शब्दों से परे है दोस्ती, असल दोस्त वो है जिसके साथ आप घंटों खामोश बैठ सकें- जावेद अख्तर
जावेद अख्तर ने भास्कर रिपोर्टर अरविंद मण्डलोई से बाचतीत में दोस्ती पर कहा, ‘दोस्ती बड़ा कमाल का रिश्ता है। बाकी रिश्ते तो आपको दे दिए गए हैं, इनमें कोई पसंद-नापसंद नहीं है। दोस्ती में चॉइस है। आप उन्हें दोस्त बनाते हैं जिन्हें आप पसंद करें और वो आपको पसंद करें। अपनी मर्जी से। अंग्रेजी में एक कहावत है- ए फ्रेंड इन नीड इज ए फ्रेंड इनडीड, यानी जो बुरे वक्त में काम आए वही दोस्त है। ये हम हमेशा दूसरे के लिए सोचते हैं कि ये मेरा दोस्त है कि नहीं है, बुरे वक्त में काम आएगा या नहीं आएगा। ये नहीं सोचते कि क्या हम इसके बुरे वक्त में काम आएंगे?’
‘दोस्ती से ज्यादा खूबसूरत कोई बात नहीं है। पुराने दोस्त होना, आदमी के अच्छे होने की निशानी है। दोस्त इंसान की नेकी की बहुत बड़ी परीक्षा हैै। शब्द तो कोई भी किसी से अच्छे बोल सकता है। लेकिन एक खामोशी होती है जो एक-दूसरे को बता रही हाेती है कि हम एक-दूसरे के लिए क्या महसूस करते हैं। इसे आप शब्दों में पिरो नहीं सकते। आपको उस पर यकीन होता है। उसके पास आप बैठते हैं, तो आपको भला लगता है। दोस्त असल में वो है जिसके साथ आप घंटों खामोश बैठ सकते हों। दोनों चुप बैठे हैं, बात नहीं कर रहे हैं लेकिन पास में ही बैठे हैं। ऐसी होती है दोस्ती।’
‘मेरे लिए तो दोस्त इसलिए अहम हो गए कि मेरे पास परिवार नहीं था। 15-16 की उम्र में मेरा अगर कोई सहारा था तो वो दोस्त थे। मेरे पास न रहने को जगह थी, न खर्च करने को पैसा था। ना पहनने को कपड़ा था, न खाने को रोटी थी। दोस्तों ने मुझे जीने का सहारा दिया, वो मैं कैसे भूल सकता हूं। मेरे ऊपर दोस्तों के बहुत करम, बहुत एहसान हैं। वो मैं मरते दम तक याद रखूंगा। आज जब मैं मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि मेरे दोस्त कई तरह के थे।’
अच्छे दोस्त हमेशा एक-दूसरे की तारीफ नहीं करते, वफादार होते हैं- जावेद अख्तर
‘कुछ दोस्त थे जिनके साथ मैं सिर्फ आवारगी करता था। कुछ शायरी में रुचि वाले थे, मैं उनसे शायरी-कविता की बातें करता था। कुछ राजनीति के लोग थे- डिबेटर्स थे। उनके साथ डिबेट की बातें, राजनीति और विदेश नीति की बातें कॉलेज के जमाने में होती थीं। इन सारे दोस्तों ने मुझे बहुत मांजा है।’
‘दोस्तों ने मुझे अपने-अपने तरीके से बहुत कुछ दिया है। कुछ दोस्त थे जो अच्छी पोजिशन में थे। उनका घर था, गाड़ी थी। उन्होंने मुझे हर तरह से मदद दी है। उन्होंने मेरे कपड़े भी सिलवाए, सर्दी में गरम कपड़े दिए। खाना भी खिलाया है, फिल्म भी दिखाई। बड़ी बात ये है कि उन्होंने मेरा माइंड बनाया ताकि लाइट-हार्टेड भी हम रह सकें, गंभीर भी सोच सकें, गहराई से भी सोच सकें। साहित्य से भी राब्ता रहे और गपशप से भी रहे।’
‘इंसान उसके पास जाता है जहां उसे लगता है कि ये आदमी मुझे पसंद करता है। अगर आप एक-दूसरे की इज्जत करते हैं, एक-दूसरे से मोहब्बत है तो दोस्ती रहेगी। मेरी दोस्ती इस वजह से थी कि वो लोग कमाल के थे। आपके दिल में दोस्त की इज्जत रहनी चाहिए। बेतकल्लुफ हैं आप, मजाक करते हैं वो अलग बात है। लेकिन अगर आपको उसमें कोई खराबी लग रही है तो अकेले में कभी दोस्तों की तरह ही बताइए। उसे आप सभी के बीच में मत बोलिए। हर चीज बातचीत और शब्दों में ‘कन्वे’ नहीं होती।’
‘हिंदी फिल्मों में पहले दोस्त ऐसे लगते थे जैसे आशिक-माशूक हैं। गले लग जाते थे। ‘मेरी जान, मेरे दोस्त, तूने जान भी मांगी तो क्या मांगी’ जैसे डायलॉग होते थे। असल दोस्त एक-दूसरे से ऐसा कभी नहीं बोलते। हमारी ही कई फिल्मों में दोस्त हैं, जैसे ‘शोले’ के जय-वीरू, वो कभी एक-दूसरे की तारीफ नहीं करते। बल्कि वो एक-दूसरे की टांग खींचते रहते हैं, लेकिन एक-दूसरे से वफादार हैं।’
‘आपका अपने दोस्त पर भरोसा हो कि आपका दुख, गम, तकलीफ, जिन्दगी से शिकवा आप उससे कह सकते हैं। और वो बात उसी तक रहेगी। आप अपनी गलतियां भी उसके सामने मान लेंगे कि मुझसे बहुत बुरा काम हो गया। वो सुन लेगा, आपको समझाएगा, लेकिन आपको तुच्छ नहीं समझने लगेगा। उसका रवैया होगा ठीक है, बुरा हुआ, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। चलो अब हो गया। वो आपकी बहुत सारी बातें बिन कहे समझ जाता है। आपके दुख की वजह भी। वो आपको बहला भी लेगा। चलो बाहर घूमते हैं, बात करते हैं। वो आपके सुख-दुख का साथी है।’
‘मेरे एक बड़े-बुजुर्ग ने कहा था कि तुम अभी स्कूल-कॉलेज में हो, अभी दोस्त बना लो। जितने भी दोस्त बना सकते हो, अभी बना लो। बाद में दोस्त नहीं मिलते। बाद में बिजनेस एक्वेंटेंस मिलेंगे। साथ काम करने वाले मिलेंगे। कारोबारी लोग मिलेंगे। या तुम उनसे मतलब से मिलोगे, या वो तुमसे मतलब से मिलेंगे। दोस्ती अभी इस उमर में जितनी कर लोगे न, वही रहेगी असली दोस्ती। वैसे ये कोई फुलप्रूफ नहीं है। लेकिन ज्यादातर मामलों में ये बात सच्ची है। जब आप स्कूल-कॉलेज में दोस्ती करते हैं, यंग एज में दोस्ती करते हैं तो उस समय कोई मतलब नहीं होता। उससे बात करने में, उसके साथ रहने में मजा आता है। वो भी आपसे इसीलिए दोस्ती करता है। इसलिए दोस्ती तो दोतरफा चीज है।’

‘मेरा एक दोस्त था फरहान मुजीब, जिसकी वजह से मैंने अपने बेटे का नाम फरहान रखा था। वो याद आता है। वो अब दुनिया में नहीं है। मुश्ताक सिंह याद आता है जिसका कड़ा मैं पहने हुए हूं और मरते दम तक पहने रहूंगा। उसने मेरी कितनी मदद की है! मुझे दिनेश रॉय याद आता है। दिनेश रॉय के साथ कितनी बैठकें की हैं। हर बात पर बहस। ऐसा लगता था कि आज हमारी बहस से ही तय होगा कि हिंदुस्तान आगे कैसे चलेगा। फतेउल्ला एक दोस्त था- बहुत जिंदादिल, बहुत अच्छा आदमी। वो भी चला गया दुनिया से। मुश्ताक सिंह तो है, इंग्लैंड में है।’