Stories from my part in Rasrang | रसरंग में मेरे हिस्से के किस्से: जब उसने कहा था- सर, एक करिश्मा हुआ!


रूमी जाफरी3 घंटे पहले

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कैप्शन: फिल्म ‘केदारनाथ’ के एक दृश्य में सुशांत सिंह। - Dainik Bhaskar

कैप्शन: फिल्म ‘केदारनाथ’ के एक दृश्य में सुशांत सिंह।

कल यानी 14 जून को सुशांत सिंह राजपूत को हमारे बीच से गए पांच साल हो गए। परसों शाम से ही मुझे उसकी काफी याद आ रही थी और कल भी दिनभर मेरा मन भारी रहा। आज भी दिल इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि सुशांत अब हमारे बीच नहीं है। ऐसा लगता है, जैसे यह कोई बुरा सपना है, जो टूटेगा और जब आंख खुलेगी तो सुशांत सामने होगा। उसकी वही मासूम प्यारी हंसी, उसका वही चमकता चेहरा सामने होगा।

मैं 14 जून की उस मनहूस दोपहर को कभी नहीं भूल सकता, जब मेरे वकील जितेंद्र भारद्वाज का फोन आया और उसने बताया कि सुशांत ने खुदकुशी कर ली है। यह सुनकर मुझे भरोसा नहीं हुआ। मैंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से पहले से ही डिप्रेशन-सा माहौल है और तुम ऐसी बातें करके नाहक ही परेशान कर रहे हो। उसने कहा कि आप टीवी खोलकर देिखए। मैंने जब खबरें देखीं, तो यकीन मानिए, एकदम ब्लैंक हो गया था। मैं जो देख रहा था, उस पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। मैंने रिया (चक्रबर्ती) को फोन लगाया, तो उसकी भर्राई आवाज और रूंधे गले ने सब कंफर्म कर दिया। फिर मुझे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी। इतने में मेरी बीवी हनान आ गईं। मेरे बच्चे भी कमरे में आ गए, यहां तक कि मेरे नौकर भी रोने लगे। सबका सुशांत के साथ बड़ा अटैचमेंट था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरी मेड ने सुशांत के साथ एक फोटो खिंचवाई थी, लेकिन वो अच्छा नहीं आई थी। जब सुशांत अगली बार आया तो मेड ने शिकायत भरे लहजे में कहा कि वो फोटो तो अच्छी आई ही नहीं। इस पर सुशांत ने उसके गले में हाथ डालकर दोबारा से फोटो खिंचवाई थी, बिल्कुल वैसे ही जैसे हम परिवार के किसी सदस्य के साथ खिंचवाते हैं।

न्यूज देखकर मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा था, क्योंकि एक दिन पहले ही तो मेरी उससे बात हुई थी। 12 जून को उसने मुझे मेसेज भी किया था। मैं अब बार-बार वही मेसेज पढ़ रहा था। मुझे कई मित्रों-परिचितों के फोन भी आने लगे थे।

अब इसके बाद शुरू हुआ आरोपों का सिलसिला और मुंबई पुलिस, बिहार पुलिस, क्राइम ब्रांच, सीबीआई, और ईडी की जांच का दौर। और फिर टीवी चैनलों का तमाशा, जो पूरे देश ने देखा। बीते पांच साल से मीडिया के मेरे दोस्त और इंडस्ट्री के बाकी लोग भी इसके बारे में मुझसे पूछते रहते हैं। मैं सबसे यही कहता हूं कि एक बार केस का क्लोजर आ जाए तो फिर बात करूंगा। मुझे ये कॉलम लिखते हुए दो साल हो गए हैं। कई बार मेरे मन ने कहा कि मैं सुशांत के बारे में, इन सबके बारे में न लिखकर ठीक नहीं कर रहा हूं। मगर आज भी जब मैं लिखने बैठा हूं तो मेरी आंखों के सामने वो मंजर घूम रहा है, जब मैंने टीवी पर पहली बार बिस्तर पर सुशांत की लेटी हुई बॉडी देखी थी। कलेजा सिहर उठा था। इसी बात पर मुझे कैफी आजमी का एक शेर याद आ रहा है:

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

उस समय सुशांत सिर्फ एक फिल्म कर रहा था और वो मेरी ही फिल्म थी। लॉकडाउन से पहले वह मेरे घर आता था और कभी मैं उसके घर चला जाता था। हम खूब हंसी-मजाक करते थे, गप्पे लगाते थे, स्क्रिप्ट रीडिंग करते थे। 20 मई से मेरी फिल्म की शूटिंग होने वाली थी, लेकिन 22 मार्च से लॉकडाउन शुरू हो गया। कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये कुदरत का कैसा कहर था। अगर कोरोना नहीं आता, लॉकडाउन नहीं लगता, जिंदगी सामान्य ढंग से चल रही होती तो 20 से शूटिंग शुरू हो जाती और सुशांत हमारे साथ होता। खैर, अब ये सब खयाली बातें रह गई हैं।

सुशांत शिवजी का बड़ा भक्त था। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब वो पहली बार मेरे घर आया था तो गाड़ी खुद ड्राइव करके आया था। आते ही मुझे फोन किया कि सर, मैं आपकी बिल्डिंग के नीचे पहुंच गया हूं, गाड़ी पार्क करके ऊपर आ रहा हूं। मैं दरवाजा खोलकर खड़ा हो गया। लेकिन उसे ऊपर आने में काफी वक्त लग गया। जब वो आया तो मैंने पूछा कि इतनी देर कहां रुक गए थे, तो वो बताते हुए बहुत एक्साइटेड हो गया। बोला कि सर, पूछो मत कि क्या करिश्मा हुआ। मैंने पूछा- करिश्मा? कैसा करिश्मा? उसने कहा, ‘आपकी पूरी गली में पार्किंग नहीं मिल रही थी। मैंने गली के दो चक्कर लगा लिए तो फिर मुझे एक बिल्डिंग दिखी- शिव पार्वती (मेरे घर के सामने वाली बिल्डिंग का नाम ‘शिव पार्वती’ है)। मैंने सोचा कि शिव जी तो जरूर जगह देंगे। यह सोचते ही शिव-पार्वती बिल्डिंग के सामने लगी एक गाड़ी वहां से चल दी। तो शिव जी ने मुझे जगह दे दी, ताकि मैं गाड़ी पार्क कर सकूं।’ इस तरह ऐसी छोटी-छोटी बातों से वो बच्चों की तरह खुश हो जाता था। सुशांत ने मुझसे यह भी कहा कि आप कभी मेरे पावना डैम वाले घर पर आइएगा। वहां देखिएगा कि मैंने शिव जी की कितनी बड़ी प्रतिमा लगाई है।

कलम रुक नहीं रही, लेकिन कॉलम खत्म करना मजबूरी है। मैं आज के कॉलम के बारे में यह कहना चाहूंगा कि यह मेरे हिस्से का किस्सा नहीं है, क्योंकि सुशांत का जाना कोई किस्सा नहीं हो सकता। वो मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा था। आज सुशांत की याद में उसकी फिल्म ‘केदारनाथ’ का ये गाना सुनिए, अपना खयाल रखिए और खुश रहिए।

नमो नमो हे शंकरा, भोलेनाथ शंकरा…



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