Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission; Bone Health | Radiation | एस्ट्रोनॉट शुभांशु हड्डियों और रेडिएशन पर स्टडी कर रहे: हड्डियों की बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी, लंबे स्पेस मिशनों में एस्ट्रोनॉट्स की सुरक्षा बेहतर होगी

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नई दिल्ली12 मिनट पहले

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भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला चार एस्ट्रोनॉट समेत 14 दिन के स्पेस मिशन पर 26 जून को शाम 4:01 बजे ISS पहुंचे थे। - Dainik Bhaskar

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला चार एस्ट्रोनॉट समेत 14 दिन के स्पेस मिशन पर 26 जून को शाम 4:01 बजे ISS पहुंचे थे।

भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने शनिवार को सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण स्थिति में हड्डियों में होने वाली प्रतिक्रिया पर स्टडी की। इससे जानकारी मिली कि अंतरिक्ष में हड्डियां कैसे खराब होती हैं और पृथ्वी पर लौटने के बाद कैसे ठीक होती हैं।

इस प्रयोग से ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी से जुड़ी अन्य बीमारियों के बेहतर इलाज में मदद मिल सकती है। शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर रेडिएशन के खतरे की निगरानी के लिए भी एक प्रयोग में हिस्सा लिया। इससे लंबे समय के स्पेस मिशन में एस्ट्रोनॉट को बेहतर सुरक्षा देने में मदद मिलेगी।

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला चार एस्ट्रोनॉट समेत 14 दिन के स्पेस मिशन पर 26 जून को शाम 4:01 बजे ISS पहुंचे थे। शुभांशु इंडियन एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स​​ के तैयार किये 7 प्रयोग ISS में करेंगे। इनमें ज्यादातर बायोलॉजिकल स्टडीज हैं।

वे NASA के साथ 5 अन्य प्रयोग करेंगे, जिसमें लंबे अंतरिक्ष मिशनों के लिए डेटा जुटाएंगे। इस मिशन में किए गए प्रयोग भारत के गगनयान मिशन को मजबूत करेंगे।

स्पेस स्टेशन पर शुभांशु शुक्ला को 634 नंबर का बैज दिया गया है।

स्पेस स्टेशन पर शुभांशु शुक्ला को 634 नंबर का बैज दिया गया है।

शुभांशु ने माइक्रो एलगी जांच के लिए नमूने तैनात किए

शुभांशु ने स्पेस में मायोजेनेसिस स्टडी भी की। यह इंसानी मांसपेशियों के रीजनरेशन पर माइक्रोग्रैविटी प्रभाव की खोज करता है। इसरो ने बताया कि स्पेस में माइक्रो एलगी और साइनोबैक्टीरिया के सेलेक्टेड स्ट्रेन की स्टडी के लिए अन्य इंडियन एक्सपेरिमेंट चल रहे हैं। ये रीजनरेटिव लाइफ सपोर्ट सिस्टम और क्रू के पोषण पर रिसर्च में योगदान दे रहे हैं।

वहीं, एक्सिओम स्पेस ने बताया कि शुक्ला ने स्पेस माइक्रो एलगी जांच के लिए नमूने तैनात किए। ये छोटे जीव अंतरिक्ष में जीवन बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। ये भोजन, ईंधन और सांस लेने योग्य हवा भी दे सकते हैं, लेकिन पहले यह समझने की जरूरत है कि वे सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में कैसे बढ़ते हैं।

शुभांशु शुक्ला और मिशन के अन्य सदस्य रविवार को एक्सिओम स्पेस की चीफ साइंटिस्ट लूसी लो के साथ एक्सपेरिमेंट्स की प्रोग्रेस पर बातचीत करेंगे।

41 साल बाद कोई भारतीय एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में गया अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और भारतीय एजेंसी इसरो के बीच हुए एग्रीमेंट के तहत भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को इस मिशन के लिए चुना गया है। शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। इससे 41 साल पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत यूनियन के स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष यात्रा की थी।

शुभांशु का ये अनुभव भारत के गगनयान मिशन में काम आएगा। ये भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, जिसका उद्देश्य भारतीय गगनयात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और सुरक्षित रूप से वापस लाना है। इसके 2027 में लॉन्च होने की संभावना है। भारत में एस्ट्रोनॉट को गगनयात्री कहा जाता है। इसी तरह रूस में कॉस्मोनॉट और चीन में ताइकोनॉट कहते हैं।

मिशन का उद्देश्य: स्पेस स्टेशन बनाने की प्लानिंग का हिस्सा मिशन का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में रिसर्च करना और नई टेक्नोलॉजी को टेस्ट करना है। ये मिशन प्राइवेट स्पेस ट्रैवल को बढ़ावा देने के लिए भी है और एक्सियम स्पेस प्लानिंग का हिस्सा है, जिसमें भविष्य में एक कॉमर्शियल स्पेस स्टेशन (एक्सियम स्टेशन) बनाने की योजना है।

वैज्ञानिक प्रयोग: माइक्रोग्रेविटी में विभिन्न प्रयोग करना। टेक्नोलॉजी टेस्टिंग: अंतरिक्ष में नई तकनीकों का परीक्षण और विकास। अंतरराष्ट्रीय सहयोग: विभिन्न देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को एक मंच प्रदान करना। एजुकेशनल एक्टिविटीज: अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लोगों को प्रेरित करना और जागरूकता फैलाना।

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धरती से 28 घंटे का सफर कर कैप्टन शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी ISS पहुंच गए हैं। वो एक्सियम-4 मिशन का हिस्सा हैं, जिसकी एक सीट के लिए भारत ने 548 करोड़ रुपए चुकाए हैं। भारत ने शुभांशु पर इतनी बड़ी रकम क्यों खर्च की, वो अंतरिक्ष में 14 दिन क्या-क्या करेंगे और ये भारत के गगनयान मिशन के लिए कितना जरूरी पूरी खबर पढ़ें…

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