रूमी जाफरी2 घंटे पहले
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मैंडलिन के साथ लक्ष्मीकांत।
कहा जाता है कि हुनर की कला कुदरत इंसान को देकर ही पैदा करती है और उसको दुनिया में तरक्की देने के लिए सही जगह पहुंचाने और सही लोगों से मिलाने का इंतजाम भी कुदरत ही कर देती है। इसकी बड़ी मिसाल मैं आज के इस कॉलम में बताने वाला हूं। तो मेरे हिस्से के किस्से में आज बात लक्ष्मीकांत कुंडलकर यानी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी में से लक्ष्मीकांत जी की।
लक्ष्मीकांत जी का जन्म दीपावली के लक्ष्मी पूजन के दिन हुआ था, इसीलिए उनका नाम लक्ष्मीकांत रखा गया। लक्ष्मीकांत के पिताजी शांताराम जी का उनके इलाके में बड़ा दबदबा था। वो मिल मालिकों के लिए काम करते थे। अगर मजदूर हड़ताल करे तो हड़ताल खत्म कराने के लिए वे दबाव बनाते। उस वक्त मिल मालिक अपने वर्कर्स को रहने के लिए जगह दिया करते थे। शांताराम जी उन मजदूरों से किराया वसूल किया करते। आस-पास के दुकानदारों से हफ्ता भी वसूल करते थे, जिससे पूरे इलाके में उनका खौफ बना हुआ था।
एक खोली में रहने वाला वर्कर दो तीन महीने से किराया नहीं दे रहा था। हर बार वो हाथ-पैर जोड़कर कोई न कोई बहाना बनाकर शांताराम जी को टाल दिया करता था। तीसरे महीने शांताराम जी ने फैसला किया कि इस बार उससे किराया लेकर ही रहूंगा, नहीं तो उसकी अच्छे से पिटाई करुंगा। वो ये ठानकर उसकी खोली पर पहुंचे तो अंदर से मैंडलिन की बड़ी अच्छी आवाज आई। अंदर कोई मैंडलिन बजा रहा था। शांताराम जी दरवाजे पर खड़े होकर थोड़ी देर तक सुनते रहे। उन्हें बड़ा अच्छा लगा। जब वो अंदर गए तो उन्होंने देखा कि वही मजदूर मैंडलिन बजा रहा था। शांताराम जी ने उसे देखकर पूछा कि तुम इतना अच्छा बजाते हो तो मिल में काम क्यों करते हो? उस वर्कर ने कहा कि मैंडलिन बजाने से कमाई नहीं होती, इसलिए मुझे पैसे कमाने के लिए यहां आकर मिल में काम करना पड़ रहा है। उस वर्कर ने डरते-डरते कहा कि इस महीने भी मैं बहुत तकलीफ में हूं, मुझे माफ कर दो। शांताराम जी ने कहा कि मैं तुम्हारा किराया माफ नहीं करूंगा। तुम्हारा किराया तो मैं अपनी जेब से भर दिया करूंगा लेकिन एक शर्त पर, तुम्हें मेरे बेटे को मैंडलिन बजाना सिखाना पड़ेगा।
इस पर उस वर्कर ने शांताराम जी कहा कि मुझे बजाना आता है, पर मैं उससे कमा नहीं पा रहा हूं, तो अपने बेटे को मैंडलिन सिखाकर उसकी जिंदगी क्यों खराब कर रहे हो? वो भी कमा नहीं पाएगा। इस पर शांताराम जी ने कहा कि कमाना या नहीं कमाना, पैसे आना, वो सब भगवान के हाथों में है। तुमसे कम से कम मैंडलिन सीखेगा तो कलाकार बनेगा, मेरी तरह दादागीरी तो नहीं करेगा। ये सुनकर उस वर्कर ने हां कर दी और इस तरह वह छोटा-सा कमरा हिंदुस्तान के एक अजीम म्यूजिक डायरेक्टर लक्ष्मीकांत के जन्म की वजह बना।
छह साल की उम्र में लक्ष्मी जी ने मैंडलिन सीखना शुरू किया। फिर जब उन्हें बजाना आ गया, तो वो लोकल ट्रेन में मैंडलिन बजाकर पैसे कमाया करते थे। फिर उन्होंने अपने मोहल्ले के उन बच्चों को इकठ्ठा किया, जिन्हें म्यूजिक का शौक था या कुछ भी बजाना या गाना आता था। उनके साथ मिलकर गणपति के उत्सव या शादी के कार्यक्रमों में बजाना शुरू किया। किस्मत से एक प्रोग्राम में लता जी ने सुन लिया। वो इतने से बच्चे को मैंडलिन बजाता देख हैरान भी हुईं और खुश भी। उन्होंने लक्ष्मी को बुलाया और अपने घर में छोटे-मोटे कामों के लिए, जैसे पानी का गिलास लाना, ले जाना, दरवाजा खोलना, बंद करना के लिए रख लिया। इससे लक्ष्मी जी को म्यूजिक का माहौल भी मिला। फिर लता जी ने उन्हें सी. रामचंद्र जी से मिलाया। रामचंद्र जी ने इतनी छोटी उम्र के लक्ष्मी जी से मैंडलिन सुना तो वे हैरान रह गए। उन्होंने अपनी फिल्म में गाने की रिकॉर्डिंग में पहली बार लक्ष्मी जी से मैंडलिन बजवाया। महज नौ साल की उम्र में लक्ष्मी जी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे कम उम्र के म्यूजिशियन बन गए। इसी बात पर मुझे जोश मलीहाबादी का एक शेर याद आ रहा है:
हर हुनर को जो एक दौलत है, इल्म और जिस्म की जरूरत है
लक्ष्मी जी जब भी रिकॉर्डिंग में जाते, तो बाकी सारे म्यूजिशियंस गप्पे लगाते रहते, बातें करते रहते। लक्ष्मी जी बहुत छोटे थे, इसलिए बाहर मैदान में जब बच्चे क्रिकेट खेलते तो वो भी क्रिकेट खेलने लगते थे। उनमें एक ऐसा बच्चा था, जिसे भी म्यूजिक का शौक था। वह वॉयलिन बजाता था। तो लक्ष्मी जी की उस बच्चे से भी दोस्ती हो गई। उसका नाम था प्यारेलाल। देखिये कुदरत को। इन दोनों का मिलन कराना था और ये दोनों कहां मिले। इन दोनों की जोड़ी भी बनी और फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास की सबसे कम उम्र के और सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले म्यूजिशियंस बने। लक्ष्मी जी और प्यारेलाल जी में एक-दो साल का फर्क था। प्यारेलाल जी छोटे थे, मगर वॉयलिन और मैंडलिन में इनकी इतनी डिमांड हो गई कि एक-एक दिन में तीन-तीन चार-चार रिकॉर्डिंग में बुलाए जाने लगे।
चूंकि दोनों बच्चे थे और म्यूजिशियन्स की जो सामान्य कुर्सी होती थी, उस पर बैठ नहीं पाते थे। इनके पैर हवा में लटकते रहते थे। तो इनके लिए स्पेशल म्यूजिशियंस वाली चेयर बनाई गईं। सारे म्यूजिशियंस बैठते थे और ये दोनों बच्चे भी अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठते थे। फिर बाद में तो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने एक इतिहास रच दिया। आज लक्ष्मीकांत जी की याद में उन्हीं की फिल्म दोस्ती का ये गाना सुनिए, अपना खयाल रखिए और खुश रहिए।
जाने वालों जरा मुड़कर देखो मुझे, एक इंसान हूं मैं तुम्हारी तरह…