Rapido and Uber Fraud case bike taxi Mumbai fir bns | मुंबई में रैपिडो और उबर पर धोखाधड़ी का केस: सरकार और RTO से लाइसेंस के बगैर ट्रांसपोर्ट सर्विस दे रहे; अप्रैल में नोटिस दिया गया था


मुंबई8 मिनट पहले

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ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने दोनों ऐप बेस्ड एग्रीगेटर पर कार्रवाई के आदेश दिए थे। - Dainik Bhaskar

ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने दोनों ऐप बेस्ड एग्रीगेटर पर कार्रवाई के आदेश दिए थे।

मुंबई पुलिस ने मंगलवार को रैपिडो और उबर बाइक टैक्सी पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया। रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस (RTO) ने कंपनियों पर राज्य सरकार की अनुमति के बिना अवैध रूप से ट्रांसपोर्ट सर्विस देने के आरोप में शिकायत दर्ज कराई है।

दोनों कंपनियों के खिलाफ BNS की धारा 318(3) और मोटर व्हीकल एक्ट की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। अप्रैल में RTO ने रैपिडो को इस मामले में नोटिस जारी किया था। ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने दोनों ऐप बेस्ड एग्रीगेटर पर कार्रवाई के आदेश दिए थे। इसके बाद FIR दर्ज कराई गई है।

कर्नाटक में 16 जून से ओला, उबर, रैपिडो बाइक बंद

कर्नाटक सरकार ने 2 अप्रैल को बाइक टैक्सी सेवाओं पर रोक लगाने का फैसला किया था।

कर्नाटक सरकार ने 2 अप्रैल को बाइक टैक्सी सेवाओं पर रोक लगाने का फैसला किया था।

कर्नाटक में 16 जून से ओला, उबर, रैपिडो बाइक बंद हो गईं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 13 जून को राज्य सरकार के आदेश को वैध ठहराया था। इसमें रैपिडो, ओला और उबर मोटो जैसी बाइक टैक्सी सेवाओं को गैरकानूनी करार दिया गया था। मामले की अगली सुनवाई 24 जून को होगी।

कर्नाटक सरकार ने 2 अप्रैल को बाइक टैक्सी सेवाओं पर रोक लगाने का फैसला किया था। यह कदम कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश के बाद उठाया गया जिसमें कहा गया था कि निजी नंबर प्लेट वाली दोपहिया गाड़ियां वाणिज्यिक सेवा के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं, क्योंकि इसके लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं है।

अदालत ने यह भी कहा कि जब तक मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 3 के तहत राज्य सरकार बाइक टैक्सी के लिए लाइसेंस, बीमा और सुरक्षा से जुड़े नियम तय नहीं करती, तब तक इनका संचालन अवैध माना जाएगा। साथ ही, अदालत ने छह हफ्ते में सभी सेवाएं बंद करने और तीन महीनों में नियम बनाने के निर्देश दिए थे।

ऑनलाइन टैक्सी बुकिंग में भेदभाव का मामला संसद पहुंच चुका

इससे पहले ओला और उबर जैसी कैब कंपनियों पर आईफोन और एंड्रॉयड यूजर्स से अलग-अलग किराया वसूलने के मामला संसद तक पहुंचा चुका है। केंद्र सरकार ने 12 मार्च को संसद में बताया कि इस मामले को गंभीरता से लिया गया है और जांच शुरू कर दी गई है।

जनवरी में हुए एक सर्वे में एक ही राइड के लिए दोनों ऑपरेटिंग सिस्टम पर अलग-अलग कीमतें देखी गईं। एक्सपर्ट्स इसे ‘डार्क पैटर्न’ का मामला बता रहे हैं। इसमें कीमतों में गैर-वाजिब बदलाव, जबरन वसूली और छिपे हुए शुल्क शामिल हो सकते हैं। यह करना कंज्यूमर कानून के तहत गैर-कानूनी है।

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