन सम्मान भी करते हैं। उसके जीवन में शालिनी (मानुषी छिल्लर) एक उम्मीद की तरह आती है, मगर अपराध और प्यार एक साथ नहीं चलते। फिल्म में कई ट्विस्ट हैं, और जैसे-जैसे दीपक का कद बढ़ता है, वैसे-वैसे उसकी दुनिया और खतरनाक होती जाती है।

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

राजकुमार राव पूरी फिल्म की आत्मा हैं। एक सीन में जहां वह अपने दुश्मनों के गले में रस्सी डालकर सिर्फ आंखों से बात कर रहे हैं, वही सीन साबित करता है कि वो एक्टिंग को जीते हैं। मानुषी छिल्लर ने पूरी ईमानदारी से काम किया है, लेकिन उनके किरदार में गहराई की कमी महसूस होती है। एक गैंगस्टर की पत्नी के रोल में वो कुछ जगहों पर हल्की पड़ जाती हैं।

प्रोसेनजीत चटर्जी का किरदार दमदार हो सकता था, लेकिन स्क्रीन पर उनकी उपस्थिति उतनी प्रभावशाली नहीं रही। सौरभ शुक्ला, स्वानंद किरकिरे और अंशुमान पुष्कर जैसे कलाकार सपोर्टिंग रोल्स में भी असरदार हैं। अंशुमान ने सीमित स्क्रीन टाइम में भी गहरी छाप छोड़ी है।

डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष कैसा है?

पुलकित का निर्देशन काफी परिपक्व है। उन्होंने उत्तर भारत के राजनीतिक और आपराधिक माहौल को रॉ और असली अंदाज में पेश किया है। स्क्रीनप्ले पहला हाफ काफी टाइट है, लेकिन सेकेंड हाफ में थोड़ी ढीलापन आता है। डायलॉग्स तेज, नुकीले और असरदार हैं। जैसे “मालिक पैदा नहीं हुए तो क्या, बन तो सकते हैं” या “अब आपको मजबूत बेटे का बाप बनना पड़ेगा, ये किस्मत है आपकी”।सिनेमैटोग्राफी में अनुज राकेश धवन ने 90 के दशक के माहौल को सेपिया टोन में बखूबी कैद किया है। एडिटिंग ज्यादातर जगह पैनी है, लेकिन कुछ जगह फिल्म खिंचती सी लगती है। खासकर आइटम नंबर के दौरान टोन डगमगाने लगता है।

कैसा है म्यूजिक?

बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की गति और भावना दोनों को मजबूती देता है। हुमा कुरैशी का आइटम नंबर ‘दिल थाम के’ आकर्षक है, लेकिन फिल्म के समग्र टोन से मेल नहीं खाता। यह गाना फिल्म की गंभीरता को कुछ पल के लिए हल्का कर देता है।

फिल्म का फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं?

“मालिक” एक इमोशनल, रॉ और देसी गैंगस्टर फिल्म है जो पावर, दर्द और प्रतिशोध की राजनीति को मजबूती से दिखाती है। कुछ कमियों के बावजूद, यह फिल्म आपको सोचने, चौंकने और तालियां बजाने पर मजबूर कर देती है। ‘मालिक उन फिल्मों में से है जो दिल और दिमाग दोनों पर असर छोड़ती है।

[ad_2]

Source link

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top