The story of the rebirth of Shurpanakha and Laxman in the folktale of Pabuji | रसरंग में मायथोलॉजी: पाबूजी की लोककथा में शूर्पणखा और लक्ष्मण के पुनर्जन्म की कहानी


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देवदत्त पट्टनायक3 घंटे पहले

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नई दिल्ली स्थित नेशनल म्यूजियम में रखी फड़ पेंटिंग में चित्रित लोकदेवता ‘पाबूजी’। - Dainik Bhaskar

नई दिल्ली स्थित नेशनल म्यूजियम में रखी फड़ पेंटिंग में चित्रित लोकदेवता ‘पाबूजी’।

रामायण में शूर्पणखा की कहानी के बारे में अधिकांश लोग जानते हैं। शूर्पणखा राक्षसों के राजा रावण की बहन थी और जंगल में स्वतंत्र जीवन जीती थी। एक दिन वह राम से मिली, जिनका वनवास चल रहा था। उनकी सुंदरता से मोहित होकर शूर्पणखा ने उनसे विवाह करने की इच्छा जताई। राम ने शूर्पणखा का प्रस्ताव नकारकर उसे अपने अनुज लक्ष्मण से मिलने को कहा। लक्ष्मण ने भी शूर्पणखा को ठुकरा दिया क्योंकि अपने बड़े भाई और भाभी की सेवा करना ही उनका एकमात्र उद्देश्य था।

इससे शूर्पणखा चिढ़ गई और उसने सीता पर हमला कर दिया। लेकिन इससे पहले कि सीता को कोई नुकसान पहुंच सके, लक्ष्मण ने शूर्पणखा को वहीं रोक दिया और उसे वहां से बालों से घसीटते हुए दूर कर दिया। फिर उन्होंने शूर्पणखा को सबक सिखाने के लिए अपनी तलवार से उसकी नाक काट दी। शूर्पणखा राम और लक्ष्मण की शिकायत करने रावण के पास चिल्लाती हुई पहुंची। रावण यह जानकर क्रोधित हो गया और अपनी बहन पर हुए वार का प्रतिशोध करने के लिए उसने सीता का अपहरण कर उन्हें लंका में बंदी बना लिया। अंत में राम ने लंका पर चढ़ाई कर रावण का वध किया और सीता को मुक्त करवाया।

राजस्थानी लोक रामायणों के अनुसार रावण का वध करने के लिए यह आवश्यक था कि राम उनकी आत्मा को मुक्त करें। यह आत्मा सूर्य-देव के रथ को खींचने वाले एक अश्व के नथुने में बंद थी। लेकिन ऐसा केवल एक ब्रह्मचारी कर सकता था। इन लोक रामायणों में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। इसलिए, इन रामायणों के अनुसार लक्ष्मण ने इस अश्व के नथुने में बाण मारा। ऐसा करने से रावण की आत्मा मुक्त हुई और राम उसका वध कर पाए। अन्य कथनों में बताया जाता है कि राम ने नहीं, बल्कि लक्ष्मण ने रावण का वध किया। इससे उन कथनों पर जैन धर्म का प्रभाव दिखाई देता है, जिसके अनुसार राम परिपूर्ण होने के कारण अहिंसक थे।

राजस्थान के भोपा समुदाय के लोग मानते हैं कि चूंकि लक्ष्मण ने रावण का वध किया था, इसलिए यह तय था कि किसी अगले जन्म में उनका रावण के हाथों वध होता। साथ ही अगले किसी जन्म में शूर्पणखा को लक्ष्मण की पत्नी बनना था, लेकिन लक्ष्मण कभी शूर्पणखा के पति नहीं बनते हैं। लक्ष्मण का यह अगला जन्म पाबूजी के महाकाव्य में वर्णित है। इस लोक-देवता की कथा का सदियों से मौखिक प्रसार होता आ रहा है और आज उसके विलुप्त होने का डर है। यह मौखिक परंपरा कम से कम 600 वर्ष पुरानी है। इसकी तुलना में रामायण को उससे बहुत पहले अर्थात आज से करीब 2000 वर्ष पहले लिखित रूप दिया गया था।

पाबूजी को समर्पित एकमात्र पुण्य स्थल रेगिस्तान में कोलू नामक छोटे-से गांव में स्थित है। यहां रबारी समुदाय के पशुपालक उन्हें पूजते हैं। संभवतः इस खानाबदोश समुदाय को स्थायी मंदिर आवश्यक नहीं लगा हो। मंदिर की जगह फड़ नामक चित्रित, लपेटा हुआ कपड़ा होता है, जो भोपा समुदाय के चारण अपने साथ रखते हैं। ये चारण रात में फड़ को खोलकर दीयों से चित्रों पर रोशनी डालते हैं और गीत गाकर चित्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं। इस प्रकार, गीतों के माध्यम से ये वीर-देवता और गायों के रक्षक खिल उठते हैं।

भोपा पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने पूर्वजों से ये गीत सीखते आए हैं। बहुधा उसकी पत्नी या बहन भी उसके साथ गीत गाती है। भोपा गाते समय केवल अपना रावणहत्था बजाता है। कहते हैं कि रावण ने यह वाद्य शिव के सम्मान में बनाया था, इस वीणा की डंडी अपनी भुजा से और उसके तार अपने स्नायुओं से।

पाबूजी की लोककथा के अनुसार रावण ने जिंदराव खींची, शूर्पणखा ने राजकुमारी फूलवती, जबकि लक्ष्मण ने पाबूजी बनकर पुनर्जन्म लिया।

पाबूजी के पिता धांधल राठोड़ की उनकी पत्नी के साथ दो संतानें थीं, एक पुत्र बुरो और एक पुत्री पेमा। फिर उन्हें एक अप्सरा से प्रेम हो गया। उस अप्सरा ने धांधल राठोड़ से इस शर्त पर विवाह किया कि वे उस पर रात में कभी नजर नहीं रखेंगे। उस अप्सरा के साथ धांधल राठाेड़ को पाबूजी और सोना के रूप मंे दो संतानें हुईं। एक दिन उन्होंने अपना वचन तोड़ दिया और रात में अप्सरा को शेरनी के रूप में अपने बेटे को दूध पिलाते पाया। जब अप्सरा को यह पता चला, तब उसने सदा के लिए धांधल को छोड़ दिया। वह अपनी संतानों को भी उनके पास छोड़ गई। जाते हुए उसने वचन दिया कि वह कालमी नामक जादुई घोड़ी के रूप में लौटेगी।

अगले सप्ताह के लेख में हम पाबूजी की कहानी को जारी रखते हुए जानेंगे कि कैसे फूलवती से उनका विवाह होते-होते बचा।



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