Stories from my part in Rasrang | रसरंग में मेरे हिस्से के किस्से: मीना कुमारी: गंभीर बीमार थीं, फिर भी दिया था शॉट


रूमी जाफरी1 मिनट पहले

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पाकीजा के गाने ‘आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे’ के एक दृश्य में
मीना कुमारी। - Dainik Bhaskar

पाकीजा के गाने ‘आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे’ के एक दृश्य में मीना कुमारी।

दो दिन पहले 1 अगस्त को हिंदी फिल्म की मशहूर अभिनेत्री महजबीन बानो यानी कि मीना कुमारी की सालगिरह थी। तभी से मेरे जेहन में उनकी सुनी हुईं और पढ़ी हुईं बहुत सारी बातें घूम रही हैं। तो मेरे हिस्से के किस्से में आज बात मीना कुमारी जी की। मीना कुमारी जी की बहुत सारी बातें और किस्से आपको पता होंगे, मगर मैं आज आपको वो बताने जा रहा हूं जो बहुत कम लोगों को पता होगा। कमाल अमरोही के बेटे ताजदार अमरोही जी ने मुझे बताया कि मीना कुमारी जी महाबलेश्वर से आ रही थीं कि उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया। उनके हाथ में चोट लग गई। उनके बाएं हाथ की एक उंगली टूट गई। वो जुड़ तो गई, लेकिन टेढ़ी हो गई। उस जमाने में मेडिकल साइंस इतना एडवांस नहीं था कि कोई प्लास्टिक सर्जरी या मेडिकल सर्जरी होती या आर्टिफिशियल उंगली लग जाती। इसलिए अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस हादसे के बाद मीना कुमारी ने किसी भी फिल्म में अपना बायां हाथ नहीं दिखाया। बिना हाथ दिखाए अभिनय करना बहुत मुश्किल होता है, मगर वो इतनी जबरदस्त कलाकार थीं कि बाएं हाथ को कभी पल्लू में, कभी कपड़ों में, कभी बालों में इस तरह से मैनेज करती थीं कि दर्शकों का कभी ध्यान नहीं गया कि हमने उनका बायां हाथ नहीं देखा। दूसरा वाकया ‘दुश्मन’ फिल्म के डायरेक्टर दुलाल गुहा के असिस्टेंट अजीज सजावल ने बताया था। उन्होंने बताया कि 70 के दशक में मीना जी बहुत बीमार थीं। ‘पाकीजा’ भी पूरी हो चुकी थी और हमारी ‘दुश्मन’ भी। ‘दुश्मन’ फिल्म में वो विधवा बनी हैं। सिर्फ एक ही सीन बचा था, जिसमें खबर आती है कि उनके पति की एक्सीडेंट में मौत हो गई, उसमें उन्हें सुहागन दिखाना था। वही एक सीन बाकी था और वो एक तरह से मृत्यु शैया पर थीं। दुलाल दा, राजेश खन्ना सब परेशान थे कि अब क्या करें। शूटिंग करना तो नामुमकिन था, क्योंकि वो कमरे से निकल नहीं सकती थीं। दुलाल दा ने बात की, उनकी तबीयत पूछी। तबीयत पूछने के बाद कहा कि किसी तरह अगर चूड़ी टूटने का, जिसमें मांग में सिंदूर भरा है, इतना शॉट भी मिल जाए तो अच्छा हो, क्योंकि बाकी फिल्म तो बन चुकी है। लेकिन फिर बोले, चलिए, कोई बात नहीं, हम मैनेज कर लेंगे। नहीं दिखाएंगे सुहागन, विधवा ही दिखाएंगे। तो मीना कुमारी जी बोलीं कि नहीं, तुम कॉम्प्रोमाइज मत करो। बस बात इतनी है कि शूट पर आने की मेरी हिम्मत नहीं है और ना ही डॉक्टर इजाजत दे रहे हैं।

उस वक्त वो जुहू के जानकी कुटीर में, जहां पृथ्वी थिएटर है, वहां के एक बंगले में थीं। उन्होंने कहा कि तुम अपना कैमरा लेकर यहीं आ जाओ, यहीं पर मैं सुहागन का मेकअप करके तुम्हें शॉट दे दूंगी। यही किया दुलाल दा ने। कैमरामैन और असिस्टेंट को लेकर दुलाल दा बंगले में पहुंचे। ‘दुश्मन’ मूवी का एक शॉट है, जहां उनको अपने पति की खबर मिलती है, वो चीखती हैं। वो उन्होंने अपनी जिंदगी का आखिरी शॉट दिया था। ये डेडिकेशन था उनका। जनवरी 72 में ‘दुश्मन’ रिलीज हुई और हिट भी हुई। फरवरी 72 में रिलीज हुई ‘पाकीजा’, और 31 मार्च 72 को मीना जी इस दुनिया को छोड़कर चली गईं। मीना कुमारी, जो बहुत अच्छी शायरा भी थीं, उनके दो शेर याद आ रहे हैं: चांद तन्हा, आसमान तन्हा, दिल मिला है कहां कहां तन्हा, राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा। लोग मीना कुमारी की एक्टिंग के तो दीवाने थे ही, उनकी आवाज के भी दीवाने थे। आज तक लोग कहते हैं कि ऐसी आवाज नहीं आई। इसी बात पर मुझे एक और किस्सा याद आ रहा है जो मुझे बच्चन साहब (अमिताभ बच्चन) ने सुनाया था। उन्होंने बताया, रूमी, मेरी फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ पूरी हो गई थी और मैं मीना कुमारी और वहीदा जी का बहुत बड़ा फैन था। मुझे एक दिन पता लगा कि मेरी फिल्म के लेखक, निर्माता और निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास साहब एक थिएटर में मीना कुमारी को ये फिल्म दिखा रहे हैं। मैं सब काम छोड़कर थिएटर के लिए भागा। जब वहां पहुंचा तो इंटरवल के बाद फिल्म शुरू हो चुकी थी। मैं थिएटर का दरवाजा धीरे से खोलकर अंदर गया। मीना कुमारी और अब्बास साहब बैठकर फिल्म देख रहे थे। उनकी पीठ थी, बैक नजर आ रहा था। मैं उनको पीछे से देख रहा था। मेरे दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं कि जिंदगी में पहली बार मीना कुमारी मेरी फिल्म देख रही हैं। फिल्म खत्म होने के बाद उन्होंने अब्बास साहब से कहा, ‘बहुत खूबसूरत, बहुत अच्छी फिल्म बनाई है।’ और फिर बोलीं, ‘अब्बास साहब, वो जो लड़का है लंबा सा, बहुत अच्छा काम किया है, कौन है वो लड़का?’ अब्बास साहब ने कहा, ‘अमिताभ बच्चन, आपके पीछे ही खड़ा है।’ तो वो मुड़ीं और बोलीं, ‘भाई अमिताभ, इधर आइए, सामने आइए आप।’ अमित जी मुझसे बोले, रूमी, यकीन जानो जब उन्होंने मेरा नाम लिया, मुझे बुलाया तो उनकी आवाज सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। फिर मैं उनके सामने गया, उन्होंने मेरी तारीफ की और कहा- ‘तुमने बहुत अच्छा काम किया है।’ वो लम्हा मैं अपनी जिंदगी में कभी नहीं भूल सकता। इसी बात पर आज मीना कुमारी की याद में उनकी फिल्म पाकीजा का ये गाना सुनिए: ‘आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे, तीर-ए-नजर देखेंगे, जख्म-ए-जिगर देखेंगे।’ अपना खयाल रखिए, खुश रहिए।



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