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रूमी जाफरी2 घंटे पहले
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अनुपम खेर लग्जरी कारों के शौकीन हैं। उनके पास कई कारों का कलेक्शन है (फोटो साभार: खेर का एक्स अकाउंट)
- 18 जुलाई को रिलीज होगी अनुपम खेर निर्देशित स्पेशल चाइल्ड बेस्ड मूवी ‘तन्वी द ग्रेट’
इन दिनों पूरे मीडिया में अनुपम खेर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘तन्वी द ग्रेट’ की चर्चा है। लोगों को इसकी झलकियां अच्छी लग रही हैं। तो आज मेरे हिस्से के किस्से में बात करते हैं खेर साहब की।
आज मुझे उनके निर्देशन की पहली फिल्म ‘ओम जय जगदीश’ की याद आ गई। ओम जय जगदीश 19 जुलाई 2002 को रिलीज हुई थी और तन्वी 18 जुलाई को रिलीज हो रही है। ओम जय जगदीश के डायलॉग मैंने लिखे थे। पारिवारिक रिश्तों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के द्वंद्व की भारतीय मूल्यों की पैरवी करती ‘ओम जय जगदीश’ बहुत सुंदर व मार्मिक फिल्म थी। आज भी जब टीवी पर आती है तो लोगों के फोन आते हैं और तारीफ करते हैं। सभी को खासकर क्लाइमेक्स बहुत अच्छा लगता है। इस क्लाइमेक्स को लिखने का वाकया बहुत यादगार है। पहले मेरी एक आदत थी, जो मैंने अब सुधार ली है। फिल्म का जो भी सीन शूट होने वाला हो, मैं उसके बारे में सोचता रहता था। जेहन में हमेशा सीन बनाता रहता था, जेहन में ही लिखता था, जेहन में ही बिगाड़ता था, जेहन में ही रिराइट करता था। मगर कागज पर लिखता था शूटिंग की सुबह या एक रात पहले। डायरेक्टर और एक्टर कई बार शिकायत भी करते कि कुछ दिन पहले क्यों नहीं देते तो मैं मजाक में कहता कि ताजा-ताजा गरम सीन देता हूं, बासी नहीं। बासी चीजों में मजा नहीं आता और सेहत के लिए भी अच्छी नहीं होती।
एक दिन खेर साहब ने मुझसे कहा कि रूमी, फिल्म का क्लाइमेक्स है और सब एक्टर्स- अनिल कपूर, फरदीन खान, अभिषेक बच्चन और खास तौर से वहीदा रहमान जी, मुझसे एडवांस में सीन मांग रहे हैं। वहीदा जी को तो वैसे भी आदत रही है एडवांस में सीन पढ़ने की, उस पर काम करने की। तो मैंने कहा ठीक है, मैं लिखता हूं। मैं सीन के बारे सोच ही रहा था और मैंने अपने जेहन में बनाना शुरू भी कर दिया था। इसी बीच, मेरी वाइफ हनान को लेबर पेन हुआ। हम नानावटी अस्पताल पहुंचे और 19 दिसंबर की सुबह बेटा पैदा हुआ। चूंकि मैं साहिर लुधियानवी जी का फैन था, तो मैंने अपने बेटे का नाम साहिर रखा। मैं नानावटी अस्पताल में बैठा था, सब दोस्त यार मिलने आने लगे, देखने आने लगे। मेरी पत्नी साहिर को अपनी गोद में लेकर बैठी थीं। मुझे याद आया कि साहिर लुधियानवी का उनकी मां के साथ जो रिश्ता था, वो बहुत अनोखा व जबरदस्त था। पुराने लोग बताते हैं कि साहिर की असली मोहब्बत उनकी मां थी। बचपन से उनकी मां साहिर साहब के साथ हर जगह, हर मुसीबत में मजबूती से खड़ी रहीं। साहिर साहब मुशायरों में अपनी मां को लेकर जाते थे और सबसे आगे बैठाते थे। तब मेरे जेहन में आया कि इस क्लाइमेक्स में मैं मां, यानी वहीदा जी को ज्यादा स्ट्रांग रखूंगा। ये खयाल आते ही मेरे जेहन में एक सीन बन गया। मैंने हॉस्पिटल में बैठकर ही सीन लिखा और खेर साहब को वहीं बुलवा लिया। वे आए तो मैंने अस्पताल में उनको सीन सुनाया। सीन सुनकर उन्होंने मुझे गले लगा लिया। बोले, क्या लाजवाब सीन है।
खेर साहब के साथ मेरी 34-35 साल की जो यह यात्रा है, इसमें बहुत सारे किस्से हैं। एक और साझा करना चाहता हूं। उन्होंने अपनी कंपनी खोली और बहुत सारे शोज बनाए। फिर ऐसा हुआ कि कंपनी घाटे में जाने लगी। वे इसे लेकर बड़े परेशान हो गए। जेहनी तनाव हो गया। तो एक रात उन्हें याद आया कि बॉम्बे सेंट्रल के तारदेव में सड़क के किनारे फुटपाथ पर एक मंदिर बना है। अपने संघर्ष के दिनों में वो अक्सर मंदिर में रुककर प्रार्थना जरूर करते थे। उन्होंने मुझे बताया, जब से मैं स्टार बन गया, वहां गया ही नहीं था। तो एक दिन मन में उस मंदिर में जाने का विचार आया। मैं सुबह उठा और फ्रेश होने के बाद ड्राइवर का भी इंतजार नहीं किया। खुद कार चलाकर तारदेव पहुंच गया। सड़क के किनारे कार खड़ी कर मैं फुटपाथ पर बने उस मंदिर में चला गया। प्रार्थना करने लगा। लेकिन मैं चाबी गाड़ी में ही भूल आया था। अचानक मुझे गाड़ी के इंजन को रेस देने की आवाज आई। मुड़कर देखा तो कोई मेरी गाड़ी लेकर जा रहा था। मैंने आवाज दी, मैं उसके पीछे भागा। अब हालात देखिए, वो गाड़ी भगाकर ले जा रहा है, मैं सड़क पर उसके पीछे-पीछे भाग रहा हूं। मैं गाड़ी को देखकर चिल्ला रहा हूं, पकड़ो-पकड़ो और लोग मुझे देखकर चिल्ला रहे हैं, देखो-देखो अनुपम खेर। शुरू में तो मुझे बड़ा दुख हुआ कि मैं भगवान से मेरी मुसीबतें दूर करने के लिए प्रार्थना करने आया था, पर उसने तो मेरी गाड़ी भी ले ली। पर, ईश्वर ने गाड़ी तो ले ली, मगर काम की गाड़ी दुबारा ऐसी चला दी कि आज तक फुल स्पीड में चल रही है।
जिस तरह साहिर साहब की अपनी मां के लिए मोहब्बत थी, वैसे ही मोहब्बत खेर साहब की अपनी मां के लिए है। उनकी मोहब्बत में मुनव्वर राना का एक शेर याद आ रहा है:
अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं घर से जब निकलता हूं, दुआ भी साथ चलती है
खेर साहब के साथ मैंने तकरीबन 15 फिल्मों में काम किया है। मैंने उनके लिए 15 किरदार लिखे हैं और उन्होंने मेरे हर एक किरदार को अपनी अदाकारी से यादगार बना दिया। खेर साहब सबके लिए एक प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। अपनी फिटनेस, सेहत और काम को लेकर उनमें जो जज्बा है, वो काबिल-ए-तारीफ है। जब उन्होंने ‘सारांश’ फिल्म की थी, उस समय मेरी उनसे मुलाकात नहीं थी, मगर मुझे यकीन है कि जो जज्बा उनमें तब था, वो आज भी उनके अंदर है, बल्कि ज्यादा ही है। हम उम्मीद करते हैं कि तन्वी द ग्रेट बहुत बड़ी हिट हो और खेर साहब हमेशा अच्छा काम करते रहें। उनके सम्मान में उनकी फिल्म का यह गाना सुनिए, अपना ध्यान रखिए, खुश रहिए:
ए दिल, लाया है बाहर, अपनों का प्यार क्या कहना…
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