Research done by hanging from the wall in space, Lucknow, Uttar Pradesh , shubhnshu shukla | स्पेस में दीवार से लटककर रिसर्च: लखनऊ के एस्ट्रोनॉट शुभांशु ने इंस्टा पर लिखा- अनोखा अनुभव था, माइक्रोग्रैविटी की तस्वीरें साझा कीं – Lucknow News


भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए अंतरिक्ष मिशन के दौरान किए गए वैज्ञानिक अनुसंधान की एक झलक साझा की है। उन्होंने बताया कि कैसे माइक्रोग्रैविटी यानी भारहीनता की स्थिति में सबसे आसान प्रयोग भी चुनौतीपूर्ण हो जाते

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शुभांशु ने लिखा- अंतरिक्ष में सब कुछ तैरता है। आप कोई भी चीज अगर कहीं रख दें, तो वह वहीं नहीं रहती, बल्कि उड़ जाती है। आपको आधा दिन उस चीज को ढूंढने में लग सकता है। उन्होंने इस बात को मजाकिया लहजे में कहा कि ऐसा उनके साथ हुआ या नहीं, यह वो नहीं बता रहे।

एक्सियम मिशन 4 के तहत 25 जून को शुभांशु शुक्ला सहित चार एस्ट्रोनॉट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए रवाना हुए थे। 26 जून को भारतीय समयानुसार शाम 4:01 बजे ISS पहुंचे थे। 18 दिन रहने के बाद 15 जुलाई को पृथ्वी पर लौट थे। कैलिफोर्निया के तट पर लैंडिंग हुई थी। अंतरिक्ष से लौटने के बाद वे सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं।

शुभांशु ने LSG के किए गए रिसर्च की फोटो साझा की।

शुभांशु ने LSG के किए गए रिसर्च की फोटो साझा की।

लाइफ साइंसेस ग्लोव बॉक्स (LSG) में हुआ रिसर्च

अपने पोस्ट में शुभांशु ने बताया कि वह LSG (Life Sciences Glovebox) में काम कर रहे थे। यह एक विशेष बॉक्स होता है, जिसमें खतरनाक या संवेदनशील प्रयोगों को सुरक्षित ढंग से किया जाता है। LSG में वैज्ञानिक बाहरी दस्तानों के जरिए उपकरणों को नियंत्रित करते हैं ताकि किसी प्रकार का रिसाव या संक्रमण न हो।

उन्होंने कहा- “सारा सामान पहले बाहर तैयार किया जाता है और फिर एक-एक करके LSG में डाला जाता है। उसके बाद हम दस्तानों में हाथ डालकर काम करते हैं और ग्राउंड टीम के साथ कैमरे और हेड सेट के माध्यम से संपर्क बनाए रखते हैं।”

माइक्रोग्रैविटी और मांसपेशियों पर प्रभाव

शुभांशु ने अंतरिक्ष में मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि माइक्रोग्रैविटी के कारण मांसपेशियों की सक्रियता घट जाती है, जिससे मांसपेशियों की ताकत और स्थायित्व कम होता है। “पृथ्वी पर हमारी मांसपेशियां हमेशा गुरुत्वाकर्षण (1g) के प्रभाव में काम करती हैं, लेकिन अंतरिक्ष में यह लोड नहीं होता, जिससे मांसपेशियों की घातक क्षति हो सकती है।”

शुभांशु ने स्टेम सेल पर भी रिसर्च किया।

शुभांशु ने स्टेम सेल पर भी रिसर्च किया।

भारतीय शोध संस्था InStem का योगदान

पोस्ट में शुभांशु ने बेंगलुरु स्थित InStem (इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रिजेनरेटिव मेडिसिन) द्वारा तैयार किए गए एक खास प्रयोग का भी जिक्र किया। यह प्रयोग माइक्रोग्रैविटी में प्राकृतिक सप्लीमेंट्स द्वारा स्टेम सेल्स के जरिए मांसपेशियों की मरम्मत को तेज करने के उद्देश्य से किया गया है। यह न सिर्फ वैज्ञानिक बल्कि चिकित्सा दृष्टिकोण से भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

दीवार पर लटककर साइंस करने का मौका, बस अंतरिक्ष में मुमकिन

पोस्ट के अंत में शुभांशु ने लिखा कि उनकी साझा की गई अंतिम तस्वीर में वह दरअसल दीवार पर लटके हुए रिसर्च कर रहे हैं। “यह बहुत ही अनोखा अनुभव है कि आप दीवार से चिपके हुए साइंस पर काम कर रहे हैं यह केवल अंतरिक्ष में ही संभव है।”

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